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गया में ब्रह्मा, विष्णु और शिवजी के साथ ही यमराज का भी वास है, महाभारत में बताया गया है इस जगह का महत्व

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  • In Gaya, Along With Brahma, Vishnu And Shiva, Yamraj Is Also Inhabited, It Is Told In The Mahabharata That The Importance Of This Place

4 घंटे पहले

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  • यहां पितृ देवता के रूप में मौजृद है भगवान विष्णु इसलिए पितृ तीर्थ भी कहा जाता है इस जगह को आश्विन

कृष्णपक्ष की प्रतिपदा से शुरू होकर अमावस्या तक की अवधि को पितृपक्ष माना जाता है। वैदिक परंपरा और हिंदू मान्यताओं के अनुसार पितरों के लिए श्रद्धा से श्राद्ध करना एक महान और उत्कृष्ट कार्य है। मान्यता के मुताबिक पुत्र का पुत्रत्व तभी सार्थक माना जाता है, जब वह अपने जीवन काल में जीवित माता-पिता की सेवा करे और उनके मरणोपरांत उनकी मृत्यु तिथि तथा महालय यानी पितृपक्ष में उनका विधिवत श्राद्ध करे। इसके लिए देवताओं द्वारा मनुष्यों को धरती पर पवित्र जगह दी गई है। जिसका नाम गया है। यहां श्राद्ध और तर्पण करने से पितरों को तृप्ति मिलती है तथा उनका मोक्ष भी हो जाता है। महाभारत में वर्णित गया में खासतौर से धर्मराज यम, ब्रह्मा, शिव एवं विष्णु का वास माना गया है।

गयासुर के शरीर से बनी गया
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भस्मासुर के वंश में गयासुर नामक राक्षस ने कठीन तपस्या कर ब्रह्माजी से वरदान मांगा था कि उसका शरीर देवताओं की तरह पवित्र हो जाए और लोग उसके दर्शन से ही पाप मुक्त हो जाएं। इस वरदान के बाद स्वर्ग में अधर्मियों की संख्या बढ़ने लगी। इससे बचने के लिए देवताओं ने गयासुर से यज्ञ के लिए पवित्र स्थल की मांग की। गयासुर ने अपना शरीर देवताओं को यज्ञ के लिए दे दिया। यही जगह आगे चलकर गया बनी। गयासुर ने देवताओं से वरदान मांगा कि यह स्थान लोगों को तारने वाला बना रहे। जो भी लोग यहां पर किसी की मृत्यु की इच्छा से तर्पण और पिंडदान करें, उन्हें मोक्ष मिले। यही कारण है कि आज भी लोग अपने पितरों को तारने के लिए पिंडदान के लिए गया आते हैं।

  • मान्यता है कि गयासुर का शरीर पांच कोस में फैला हुआ था इसलिए उस पांच कोस के भूखण्ड का नाम गया पड़ गया। गयासुर के पुण्य प्रभाव से ही वह स्थान तीर्थ के रूप में स्थापित हो गया। गया में पहले विविध नामों से 360 वेदियां थी लेकिन उनमें से अब केवल 48 ही शेष बची हैं। आमतौर पर इन्हीं वेदियों पर विष्णुपद मंदिर, फल्गु नदी के किनारे अक्षयवट पर पिण्डदान करना जरूरी समझा जाता है। इनके अलाव नौकुट, ब्रह्योनी, वैतरणी, मंगलागौरी, सीताकुंड, रामकुंड, नागकुंड, पांडुशिला, रामशिला, प्रेतशिला व कागबलि आदि भी पिंडदान के प्रमुख स्थल हैं।

भगवान राम ने किया था यहां श्राद्ध
गया जाकर पितरों का श्राद्ध करने से सात पीढ़ियों का उद्धार होता है। माना जाता है कि यहां भगवान विष्णु पितृदेवता के रूप में मौजूद हैं, इसलिए इसे पितृ तीर्थ भी कहा जाता है। पिंडदान को मोक्ष प्राप्ति का एक सहज और सरल मार्ग माना जाता है। माना जाता है कि भगवान राम और सीताजी ने भी राजा दशरथ की आत्मा की शांति के लिए गया में ही पिंडदान किया था।

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