- बायोटेक्नोलॉजी कंपनी ग्रेल इंक ने विकसित किया नया ब्लड टेस्ट, बोस्टन के डाना फार्बर कैंसर इंस्टीट्यूट में हो रहा ट्रायल
- ट्यूमर डीएनए की मदद से ब्लड में पहुंचकर पूरे शरीर में सर्कुलेट होता है, नई जांच में इसी डीएनए की एनालिसिस की जाती है
दैनिक भास्कर
Apr 03, 2020, 04:57 PM IST
हेल्थ डेस्क. एक ब्लड टेस्ट से 50 तरह के कैंसर का पता चल सकेगा। वैज्ञानिकों ने इस टेस्ट के जरिए शुरुआती स्तर पर ही कैंसर का पता लगाने की उम्मीद जताई है। एन्नल्स ऑफ ऑन्कोलॉजी जर्नल में प्रकाशित शोध के मुताबिक, नए ब्लड टेस्ट से कैंसर की सटीक जानकारी दी जा सकती है। इस टेस्ट पर बोस्टन के डाना फार्बर कैंसर इंस्टीट्यूट के शोधकर्ता काम कर रहे हैं।
कैंसर शरीर के किस हिस्से में, पता चलेगा
शोधकर्ताओं के मुताबिक, कैंसर का पता शुरुआती स्टेज में लगने पर मरीज का इलाज करना संभव है। नए ब्लड टेस्ट से यह पता चल जाता है कि इंसान को कैंसर है और यह शरीर के किस हिस्से में है। इसकी सटीक जानकारी मिलती है। इसके अलावा यह कैंसर प्रकार बताने में भी सक्षम है।
ऐसे काम करती है तकनीक
इस टेस्ट को विकसित करने वाली बायोटेक्नोलॉजी कंपनी ग्रेल इंक ने सिक्वेंसिंग तकनीक का इस्तेमाल किया है। कंपनी ने नेक्स्ट जेनेरेशन की सीक्वेंसिंग तकनीक से डीएनए की जांच की, जिनसे जीन के सक्रिय या निष्क्रिय होने का पता चला। टेस्ट के मुताबिक, ट्यूमर डीएनए में जाकर पूरे शरीर में ब्लड की मदद से सर्कुलेट होता है। जांच में डीएनए में होने वाले रसायनिक बदलाव की एनालिसिस की जाती है, जिसकी मदद से कैंसर का पहली स्टेज में पता चल जाता है।
3,052 लोगों के ब्लड सैम्पल लिए गए
शोध के दौरान 3,052 लोगों के ब्लड सैम्पल लिए गए। इनमें 1,531 लोग कैंसर से पीड़ित थे जबकि 1,521 लोगों को कैंसर नहीं था। बोस्टन के डाना फार्बर कैंसर इंस्टीट्यूट में शोधकर्ता डॉ. जेफ्री ऑक्सनार्ड ने कहा, टेस्ट की मदद से स्पष्ट रूप से पता चला कि उनमें से कौन कैंसर रोगी हैं और कौन नहीं हैं। नए टेस्ट से यह भी पता चला कि जहां से कैंसर की शुरुआत हुई है वो कौन से ऊतक हैं।
शुरुआती स्टेज की 18 फीसदी तक सटीक जानकारी
शोधकर्ताओं के मुताबिक, जब किसी को वास्तव में कैंसर होता है, तो ही यह उसकी जानकारी देता है। नया टेस्ट सीधेतौर पर डीएनए की एनालिसिस करता है। यह टेस्ट पहली स्टेज वाले 18 फीसदी कैंसर रोगियों में ही कैंसर का सही पता लगाने में सक्षम साबित हुआ है। जबकि चौथी स्टेज के रोगियों में यह 93 फीसदी तक सही जानकारी देता है।