
दैनिक भास्कर
Feb 16, 2020, 01:38 PM IST
लाइफस्टाइल डेस्क.भारत में हर साल लगभग 60 हज़ार बच्चों को कैंसर होता है। देश में वयस्क कैंसर रोगियों की संख्या का यह करीब पांच फीसदी है, जबकि विकसित देशों में बच्चों में कैंसर का अनुपात एक-दो प्रतिशत तक होता है। एक अच्छी बात यह है कि बच्चों में होने वाले कैंसर के 80 फीसदी मामले पूरी तरह ठीक हो जाते हैं, बशर्ते सही समय पर और अच्छा इलाज मिल जाए। इसके लिए कैंसर के लक्षणों को समझना जरूरी है। शिशु रोग विशेषज्ञ और लेखक डॉ. अव्यक्त अग्रवाल बता रहे है बच्चों में होने वाले प्रमुख कैंसर के लक्षण और इनका इलाज।
बच्चों में होने वाले प्रमुख कैंसर
- ब्लड कैंसर बच्चों में सर्वाधिक होने वाले कैंसर में से एक है। इसमें प्रमुख प्रकार एएलएल और एएमएल है। एएलएल का जल्दी पता चलने पर 90 प्रतिशत तक पूर्ण उपचार संभव है, जबकि एएमएल में यह दर 40 से 50 प्रतिशत तक ही है।
- बच्चों को दूसरे क्रम पर सर्वाधिक परेशान हॉजकिन्स और नॉन हॉजकिन्स लिम्फोमा कैंसर करता है। यह कैंसर लिम्फ ग्रंथियों (गर्दन की ग्रंथियों) में होता है।
- रेटिनोब्लास्टोमा कैंसर आंख में होता है और यह नवजात शिशु में एक माह की उम्र तक भी आरंभ हो सकता है। धीरे-धीरे कैंसर आंखों को ख़राब कर मस्तिष्क तक पहुंच सकता है। जल्दी पता चलने पर आंखें बचाईं जा सकती हैं। शुरुआती लक्षण को कैट आई रिफ्लेक्स कहते हैं, जिसमें शिशु की आंख अंधेरे में सफ़ेद चमकीली सी दिख सकती है।
- बच्चों के मस्तिष्क में बिनाइन ट्यूमर भी हो सकता है। अथवा दिमाग़ के अलग-अलग प्रकार के कैंसर भी हो सकते हैं। इनकी जल्दी पहचान होने पर इलाज संभव है।
- न्यूरोब्लास्टोमा एड्रीनल ग्लैंड में होने वाला एक तरह का ट्यूमर है। किडनी के ऊपरी हिस्से पर एड्रीनल ग्रंथियां होती हैं। बच्चों में इस कैंसर की भी आशंका होती है।
- ऑस्टियोसरकोमा और इविंग्स सरकोमा हड्डियों में होने वाला कैंसर है। इसका भी समय पर पता चलने पर पूरा इलाज मुमकिन है।
- विल्म्स ट्यूमर नाम का कैंसर बच्चों की किडनी में होता है।
ये लक्षण नजरअंदाज न करें
- सामान्य इलाज के बावजूद यदि एक हफ्ते से अधिक समय से बुखार बना हुआ है या बुखार बार-बार लौट रहा है, तो ख़ून की जांचें करवा लेनी चाहिए। इस संबंध में विशेषज्ञ डॉक्टर से चर्चा करनी चाहिए। अधिकांश कैंसर में शुरुआती लक्षण बुखार ही होता है।
- ब्लड कैंसर का एक अहम लक्षण सीने के मध्य की हड्डी स्टर्नम में दर्द होता है। इसे ‘स्टर्नल टेंडरनेस’ कहा जाता है। सीने के अलावा और भी कहीं हडि्डयों में दर्द है, तो जांच करवा लेनी चाहिए। हड्डी में बिना दर्द के सूजन बने रहना भी कैंसर का प्रमुख लक्षण हो सकता है।
- अगर मसूड़ों, नाक से खून आता है या त्वचा से खून आने पर त्वचा पर नीले धब्बे हो रहे हैं, तो यह भी ब्लड कैंसर का एक लक्षण हो सकता है। बच्चों में खून की कमी का बने रहना भी कैंसर का एक लक्षण हो सकता है।
- बच्चों के वज़न में बहुत ज्यादा बदलाव महसूस कर रहे हों, खासतौर पर अगर हफ्ते भर में वज़न तेजी से कम हुआ है, तो तुरंत डॉक्टर से मिलना चाहिए। वज़न का तेज़ी से कम होना बच्चों के साथ वयस्कों में भी कैंसर का एक प्रमुख संकेत होता है।
- अगर बच्चे की भूख लगातार कम होती जा रही है, बच्चा खेल-कूद में भी ज्यादा रुचि नहीं ले रहा है तो इस अचानक बदलाव को नज़रअंदाज़ न करें। यह भी कैंसर का शुरुआती लक्षण हो सकता है।
- गर्दन की ग्रंथियां (लिम्फ नोड्स) अगर बड़ी हो रही हैं तो यह भी ब्लड कैंसर, हॉजकिन्स, नॉन हॉजकिन्स, एएलएल जैसे कैंसर के लक्षण हो सकते हैं।
- पेट में अगर किसी जगह पर सूजन महसूस हो रही है, तो उसे भी डॉक्टर को बताना चाहिए। यह भी कैंसर का एक शुुरुआती लक्षण हो सकता है। सारे लक्षणों में महत्वपूर्ण है उन्हें समय पर पहचानना और अपने डॉक्टर को बताना।
किन बच्चों को है ज्य़ादा ख़तरा?
बच्चों में होने वाले अधिकांश कैंसर किसी भी बच्चे को हो सकते हैं। इसमें फैमिली हिस्ट्री उतनी मायने नहीं रखती। कब और किसको कौन-सा कैंसर हो जाए, इस बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता। हालांकि कुछ तरह के कैंसर जैसे रेटिनोब्लास्टोमा आनुवंशिक होते हैं और यह एक के बाद दूसरे शिशु में भी हो सकते हैं। इसकी रोकथाम के लिए जेनेटिक टेस्टिंग करवाई जा सकती है। जेनेटिक टेस्टिंग के जरिए अगले बच्चे में कैंसर की आशंका का पता लगाया जा सकता है। बचाव के तौर पर अच्छा खानपान, शारीरिक सक्रियता आदि की ही सलाह दी जाती है। हालांकि पुख्ता तौर पर नहीं कहा जा सकता कि कैंसर से बचाव के ये उपाय हैं अथवा नहीं।
क्या हैं जांचें और उपचार?
अगर शुरुआती लक्षण नज़र आ रहे हैं और रक्त की आरंभिक जांचों में भी कैंसर की आशंका समझ आ रही है, तो फिर बोन मेरो, सीटी स्कैन, एमआरआई, सोनोग्राफी जैसी जांचों की आवश्यकता होती है। इसके उपचार में सर्जरी, कीमोथैरेपी और रेडियोथैरेपी जैसे विकल्प कैंसर के टाइप और कैंसर की स्टेज के अनुसार चुने जाते हैं। इसके अतिरिक्त बेहतर पोषण और इंफेक्शन से बचाव भी बेहद अहम हैं। साथ ही मरीज़ और उसके परिजनों दोनों को ही मनोवैज्ञानिक सहायता प्रदान करके भी बीमारी से बहुत हद तक लड़ा जा सकता है।