- 3 अप्रैल को सीने में दर्द, सांस लेने में तकलीफ, गले में सूजन और बुखार की शिकायत हुई थी
- आनन-फानन में हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया लेकिन पहली रिपोर्ट निगेटिव थी
दैनिक भास्कर
Apr 11, 2020, 07:28 PM IST
साओ पाउलो. कोरोनावायरस अमेजन के जंगलों भी पहुंच गया है। ब्राजील और वेनेजुएला के बॉर्डर पर रहने वाली यानोमामी जनजाति समूह में पहली मौत हुई है। 15 साल के लड़के की रिपोर्ट पॉजिटिव आई थी। 3 अप्रैल को उसके सीने में दर्द, सांस लेने में तकलीफ, गले में सूजन और बुखार की शिकायत हुई थी। स्थानीय अस्पताल में भर्ती करने के बाद शुरुआत जांच निगेटिव आई लेकिन दूसरी जांच पॉजिटिव आई और कोरोनावायरस की पुष्टि हुई। कुछ मीडिया रिपोर्ट में इसी जनजाति के 7 और लोगों के संक्रमित होने की बात कही गई है लेकिन आधिकारिक तौर पर इस जनजाति के 15 साल के लड़के में संक्रमण के बाद मौत का पहला मामला है।
महामारी घोषित होने के बाद वह स्कूल से घर लौटा था
ब्राजील के ग्लोबो न्यूजपेपर के मुताबिक, देश में महामारी घोषित होने के बाद वह स्कूल से म्यूकेजई नदी के पास अपने घर पहुंचा थ। तबियत खराब होने पर उसे स्थानीय अस्पताल में भर्ती कराया गया। साओ पाउलो की फेडरल यूनिवर्सिटी की शोधकर्ता डॉ. सोफिया मेन्डॉन्का के मुताबिक, अब कोरोनावायरस ब्राजील के आदिवासी समुदाय की तरफ बढ़ रहा है।
यानोमामी जनजाति के 200 गांव हैं
ब्राजील में 200 ऐसे गांव हैं जहां यानोमामी जनजाति रहती है। ब्राजील के मेडिकल एक्सपर्ट का कहना है कि अब कोरोनावायरस का खतरा यहां के मूल निवासी जैसे यानोमामी जनजाति के लोगों को है। इस संकट के बारे में कुछ भी कहा नहीं जा सकता। ब्राजील में अब तक कोरोनावायरस के 18,176 मामले सामने आ चुके हैं और 957 मौतें हो चुकी हैं।
पहली कोरोना पॉजिटिव महिला
ब्राजील के स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक, अप्रैल की शुरुआत में अमेजन के वर्षावन में कोरोना का पहला मामला एक महिला में सामने आया था। उसकी उम्र 20 साल है और वह कोकामा जनजाति से ताल्लुक रखती है। यह जनजाति कोलम्बिया बॉर्डर से 880 किलोमीटर ऊंचाई पर रहती थी।
कौन है यानोमामी जनजाति के लोग
इस जनजाति के बारे में पहली बार 1940 में पता चला था जब ब्राजील सरकार ने वेनेजुएला से सीमा रेखा तय करने के लिए अपनी टीम भेजी थी। इस जनजाति के लोग बाहरी दुनिया से सम्पर्क नहीं रखना चाहते हैं। इसकी सबसे ज्यादा संख्या ब्राजील और वेनेजुएला बॉर्डर पर है। ऐसा कहा जाता है कि ये जनजाति एशिया और अमेरिका से करीब 15 हजार साल पहले यहां आई थी।