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दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है कोरोनावायरस से प्रभावितों की संख्या,ऐसे में जानते हैं कि आखिर वायरस है क्या?

  • इंसान तो इंसान, बैक्टीरिया को भी लग जाता है वायरस

दैनिक भास्कर

Mar 08, 2020, 02:49 PM IST

लाइफस्टाइल डेस्क. वायरसों को जानना चाहते हैं तो पहले एक सवाल पर गौर करना दिलचस्प होगा। वायरस सजीव है या निर्जीव? हालांकि वायरस किसी कोशिका से नहीं बने होते, लेकिन फिर भी बहुत से लोग उन्हें सजीव मानते हैं, क्योंकि उनमें ऐसे बहुत सारे लक्षण होते हैं जो जीवित प्राणियों या रचनाओं में होते हैं। लेकिन दूसरी तरफ बहुत से लोग वायरसों को निर्जीव भी मानते हैं।

वायरस: सजीव या निर्जीव?
वायरस खुद कुछ भी करने में असमर्थ होते हैं यहां तक कि नए वायरसों को जन्म देने में भी। उन्हें कुछ भी करने या अपनी संख्या बढ़ाने के लिए किसी दूसरे जीवित माध्यम या कोशिका की जरूरत होती है। इसलिए उन्हें निर्जीव माना जा सकता है। जीवन की पारंपरिक परिभाषा भी यही है कि हर सजीव के शरीर की संरचना कोशिकाओं के जरिए होती है। लेकिन वायरसों में कोशिकाएं नहीं होतीं। तो आप क्या कहेंगे? वायरस निर्जीव हैं। बहरहाल, चूंकि उनमें ऐसे बहुत सारे लक्षण होते हैं जो जीवित प्राणियों या रचनाओं में होते हैं (जैसे डीएनए या आरएनए) इसलिए उन्हें बहुत सीमित अर्थों में सजीव भी मान सकते हैं। लेकिन व्यापक मान्यता यही है कि वे निर्जीव हैं।

कोशिकाओं के तीन सिद्धांत
दूसरी तरफ बैक्टीरिया और फंगस कोशिका से बने होते हैं और इसीलिए वे सजीव हैं। क्या आपने कोशिकाओं के बारे में तीन सिद्धांत सुने हैं? पहला सिद्धांत है- कोशिका सभी सजीवों के शरीर की सबसे छोटी इकाई है। दूसरा सिद्धांत है- सभी जीवित प्राणी कोशिकाओं से बने होते हैं। और तीसरा सिद्धांत है, सभी कोशिकाएं पहले से मौजूद कोशिकाओं से ही आती हैं। लेकिन वायरस पर ये तीनों सिद्धांत लागू नहीं होते। कोरोनावायरस पर भी नहीं। चूंकि एंटी-बायोटिक दवाएं कोशिकाओं पर काम करती हैं इसलिए वे वायरस के मामले में नाकाम हैं। हालांकि वे बैक्टीरिया और फंगस का बखूबी इलाज कर सकती हैं।

वायरस प्राणियों के शरीर में कैसे पहुंचते हैं?
शरीर के जिन हिस्सों के जरिए बाहरी चीजों से हमारा संपर्क होता है, वही वायरसों को भीतर ले आने का माध्यम बन जाते हैं। उदाहरण के तौर पर सांस के जरिए, मुंह के जरिए, खुले घावों के जरिए, यौन क्रिया के जरिए, किसी दूसरे व्यक्ति के खून से या फिर किसी जानवर या कीट के काटे जाने से। कुछ वायरस हमारी कोशिकाओं के भीतर घुस जाते हैं तो कुछ इनके साथ चिपक जाते हैं। कुछ के शरीर के बाहरी हिस्से में कुछ खास किस्म की संरचनाएं भी होती हैं। जैसे कि कोरोनावायरस का आकार किसी ताज जैसा है जिसके चारों तरफ हुक या कांटे जैसी आकृतियां निकली हुई होती हैं। ये आकृतियां इंसान के शरीर की कोशिकाओं के साथ संपर्क कर लेती हैं और उनके साथ जुड़ जाती हैं। 

बैक्टीरिया पर भी हमला करते हैं वायरस 
वायरस अपने डीएनए या आरएनए को हमारे शरीर में इंजेक्ट कर देती हैं। कोशिकाओं के संपर्क में आकर वे बढ़ने लगते हैं क्योंकि कोशिकाओं के भीतर वह सारी सामग्री होती है जो उनको अपनी संख्या बढ़ाने के लिए चाहिए। फिर ये कोशिकाएं भले ही इंसान की हो, किसी जानवर की हों, कीट-पतंगे की हों या फिर बैक्टीरिया की ही क्यों न हों। लगे हाथ बता दें कि ऐसे भी वायरस होते हैं जो खुद बैक्टीरिया पर हमला कर देते हैं तथा उनके शरीर में ही बढ़ने लगते हैं। इन्हें बैक्टीरियाफेज कहा जाता है। किसी दूसरे प्राणी के शरीर में जाने के बाद वायरसों के लक्षण दिखाई देने में जितना समय लगता है, उसे इनक्यूबेशन पीरियड कहा जाता है। कोरोनावायरस के मामले में यह 2 से 24 दिन का माना जाता है।

कैसे होते हैं वायरस?
एक तो वायरस बहुत सूक्ष्म होते हैं। यूं सूक्ष्म तो कोशिका भी होती है, लेकिन वायरस कोशिका के आकार से भी बहुत छोटे होते हैं। उनको देखने के लिए आपको इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप का इस्तेमाल करना पड़ेगा। बैक्टीरिया में कोशिका होती है, इसलिए वे बड़े होते हैं। दोनों के आकार में कितना फर्क होता है? एक उदाहरण देखिए। खसरे के वायरस का व्यास 220 नैनोमीटर्स होता है जो कि ईकोली (E.Coli) नामक बैक्टीरिया के आकार का आठवां हिस्सा ही होता है। इसी तरह, हेपेटाइटिस का वायरस और भी सूक्ष्म होता है। इसका आकार ईकोली बैक्टीरिया के 40वां हिस्से के बराबर होगा। इनके इतने सूक्ष्म आकार की वजह से ही सन् 1931 में इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप बनने से पहले इनको देखा नहीं जा सका था।

अलग-अलग तरह के होते है वायरस
अलग-अलग वायरस का आकार, रंग-रूप और बनावट भी अलग-अलग होता है। हालांकि इनमें कोशिकाएं नहीं होतीं लेकिन किसी न किसी तरह की आनुवंशिक सामग्री या जेनेटिक मैटीरियल ज़रूर होता है। यह सामग्री डीएनए या आरएनए के रूप में हो सकती है, लेकिन दोनों नहीं बल्कि इनमें से कोई एक। वायरस का बाहरी हिस्सा प्रोटीन के आवरण से ढंका होता है जो भीतर मौजूद डीएनए या आरएनए को सुरक्षित रखता है। इसीलिए तो कहा जाता है कि अगर कोई दवा वायरस के प्रोटीन के साथ रासायनिक क्रिया कर लेती है तो इससे वायरस नष्ट हो जाता है।

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