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भास्कर ओरिजीनल:टोक्यो ओलिंपिक स्टेडियम के बाहर एक पिता 18 दिन से भूख हड़ताल पर, बस एक ही मांग- कोई मुझे मेरे बच्चों से मिलवा दे

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2 घंटे पहलेलेखक: टोक्यो से भास्कर के लिए जूलियन रयाल

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विंसेंट फिकोट - Dainik Bhaskar

विंसेंट फिकोट

  • जापान में बच्चों की कस्टडी मां को ही देने वाले कानून के खिलाफ पिता की जंग

टोक्यो ओलिंपिक स्टेडियम के बाहर एक पिता 18 दिनों से भूख हड़ताल पर है। फ्रांस मूल के विंसेंट फिकोट का यह संघर्ष अपने बच्चों से मिलने के लिए है। जिन्हें उनकी पत्नी तीन साल पहले लेकर चली गई थी। जापानी कानून में बच्चों की कस्टडी मां को ही दी जाती है, इसी के चलते हर साल करीब 1.5 लाख बच्चे पैरेंट्स से अलग हो जाते हैं। कोर्ट भी मां का ही पक्ष लेती हैं। यहां तक कि पिता को मिलने का अधिकार भी नहीं होता। इस कानून को फिकोट ने चुनौती दी है। फिकोट बता रहे हैं बच्चों से मिलने के लिए यह रास्ता क्यों चुना…

पिता का दर्द… बच्चों से मिलने के लिए नौकरी-पैसा गंवाया, सरकारों से मिन्नतें कीं, अब जान ही दे सकता हूं

मैं 15 साल से जापान में हूं। यहां बैंकर था। 2009 में जापानी लड़की से साथ शादी की। हमने बेटे त्सुबासा और बेटी काएदा को जन्म दिया। बेटा 6 साल और बेटी 4 साल की है। 2018 में पत्नी बिना कुछ कहे दोनों बच्चों को लेकर चली गई। इस पर मैं बच्चों की गुमशुदगी और पत्नी के खिलाफ शिकायत लेकर थाने पहुंचा, लेकिन सुनवाई नहीं हुई। फिर फैमिली कोर्ट पहुंचा। यहां पता चला कि जापानी कानून में बच्चों की ज्वाइंट कस्टडी की अवधारणा नहीं है, इसलिए जज ने पत्नी को बच्चों का केयरटेकर माना। फिर भी मैंने लड़ाई जारी रखी।

मैंने फ्रांस सरकार, ईयू संसद और यूएन मानवाधिकार परिषद में भी अर्जी लगाई, पर हर जगह मायूसी ही मिली। कोर्ट के फैसलों और बच्चों से दोबारा जुड़ने की इस जद्दोजहद में नौकरी, घर और सारी जमापूंजी खो दी। मेरे वकील ने पत्नी के कानूनी प्रतिनिधियों से बात की, पर उसने जवाब देने से मना कर दिया है। मैंने वो सब किया, जो कर सकता था। मैं सिर्फ बच्चों से मिलना चाहता हूं। उनके साथ जी भर के जीना चाहता हूं। जब बच्चों तक पहुंचने के सारे रास्ते बंद हो गए तो यह कदम उठाना पड़ा। 10 जुलाई को यहां भूख हड़ताल पर बैठने का फैसला लिया है।

मैं अपने बच्चों के हक के लिए लड़ रहा हूं। यदि उनके हक को सम्मान मिलता है, तभी मैं ये हड़ताल खत्म कर सकता हूं। अब 18 दिन बीत चुके हैं। इस दौरान वजन काफी गिर चुका है। खड़ा होता हूं तो चक्कर आते हैं। पर मैं ठीक हूं। हां, मौसम जरूर परेशान कर रहा है। पर ये सब उतना बुरा नहीं है, जितना तीन साल में बच्चों से दूर रहकर महसूस हुआ है। फिर भी मैं अडिग हूं। मैं यहां जिंदगी खत्म करने के लिए तैयार हूं, पर हताशा में नहीं।

मैं शरीर के आखरी ग्राम तक संघर्ष करूंगा, मुझे खुशी है कि मेरे संघर्ष को जापानी माता-पिता का समर्थन मिल रहा है, जो इस कानून के चलते बच्चों के प्यार से वंचित हैं। कई मेरे साथ दिन-रात रुकते हैं। एक याचिका में 6200 लोगों ने हस्ताक्षर करके इस मुहिम का समर्थन किया है। – विंसेंट

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