- असम एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी के चीफ साइंटिस्ट प्रबल सायकिया ने गौरेया को संरक्षित करने की पहल
- 47 वर्षीय जयंत नियोग असम के गांवों में जाकर बच्चों और लोगों को करते हैं जागरूक
दैनिक भास्कर
Mar 20, 2020, 04:11 PM IST
लाइफस्टाइल डेस्क. पिछले 40 सालों में भारत में गौरैया की तादाद 60% तक घटी है लेकिन देश में एक ऐसा गांव भी है जहां इनके चहचहाने की आवाज गूंजती है। महज 65 घरों वाले असम के एक गांव बोरबली समुआ ने गौरैया को बचाने के लिए खास पहल शुरू की है। यहां के ग्रामीण कार्डबोर्ड से घोसला बनाकर इन्हें संरक्षित करने का प्रयास कर रहे हैं। इस अभियान की शुरुआत असम एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी के चीफ साइंटिस्ट प्रबल सायकिया ने की और लोगों तक इनके संरक्षण की बात पहुंचाने की जिम्मेदारी जयंत नियोग निभा रहे हैं। आज विश्व गौरैया दिवस है, इस मौके पर जानिए इस परिंदे को बचाने की कहानी…
अब गौरैया के लिए बनाए जा रहे कंक्रीट के घर
- पेशे से एक चावल मिल के मालिक जयंत नियोग गांव-गांव जाकर गौरैया बचाने के लिए लोगों को जागरूक करते हैं। इनके घर के आसपास कार्डबोर्ड, लकड़ी, जूते के डिब्बे और बांस की मदद से गौरैया के कई कृत्रिम घर बनाए गए हैं। जयंत के मुताबिक, गौरैया को संरक्षण देने की कोशिश 2013 में शुरू की गई थी। उस दौरान गांव में गौरैया की संख्या तो काफी थी लेकिन इनके लिए आशियाना नहीं था। धीरे-धीरे घरों में इनके लिए कृत्रिम घर बनाने की शुरुआत की गई। वर्तमान में मिट्टी के घोसलों की जगह इनके लिए क्रंकीट के घर बनाए जा रहे हैं।
- असम एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी के चीफ साइंटिस्ट प्रबल सायकिया के मुताबिक, 2009 में हुए एक सर्वे में सामने आया था कि इनकी संख्या में तेजी से कमी हो रही है। खत्म होते पेड़, बढ़ती इमारतों की संख्या, कम होते कीट और टावरों से निकलता रेडिएशन इसका कारण बताया गया। यह एक संकेत था कि हम एक गलत तरह से जीवन जी रहे हैं।
- गौरैया को बचाने के लिए वैज्ञानिक प्रबल सायकिया ने कार्डबोर्ड की मदद से कृत्रिम घोसले बनाने शुरू किए, जिसे बनाने में महज 10 रुपए का खर्च आता है। धीरे-धीरे यह तरीका लोगों को पसंद आने लगा और असम में इसे प्रमोट किया गया। उनके मुताबिक, इन कृत्रिम घोसलों की मदद से गौरैया को परभक्षियों से बचाया जा सकता है। सायकिया ने इस अभियान के तहत असम के कई गांवों में 20 हजार से अधिक डिब्बों का वितरण किया।
- सायकिया कहते हैं, हम लोगों को कचरे को बेहतर इस्तेमाल का तरीका बता रहे हैं ताकि वे बेकार डिब्बों की मदद से गौरैया के लिए घोसले तैयार कर सकें। गौरैया संरक्षणकर्ता जयंत का कहना है कि वैज्ञानिक प्रबल के द्वारा दिए गए डिब्बे वे लोगों तक पहुंचा रहे हैं। इस पहल का नतीजा यह है कि अब गौरैया की संख्या बढ़ रही है।