- कबीर ने दोहे में बताया है हमें कब तक नहीं मानना चाहिए कि हम सफल हो गए हैं
दैनिक भास्कर
May 08, 2020, 11:21 AM IST
जब तक हमारा काम पूरा न हो जाए, तब तक जरा सी भी लापरवाही नहीं होने देना चाहिए। अंतिम समय तक सावधान रहना चाहिए, वरना बने बनाए काम बिगड़ जाते हैं। इस संबंध में संत कबीर ने एक दोहे में बताया है कि हमें कब तक नहीं मानना चाहिए कि हम सफल हो गए हैं…
कबीर ने दोहे में लिखा है कि-
पकी खेती देखिके, गरब किया किसान।
अजहूं झोला बहुत है, घर आवै तब जान।
इस दोहे में अजहूं झोला शब्द का अर्थ है झमेला। फसल पक चुकी है, किसान बहुत प्रसन्न है। यहीं से किसान को अभिमान हो जाता है, लेकिन फसल काटकर घर तक ले जाने में बहुत सारे झमेले हैं। कई कठिनाइयां हैं। जब तक फसल घर न आ जाए, तब तक सफलता नहीं माननी चाहिए। इसीलिए कहा गया है घर आवै तब जान।
यह बात हमारे कार्यों पर भी लागू होती है। कोई भी काम करें, जब तक अंजाम पर न पहुंच जाएं, यह बिल्कुल न मान लें कि हम सफल हो चुके हैं।
बाधाएं कई तरह की होती हैं। इसी में से एक बाधा है अभिमान और दूसरी है लापरवाही। इसलिए कबीर ने इस ओर इशारा किया है। अब सवाल यह है कि अपनी सफलता को पूर्ण रूप देने के लिए अभिमान रहित कैसे रहा जाए? इसके लिए परमपिता परमेश्वर के प्रति लगातार प्रार्थना व आभार व्यक्त करते रहें, क्योंकि जब हम प्रार्थना में डूबे हुए होते हैं तो हमारी भावनाओं में, विचारों और शब्दों में समर्पण और विनम्रता का भाव अपने आप आता है। प्रार्थना करें और आभार मानें कि हे परमात्मा! आपका हाथ हमारी पीठ पर नहीं होता तो ये सफलता संभव नहीं थी।