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गंगा सप्तमी आज, इस पर्व पर गंगा स्नान और दान करने से खत्म होते हैं पाप

  • महामारी के कारण घर पर ही करें स्नान, दान का संकल्प लें और स्थिति सुधरने के बाद करें दान

दैनिक भास्कर

Apr 29, 2020, 06:32 PM IST

हिंदू कैलेंडर के अनुसार वैशाख शुक्ल सप्तमी को गंगा सप्तमी मनाई जाती है। जो कि 30 अप्रैल यानी आज है। काशी के पं. गणेश मिश्रा के अनुसार इस पर्व पर गंगा पूजा, स्नान और दान का विशेष महत्व है। लेकिन इस साल गंगा सप्तमी पर महामारी के कारण घाट पर जाने से बचें और  घर में ही गंगाजल से स्नान करें। इसके बाद दान का संकल्प लेकर दान करने वाली चीजों को निकालकर अलग रख लें। स्थिति सामान्य होने के बाद उनका दान कर देना चाहिए।

  • गंगा सप्तमी पर्व के लिए कथा है कि महर्षि जह्नु तपस्या कर रहे थे। तब गंगा नदी के पानी की आवाज से बार-बार उनका ध्यान भटक रहा था। इसलिए उन्होंने गुस्से में आकर अपने तप के बल से गंगा को पी लिया था। लेकिन बाद में अपने दाएं कान से गंगा को पृथ्वी पर छोड़ दिया था। इसलिए यह गंगा प्राकट्य का दिन भी माना जाता है। तब से गंगा का नाम जाह्नवी पड़ा। 

श्रीमद्भागवत में गंगा  
श्रीमद्भागवत महापुराण मे गंगा की महिमा बताते हुए शुकदेव जी राजा परीक्षित से कहते हैं कि जब शरीर की राख गंगाजल में मिलने से राजा सगर के पुत्रों को मोक्ष मिल गया था तो गंगाजल के कुछ बूंद पीने और उसमें नहाने पर मिलने वाले पुण्य की कल्पना नहीं की जा सकती। इसलिए वैशाख महीने के शुक्लपक्ष की सप्तमी तिथि पर गंगा स्नान, अन्न और कपड़ों का दान, जप-तप और उपवास किया जाए तो हर तरह के पाप दूर हो जाते हैं।

गंगा स्नान से ये 10 पाप हो जाते हैं खत्म

  • गंगा दशहरा को गंगा नदी में स्नान करने मात्र से पापों का नाश होता है तथा अनंत पुण्यफल की प्राप्ति होती है। इस दिन गंगा नदी में स्नान करना चाहिए, ऐसा न कर सकते तो घर में ही पानी में गंगाजल डालकर नहाना चाहिए। गंगा स्नान करने से 10 तरह के पाप खत्म हो जाते हैं।
  • स्मृतिग्रंथ में दस प्रकार के पाप बताए गए हैं। कायिक, वाचिक और मानसिक। इनके अनुसारकिसी दूसरे की वस्तु लेना, शास्त्र वर्जित हिंसा, परस्त्री गमन ये तीन प्रकार के कायिक यानी शारीरिक पाप हैं। कटु बोलना, असत्य भाषण, परोक्ष में यानी पीठ पीछे किसी की निंदा करना, निष्प्रयोजन बातें करना ये चार प्रकार के वाचिक पाप हैं। इनके अलावा परद्रव्य को अन्याय से लेने का विचार करना, मन में किसी का अनिष्ट करने की इच्छा करना, असत्य हठ करना ये तीन प्रकार के मानसिक पाप हैं।

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