- श्रीमद्भगवद्गीता के दसवें अध्याय में श्रीकृष्ण ने कहा है कि मैं ही देवर्षियों में नारद हूं
दैनिक भास्कर
May 08, 2020, 12:02 AM IST
देवऋषि नारद मुनि के जन्म दिवस के रूप में ज्येष्ठ महीने के कृष्ण की द्वितीया तिथि को नारद जयंती मनाई जाती है। इस साल नारद जयंती 9 मई और पंचाग भेद के कारण कुछ जगहों पर 8 मई को मनाई जा रही है। शास्त्रों के अनुसार नारद मुनि ब्रह्मा के सात मानस पुत्रों में से एक हैं। इनका जन्म ब्रह्मा जी की गोद से हुआ था। ब्रह्मा जी ने नारद को सृष्टि कार्य का आदेश दिया था, लेकिन नारद ने इससे इनकार कर दिया और भगवान विष्णु की भक्ति में लग गए। नारद भगवान विष्णु के परम भक्तों में से एक माने जाते हैं। शास्त्रों में इन्हें भगवान का मन भी कहा गया है।
क्यों कहते हैं देवर्षि
श्रीमद्भगवद्गीता के दसवें अध्याय के 26वें श्लोक में भगवान श्रीकृष्ण ने नारदजी के लिए कहा है कि – देवर्षीणाम् च नारद:। यानी मैं देवर्षियों में नारद हूं। देवर्षि नारद, महाग्रंथों को रचने वाले ऋषि वेदव्यास, वाल्मीकि और शुकदेव के गुरु हैं। नारदजी ने ही प्रह्लाद, ध्रुव, राजा अम्बरीष जैसे महान भक्तों को ज्ञान और प्रेरणा देकर भक्ति मार्ग में आगे बढ़ाया। इसी कारण उनको देवर्षि पद दिया गया है। यानी वो देवताओं के ऋषि हैं। कुछ ग्रंथों में कहा जाता है कि कठिन तपस्या के बाद नारद को ब्रह्मर्षि पद भी मिला था। नारद बहुत ज्ञानी थे, इसी कारण दैत्य हो या देवी-देवता, हर जगह उनको पूरा सम्मान दिया जाता थ।
संगीत और पत्रकारिता वालों के लिए खास हैं नारद जी
- नारद जी श्रुति-स्मृति, इतिहास, पुराण, व्याकरण, वेदांग, संगीत, खगोल-भूगोल, ज्योतिष, योग आदि अनेक शास्त्रों में पारंगत थे।
- ये वीणा द्वारा भगवान विष्णु की भक्ति के प्रचारक थे।
- मां सरस्वती की कृपा इन पर होने से ये अत्यंत बुद्धिमान और संगीत में निपुण थे।
- नारद जी का सम्मान हर लोक में होता था। देवताओं के अलावा ज्ञानी, बुद्धिमान और चतुर होने के कारण दैत्य भी नारद जी का सम्मान करते थे।
- नारद जी वृतांतों का वहन करने वाले एक विचारक थे। इसलिए संगीत व पत्रकारिता में रुचि रखने वालों को खासतौर से नारद जी की पूजा करनी चाहिए।