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देवताओं के ऋषि होने के कारण नारदजी को मिला है देवर्षि पद

दैनिक भास्कर

May 07, 2020, 07:10 PM IST

9 मई को ज्येष्ठ महीने के कृष्णपक्ष की द्वितिया तिथि रहेगी। इस दिन देवर्षि नारद जयंती मनाई जाती है। भगवान विष्णु के परम भक्त नारद ब्रह्मा जी के पुत्र हैं। इन्होंने भगवान विष्णु की भक्ति और तपस्या की। नारदजी पर देवी सरस्वती की भी कृपा थी। जिससे उन्हें हर तरह की विद्या में महारथ हासिल थी। महाभारत के सभा पर्व के पांचवें अध्याय में नारद जी के व्यक्तित्व के बारे में बताया गया है कि देवर्षि नारद वेद और उपनिषदों के मर्मज्ञ, देवताओं के पूज्य, इतिहास व पुराणों के विशेषज्ञ, ज्योतिष के प्रकाण्ड विद्वान और सर्वत्र गति वाले हैं। यानी वो हर लोक में प्रवेश कर सकते हैं। इसलिए इन्हें देवताओं के ऋषि यानी देवर्षि का पद मिला हुआ है।

  • 18 महापुराणों में देवर्षि नारद के नाम से एक पुराण है। जिसे बृहन्नारदीय पुराण कहा जाता है। धर्म ग्रंथों में बताई गई बड़ी घटनाओं में देवर्षि नारद का बहुत महत्व है। नारद मुनि के श्राप के कारण ही भगवान विष्णु को श्रीराम का अवतार लेना पड़ा। नारदजी के कहने पर ही राजा हिमाचल की पुत्री पार्वती ने तपस्या की और शिवजी को प्राप्त किया। 

ग्रंथों में बताई गई नारद जी से जुड़ी कथाएं

नारद मुनि ने दिया भगवान विष्णु को श्राप

  • एक बार नारदजी को कामदेव पर विजय प्राप्त करने का गर्व हुआ। उनके गर्व का खण्डन करने के लिए भगवान विष्णु ने अपनी माया से सुंदर नगर बसाया। जहां राजकुमारी का स्वयंवर हो रहा था। नारद वहां गए और राजकुमारी पर मोहित हो गए। नारदजी, भगवान विष्णु का सुंदर रूप लेकर उस राजकुमारी के स्वयंवर में पहुंचे। लेकिन पहुंचते ही उनका मुंह बंदर जैसा हो गया। इस पर राजकुमारी बहुत गुस्सा हुई। उसी समय भगवान विष्णु राजा के रूप में आए और राजकुमारी को लेकर चले गए।
  • नारदजी को जब पूरी बात पता चली तो उन्होंने गुस्से में आकर भगवान विष्णु को श्राप दिया कि जिस तरह आज मैं स्त्री के लिए व्याकुल हो रहा हूं, उसी प्रकार मनुष्य जन्म लेकर आपको भी स्त्री के वियोग में रहना पड़ेगा। माया का प्रभाव हटने पर नारदजी को बहुत दुख हुआ। तब भगवान विष्णु ने उन्हें समझाया कि ये सब माया का प्रभाव था, इसमें आपका कोई दोष नहीं है। नारद जी के प्रभाव से ही भगवान विष्णु का श्रीराम अवतार हुआ।

नारद मुनि ने ही बताया था कैसा होगा पार्वती का पति

  • सती के आत्मदाह के बाद देवी शक्ति ने पर्वतराज हिमालय के यहां पार्वती के रूप में जन्म लिया। जब नारदजी वहां गए तो राजा हिमाचल से बोले कि तुम्हारी कन्या में बहुत सारे गुण हैं। यह स्वभाव से ही सुन्दर, सुशील और शांत है। लेकिन इसका पति माता-पिता विहीन, उदासीन, योगी, जटाधारी और सांपों को गले में धारण करने वाला होगा। यह सुनकर पार्वती के माता-पिता चिंतित हुए और उन्होंने देवर्षि से इसका उपाय पूछा।
  • तब नारद जी बोले जो दोष मैंने बताए मेरे अनुमान से वे सभी भगवान शिव में है। शिवजी के साथ पार्वती का विवाह हो जाए तो ये दोष गुण के समान हो जाएंगे। यदि तुम्हारी कन्या तप करे तो शिवजी प्राप्त हो सकते हैं। इसके बाद पार्वती ने अपनी मां से कहा कि मां मुझे एक ब्राह्मण ने सपने में कहा है कि जो नारदजी ने कहा है तू उसे सत्य समझकर जाकर तप कर। यह तप तेरे लिए दुखों का नाश करने वाला है। उसके बाद माता-पिता को बड़ी खुशी से समझाकर पार्वती तप करने गई।

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