December 4, 2024 : 11:35 PM
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डिज़िटल बूम के बावजूद भारत में नकदी का चलन क्यों बना हुआ है सबसे अधिक?

नकद

भारत में अभी भी लोगों में नकदी का व्यापक चलन

भारत सरकार ने साल 2016 के नवंबर महीने में भ्रष्टाचार और अघोषित संपत्ति की समस्या से निपटने के मकसद से अपने दो बैंक नोटों को अचानक चलन से बाहर कर दिया.

ये बैंक नोट 500 और 1000 रुपये की राशि थे जिनकी कुल भारतीय मुद्रा में हिस्सेदारी 86 फीसद थी.

सरकार के इस एलान के तुरंत बाद बैंकों और एटीएम के सामने लंबी कतारें लगती देखी गयीं. और एकाएक पूरे देश में अफ़रा-तफ़री का माहौल पैदा हो गयी.

कुछ आलोचकों के मुताबिक़, इस कदम से निम्न आय वर्ग के भारतीयों को नुकसान हुआ और देश की विशाल अनौपचारिक अर्थव्यवस्था लड़खड़ा गई जहां लोग नकदी में लेन देन किया करते थे.प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस कदम का लगातार ये कहते हुए बचाव किया कि नोटबंदी ने काले धन को कम करने, टैक्स कलेक्शन बढ़ाने और टैक्स के दायरे में ज़्यादा से ज़्यादा लोगों को लाने और पारदर्शिता बढ़ाने में काफ़ी मदद की है.

लेकिन इस फ़ैसले के सात साल बाद भी भारत में नकदी का चलन बड़े पैमाने पर है. इसने नोटबंदी के विवादित फ़ैसले के औचित्य पर नए सिरे से संदेह पैदा किया है.

भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) के अनुसार, 2020-21 में अर्थव्यस्था में नकदी का चलन 16.6% बढ़ गया जबकि इसके पहले दशकों में इसकी औसत वृद्धि दर 12.7% रही है.

किसी भी देश में कैश के चलन को जानने के लिए, देश के कुल सकल उत्पाद में उसके हिस्से को देखा जाता है.

भारत के जीडीपी में कैश का हिस्सा 2020-21 में 14% था और 2021-2022 में 13% था

दूसरी तरफ़ डिज़िटल लेन देन में भी तेज़ी से उछाल आ रहा है, इसकी मुख्य वजह स्मार्टफ़ोन का इस्तेमाल, डेबिट कार्ड का इस्तेमाल और बड़े पैमाने पर कल्याणकारी योजनाएं हैं.

डिज़िटल लेन देन 1 ट्रिलियन डॉलर के पार

खुदरा लेनदेन

पिछले साल यूपीआई से लेनदेन का आंकड़ा एक ट्रिलियन डॉलर को पार कर गया, जोकि भारत की जीडीपी का एक तिहाई है.

डिज़िटल लेन देन में आया उछाल यूनिफ़ाइड पेमेंट्स इंटरफ़ेस (यूपीआई) की वजह से भी है.

यूपीआई के ज़रिए इंटरनेट के माध्यम से स्मार्टफोन एप के ज़रिए एक बैंक अकाउंट से दूसरे बैंक अकाउंट में कैश ट्रांसफर किया जा सकता है.

पिछले साल देश में यूपीआई लेनदेन एक ट्रिलियन डॉलर को पार कर गया था, जोकि भारत की जीडीपी के एक तिहाई के बराबर है.

एसीआई वर्ल्डवाइड एंड ग्लोबल डेटा (2023) के मुताबिक़, 8.9 करोड़ लेन देन के साथ भारत की वैश्विक डिज़िटल पेमेंट में हिस्सेदारी 46% तक पहुंच गई है.

एक साथ नकदी और डिज़िटल पेमेंट में उछाल को आम तौर पर ‘मुद्रा मांग’ विरोधाभास के रूप में जाना जाता है.

आरबीआई की ओर से हर साल जारी की जाने वाली रिपोर्ट के मुताबिक़, “आम तौर पर नक़दी और डिज़िटल लेन देन को एक दूसरे का विकल्प माना जाता है, लेकिन दोनों में वृद्धि उम्मीद के विपरीत है.”

एटीएम से नकदी निकासी धीमी हो गई है और ‘करेंसी वेलोसिटी’- अर्थव्यवस्था में ग्राहकों और बिज़नेस के बीच जिस दर से नकदी का लेन देन होता है- वो भी धीमा पड़ गया है.

लेकिन अधिकांश भारतीयों के लिए कैश के रूप में वित्तीय बचत करना एक सावधानी भरा कदम है. क्योंकि वे मानते हैं कि कैश के रूप में की गयी बचत को आपातकालीन स्थितियों में इस्तेमाल किया जा सकता है.

नकदी चलन में 500 और 2,000 रुपये नोटों का हिस्सा सबसे अधिक है. आरबीआई के अनुसार, 31 मार्च तक चलन में रही कुल नकदी की क़ीमत में इनकी 87% से अधिक हिस्सेदारी थी.

2000 के नोटों को 2016 की नोटबंदी के बाद जारी किया गया था जिसे केंद्रीय बैंक ने पिछले मई महीने में वापस ले लिया.

कोविड महामारी के पहले हुए एक अध्ययन में पाया गया है कि छोटी खरीदारियों में नक़दी और बड़े लेनदेन में डिज़िटल का दबदबा था.

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