
दैनिक भास्कर
Apr 05, 2020, 06:30 PM IST
एजुकेशन डेस्क. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कोरोनावायरस से उत्पन्न संक्रमण और इसके फलस्वरूप उपजी बीमारी कोविड-19 को महामारी घोषित किया है। विभिन्न प्रकार के वायरस हमारे शरीर में प्रवेश करते रहते हैं। प्रत्येक वायरस के पास प्रोटीन की चाबी समान संरचना होती है। मानव शरीर की उन कोशिकाओं में जहां इसकी चाबी लग जाती है, वहां के ताले को खोलकर वायरस शरीर के उस अंग विशेष की कोशिका में अपना जेनेटिक मटेरियल डाल देता है।
कैसे बचता है शरीर?
जैसे ही स्वस्थ कोशिका (यानी पोषक कोशिका) वायरस से संक्रमित होती है, वह वायरस जिनोम द्वारा बनाए जा रहे प्रोटीन के टुकड़े अपनी बाह्य सतह पर प्रदर्शित करने लगती है। यह शरीर की सुरक्षा प्रणाली को सचेत करने का एक तरीका है जिससे प्रतिरक्षा तंत्र समझ जाता है कि कोशिका में किसी वायरस का संक्रमण हो गया है। तब प्रतिरक्षा तंत्र की एक महत्वपूर्ण कोशिका जिसे साइटोटॉक्सिक-टी कोशिका कहते हैं, सक्रिय हो जाती है। यह साइटोटॉक्सिक-टी कोशिका संक्रमित पोषक कोशिका को खोजकर उसे अपने स्रावित रसायनों से नष्ट कर देती है। इस प्रकार से संक्रमित कोशिका वायरस सहित नष्ट हो जाती है और प्रतिरक्षा तंत्र की भोजक कोशिका (फेगोसायटिक) उसे खा जाती है।
क्यों बच जाता है वायरस?
जैसे पोषक कोशिका ने वायरस से बचने के उपाय खोजे हैं, वैसे ही वायरस ने भी बचने तथा अस्तित्व को बचाए रखने के लिए अनेक अनुकूलन विकसित कर लिए हैं। ऐसा ही एक तरीका यह है कि वायरस संक्रमित कोशिकाओं को वायरस प्रोटीन के टुकड़े प्रदर्शित करने से रोक देता है। इससे टी-कोशिका को संक्रमण का पता ही नहीं चलता और शरीर में संक्रमण फैलता रहता है। हालांकि प्रकृति ने इसका भी इंतजाम किया है। जब वायरस प्रोटीन के टुकड़े प्रदर्शित करने से रोकता है, तो स्थिति को भांपने वाली एक और कोशिका हमारे शरीर में है- नेचुरल किलर कोशिका। ये भी शरीर में घूम-घूमकर प्रतिरक्षा तंत्र में बाहरी सेंधमारी को रोकती हैं। जब इन्हें किसी कोशिका में सामान्य से कम संख्या में प्रोटीन का प्रदर्शन ज्ञात होता है, तो समझ जाती है कि वायरस ने कुछ गड़बड़ की है। तब ये भी टी-कोशिकाओं के समान जहरीले रसायन स्रावित कर संक्रमित कोशिका को नष्ट कर देती हैं।
कोशिका की खुदकुशी!
साइटोटॉक्सिक टी-कोशिकाओं और नेचुरल किलर कोशिकाओं में स्वयं द्वारा निर्मित रसायन से भरे गुब्बारे होते हैं जिन्हें ग्रेन्युल्स कहते हैं। ग्रेन्युल्स में पाए जाने वाले रसायनों में से एक पेरफोरिस प्रोटीन संक्रमित कोशिका में अनेक छिद्र कर देता है। ग्रेन्युल्स में पाया जाने वाला एक अन्य एन्जाइम ग्रेनाजाइम छिद्रों से संक्रमित कोशिका में प्रवेश कर उसे आत्महत्या के लिए उकसाता है। तकनीकी भाषा में कोशिका आत्महत्या को एपोपटोसिस या ‘प्रोग्राम्ड सेल डेथ’ भी कहते हैं।
वायरस के शरीर में प्रवेश करने और प्रतिरक्षा तंत्र द्वारा रोकथाम में समय लगता है, जिसे आम भाषा में कहते हैं कि वायरस अपनी सायकल पूरी कर रहा है। प्रतिरक्षा तंत्र के सक्रिय होते ही रोग समाप्त हो जाता है और प्रतिरक्षा तंत्र जहां विफल हो जाता है, यह संक्रमण मृत्यु का कारण भी बन जाता है।