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केदारनाथ मंदिर के भीतर 10 फीट तक भर गया था पानी, देखते-ही-देखते 50 लोग बह गए थे, तब मंदिर में मौजूद रहे पंडित ने बताई हादसे की सुबह की कहानी

  • केदारनाथ हादसे पर मंदिर की तीर्थ पुरोहित समाज समिति के अध्यक्ष विनोद शुक्ला से बातचीत
शशिकांत साल्वी

शशिकांत साल्वी

Jun 17, 2020, 05:36 AM IST

16-17 जून 2013 को केदारनाथ क्षेत्र में जल प्रलय आया था, जिसमें दस हजार ज्यादा लोग बह गए थे। इस हादसे को 7 साल हो गए हैं। आज भी यहां के लोगों को इस तबाही का दृश्य याद है। केदारनाथ मंदिर के तीर्थ पुरोहित समाज समिति के अध्यक्ष पं. विनोद शुक्ला 17 जून की सुबह मंदिर में ही थे। जानिए उनकी जुबानी हादसे की सुबह मंदिर में क्या-क्या हुआ था…

कई दिनों से हो रही थी बारिश

16 जून से पहले भी यहां कई दिनों से लगातार बारिश हो रही थी, इसी वजह से 17 जून की सुबह मंदाकिनी नदी उफान पर आ गई थी। नदी का बहाव इतना तेज था कि बड़ी-बड़ी चट्टानें तक बह गईं, कुछ ही देर में केदारनाथ का पूरा क्षेत्र तबाह हो गया। इस जल प्रलय में क्षेत्र के सभी घर, होटल और धर्मशालाएं बर्बाद हो गए थे। इस पूरे हादसे में हजार साल पुराना केदारनाथ मंदिर बच गया। यहां के लोग इसे चमत्कार ही मानते हैं।

16-17 जून, इन दो दिनों में पूरा केदारनाथ क्षेत्र मंदाकिनी नदी के बहाव से तबाह हो गया था।

17 जून की सुबह 7.30 का समय था जब मंदाकिनी नदी ने अपना रौद्र रूप दिखाया

16 जून की शाम हम घर में थे। हमारा घर केदारनाथ क्षेत्र में ही है। कई दिनों से बारिश लगातार हो रही थी। 16 जून की रात कई लोग बहाव में बह चुके थे। 17 जून की सुबह हम मंदिर पहुंचे। वहां सुबह करीब 7.30 बजे एकदम मंदाकिनी नदी का तेज बहाव मंदिर तक पहुंच गया था। उस समय मंदिर में करीब 250 लोग मौजूद थे। मंदिर में पानी बढ़ने लगा, सभी लोग मंदिर में सुरक्षित स्थान खोजने लगे थे।

कुछ मिनट में 10 फीट पानी भर गया

कुछ ही मिनटों में मंदिर में करीब 10 फीट पानी भरा गया था। लोग मंदिर की दीवारों के सहारे खुद के प्राण बचाने की कोशिश कर रहे थे। 250 में से करीब 50 लोग तो नदी के बहाव में बह गए थे। बाकी बचे सभी लोग किसी तरह जान बचाने में लगे रहे। करीब 5 मिनट बाद मंदिर से पानी कम होने लगा था। इसके बाद हम किसी तरह बच सके।

मंदाकिनी नदी के तेज बहाव में विशाल चट्टान बहकर आ गई थी, जो कि मंदिर के पीछे टिक गई थी। क्षेत्र के लोग इसे भीम शिला कहते हैं।

बहकर आई चट्टान ने बचाया मंदिर को

मंदिर के पीछे एक बड़ी चट्टान बहकर आ गई थी। इस चट्टान की वजह से नदी का पानी दो हिस्सों में बंट गया था और मंदिर को कोई नुकसान नहीं हुआ। ये केदारनाथजी का चमत्कार ही था। मंदिर बच गया, लेकिन इन दो दिनों में केदारनाथ क्षेत्र पूरी तरह तबाह हो गया था।

श्रद्धांजलि और शांति पाठ

मंगलवार को केदारनाथ धाम में 2013 के हादसे में मृत हजारों श्रद्धालुओं की आत्म शांति के लिए विशेष शांति पाठ किया। इस दौरान यहां करीब 25 लोग उपस्थित थे। बद्रीनाथ धाम के धर्माधिकारी भुवनचंद्र उनियाल ने बताया कि बद्रीनाथ के रावल ईश्वरप्रसाद नंबूदरी और समिति के लोगों ने भी केदारनाथ हादसे में मृत लोगों की शांति के लिए शांति पाठ किया है।

केदारनाथ धाम शिवजी के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है।

आदिगुरु शंकराचार्य ने बनवाया था ये मंदिर

मंदिर का इतिहास हजार साल से भी ज्यादा पुराना है। आदिगुरु शंकराचार्य ने ये मंदिर बनवाया था। मंदिर उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है। 29 अप्रैल को मंदिर के कपाट खुल गए हैं। लेकिन, अभी कोरोना वायरस की वजह से दर्शनार्थियों का प्रवेश वर्जित है। नियमित रूप से पारंपरिक विधि-विधान से पूजा-पाठ हो रही है, बस यहां बाहरी लोगों का आना वर्जित है।

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