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भगवान कृष्ण के भक्त थे सूरदास, समझ जाते थे किसी के भी मन की बात

दैनिक भास्कर

Apr 27, 2020, 06:14 PM IST

कृष्ण भक्त संत सूरदास का जन्म वैशाख महीने के शुक्लपक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाता है। जो कि इस साल सूरदास जयंती के रूप में 28 अप्रैल यानी आज मनाया जाएगा। हिन्दी साहित्य में भगवान श्रीकृष्ण के उपासक और ब्रजभाषा के महत्वपूर्ण कवि महात्मा सूरदास का जन्म 1478 ईस्वी में रुनकता नामक गांव में हुआ। यह गाँव मथुरा-आगरा मार्ग के किनारे स्थित है। 

  • कुछ विद्वानों का मानना है कि संत सूरदास का जन्म सीही नाम के गांव में एक गरीब सारस्वत ब्राह्मण परिवार में हुआ था। बाद में ये आगरा और मथुरा के बीच गऊघाट पर आकर रहने लगे थे। सूरदास के पिता रामदास, गायक थे। कुछ दिनों तक सूरदास आगरा के पास गऊघाट पर रहते थे। वहीं उनकाो श्रीवल्लभाचार्य मिले और सूरदास उनके शिष्य बन गए। गुरु वल्लभाचार्य ने उनको पुष्टिमार्ग की दिक्षा दी और श्रीकृष्ण लीला के पद गाने का आदेश दिया। 

संत सूरदास से जुड़ी कथाएं

1. माना जाता है कि सूरदास देख नहीं सकते थे। लेकिन उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान कृष्ण ने उन्हें अंतर्मन में ही दर्शन दिए थे। एक बार जब गुरू वल्लभाचार्य के पास बैठकर सूरदास कृष्ण भजन कर रहे थे तब गुरुजी मानसिक पूजा कर रहे थे। उस पूजा के दौरान वो श्रीकृष्ण को हार नहीं पहना पा रहे थे। सूरदास जी ने उनके मन की बात जानकर बोल दिया कि हार की गांठ खोलकर भगवान के गले में डालें फिर गांठ लगा दें। इस तरह भगवान को हार पहना लेंगे। इसके बाद गुरु वल्लभाचार्य जी समझ गए कि सूरदास पर भगवान श्रीकृष्ण की विशेष कृपा है।

2. एकबार श्रीकृष्ण भक्ति में डूबे हुए सूरदास नहीं देख नहीं पाने की वजह से किसी कुएं में गिर गए। श्रीकृष्ण भक्ति में डूबे होने के कारण सूरदास घबराए नहीं। इस पर कहा जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी कृपा से उन्हें बचाया और उन्हें अंत:करण में दर्शन भी दिए। इसके बाद भगवान ने प्रसन्न होकर सूरदास को आंखों की रोशनी लौटने का वरदान भी दिया लेकिन सूरदास ने ये कहते हुए मना कर दिया कि वो श्रीकृष्ण के अलावा किसी को नहीं देखना चाहते। इस पर भगवान कृष्ण प्रसन्न हुए।

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