- नीति-नियम, न्याय और व्यवहार के जानकार थे नारद जी, भगवान विष्णु से मिला इन्हें हर कला का ज्ञान
दैनिक भास्कर
May 09, 2020, 12:03 PM IST
आज नारद जयंती है। नारद जयंती देवऋषि नारद मुनि के जन्म दिवस के रूप में ज्येष्ठ महीने के कृष्णपक्ष की द्वितीया तिथि को मनाई जाती है। ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार देवर्षि नारद का जन्म ब्रह्मा जी के कंठ से हुआ था। ये ब्रह्मा जी के मानस 7 मानस पुत्रों में एक थे। मानस पुत्र यानी मन से पैदा हुए थे। नारदजी ने ब्रह्माजी से ही संगीत की शिक्ष ली और भगवान विष्णु की भक्ति में लग गए। ब्रह्माजी ने नारद को विवाह करने और सृष्टि के कामों में लगाना चाहा, लेकिन उन्होंने भगवान विष्णु की ही भक्ति की। इस पर ब्रह्माजी ने नारद को अविवाहित रहने का श्राप दे दिया। इसलिए नारद मुनि का विवाह नहीं हुआ।
नीति-नियम, न्याय और व्यवहार के जानकार
भगवान विष्णु ने नारदजी को कई तरह माया के बारे में समझाया था। इसके अलावा कई कलाओं और विद्याओं का भी ज्ञान दिया था। जिससे वो हर कला में माहिर थे। नारद जी भक्ति मार्ग के प्रमुख आचार्य भी हैं। इन्होंने बताया कि भक्ति से भगवान को प्राप्त कैसे किया जा सकता है। इसके अलावा नारद जी को 4 वेदों का ज्ञान था। इसलिए अन्य ऋषि मुनि नारद जी से ही धर्म संबंधी नीति-नियम, न्याय और व्यवहार संबंधी ज्ञान लेते थे। इसके अलावा
नारदजी योगनिष्ठ, संगीत शास्त्री और औषधियों के जानकार भी थे। ये शास्त्रों के आचार्य थे। देवर्षि नारद को श्रुति-स्मृति, पुराण, इतिहास, व्याकरण, वेदांग, संगीत, खगोल-भूगोल और ज्योतिष और योग जैसे कई शास्त्रों के प्रकांड विद्वान माना जाता है।
सृष्टि के पहले पत्रकार
मान्यता है कि नारद मुनि का जन्म सृष्टि के रचयिता ब्रह्माजी की गोद से हुआ था। मान्यता है कि नारद तीनों लोकों में विचरण करते रहते हैं। नारद को भगवान विष्णु का परम भक्त माना जाता है। उनका मुख्य उद्देश्य भक्त की पुकार को भगवान विष्णु तक पहुंचाना है। देवर्षि नारद सृष्टि के पहले ऐसे संदेश वाहक थे जो एक लोक से दूसरे लोक तक खबरें पहुंचाने का काम करते थे। उन्हें सृष्टि का पहला पत्रकार माना जाता है। मान्यता है कि भगवान विष्णु को खुश करने के लिए नारद जी की पूजा करना आवश्यक है। नार शब्द का अर्थ जल होता है। ये सभी को जलदान, ज्ञानदान व तर्पण करने में मदद करने के कारण नारद कहलाए।
पुराणों में बताए गए देवर्षि नारद के प्रमुख काम –
- वाल्मीकि को रामायण की रचना करने की प्रेरणा दी।
- व्यास जी से भागवत की रचना करवाई।
- प्रह्लाद और ध्रुव को उपदेश देकर महान भक्त बनाया।
- देवताओं के गुरु बृहस्पति और शुकदेव को उपदेश देकर उनकी शंका दूर की।
- इन्द्र, चन्द्र, युधिष्ठिर, श्रीराम और श्रीकृष्ण को उपदेश देकर उन्हें अपना कर्तव्य याद दिलाया।
- कंस को आकाशवाणी का अर्थ समझाया।
- शिवजी द्वारा जलंधर राक्षस का विनाश करवाया।
व्रत-उपवास और रात्रि जागरण होता है
श्रद्धालु इस दिन उपवास रखते हैं। पवित्र ग्रंथों के पाठ के साथ अनुष्ठान और विशेष प्रार्थनाएं की जाती हैं। शास्त्रों के अनुसार नारद जयंती पर रात्रि जागरण किया जाता है और भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए मंत्रों का जाप किया जाता है। रात्रि जागरण संभव न हो तो संध्या काल पूजन अवश्य करें। इस दिन विष्णु सहस्रनाम’ का पाठ करना अत्यधिक शुभ माना जाता है। पूजा समाप्त होने के पश्चात भक्त भगवान विष्णु की आरती करते हैं।
पूजा विधि
- अन्य हिंदू त्योहारों के समान, इस दिन सूर्योदय से पहले स्नान करने का बहुत महत्व है। स्नान करने के बाद, साफ वस्त्र पहनें।
- नारद जी भगवान विष्णु के अनन्य भक्त हैं, इसलिए उनकी जयंती पर भगवान विष्णु की पूजा खासतौर से की जाती है।
- इस दिन भगवान विष्णु को चंदन, तुलसी के पत्ते, कुमकुम, अगरबत्ती, फूल और मिठाई अर्पित करें।
- दिनभर उपवास रखें। दाल व अनाज का सेवन न करें। केवल दूध और फलों का सेवन करें।
- रात्रि जागरण करना चाहिए। विष्णु सहस्त्रनाम का जाप करें और ज्यादा से ज्यादा समय उनके अन्य मंत्रों का पाठ करें।
- इसके बाद भगवान विष्णु की आरती करें।
- ब्राह्मणों को भोजन, कपड़े और पैसे दान करने चाहिए।