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सोशल डिस्टेंसिंग के लिए 6 फीट नहीं कम से कम 13 फीट दूरी जरूरी, संक्रमितों को घर में क्वारैंटाइन करना भी गलत

  • रिपोर्ट के मुताबिक- छींक या खांसी से निकली ड्रॉपलेट्स (बूंदें) इतनी बारीक होती हैं कि वे कई घंटों तक उसी हवा में बनी रहती है
  • यह साफ नहीं है कि क्या ये अल्ट्राफाइन कण संक्रामक हैं, कहा जा रहा है कि डब्ल्यूएचओ ने इसके जोखिम को कम आंका

दैनिक भास्कर

Apr 12, 2020, 03:53 PM IST

बीजिंग. हेल्थ डेस्क. दुनियाभर में कोरोना के खौफ के बीच संक्रमण रोकने के लिए सोशल डिस्टेसिंग सबसे ज्यादा अमल में लाया गया तरीका है। कोरोना से बचने के लिए दो इंसानों के बीच कम से कम 6 फीट दूरी रखना जरूरी बताया गया है। पर, अब चीन के वैज्ञानिकों ने वुहान के एक अस्पताल से मिली जांच रिपोर्ट के बाद 6 की बजाय 13 फीट दूरी बनाए रखने पर जोर दिया है। इसके साथ ही कोरोना पर काबू पाने वाले इन विशेषज्ञों ने मरीजों को होम क्वारैंटाइन करने की रणनीति को गलत करार देते हुए इससे क्लस्टर संक्रमण फैलने का खतरा बताया है।

चीनी वैज्ञानिकों ने वुहान के सबसे बड़े अस्थायी रूप से तैयार किए गए हुओशेंजेन अस्पताल में एक इंटेसिव केयर यूनिट और जनरल कोविड-19 वार्ड के फर्श और हवा के नमूनों की जांच के बाद ये निष्कर्ष निकाला है। वुहान ही कोरोनस वैश्विक महामारी का केंद्र माना जा रहा है। इस अस्पताल के दोनों वार्डों में 19 फरवरी और 2 मार्च के बीच कुल 24 मरीजों को रखा गया था, जब वुहान घातक वायरस की चपेट में था।

बीजिंग में एकेडमी ऑफ मिलिट्री साइंस की एक टीम ने फर्श समेत विभिन्न सतहों पर भी इस महामारी के संक्रामक वायरस के जमाव का परीक्षण किया है, जिसकी रिपोर्ट साइंटिफिक जर्नल इमर्जिंग इंफेक्शियस डिसीज में छपी है।

चीन के वुहान स्थित हॉस्पिटल का दृश्य जिसमें डॉक्टर हर एक मरीज से जुड़ी जानकारियों को दर्ज कर रहे हैं।

इसी रिपोर्ट की 10 बड़ी और चौंकाने वाली बातें

1. टीम ने यहां पर एयरोसोल ट्रांसमिशन से अपनी जांच की और पाया कि जब वायरस से भरी छींक या खांसी से निकली ड्रॉपलेट्स (बूंदें) इतनी बारीक होती हैं कि वे हवा का हिस्सा बन जाती है और कई घंटों तक उसी हवा में बनी रहती है।
2. संक्रमित करने वाली ये कोरोना ड्रॉपलेट्स सामान्य खांसी या छींक की ड्रॉपलेट्स से अलग है, जो कुछ सेकंड के भीतर जमीन पर गिर जाती हैं और फर्श पर घूमती रहती हैं।
3. उन्होंने पाया कि वायरस से भरे एरोसोल को एक मरीज से दूसरे स्वस्थ व्यक्त की ओर फेंका जाए तो उसका कंसन्ट्रेशन यानी सांद्रता 13 फीट तक जाते – जाते कमजोर पड़ती है, इसे डाउनस्ट्रीम कहते है। वहीं, 8 फीट दूरी तक तो यह बड़ी प्रभावी होती है, जिसे अपस्ट्रीम कहा जाता है।
4. इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि दुनियाभर में सरकार और प्रशासन जिस 6 फीट का सोशल डिस्टेंस गाइडेंस की बात कर रहे हैं वह पर्याप्त नहीं है। इसे कम से कम 13 फीट होना चाहिए।

25 मार्च को पीएम मोदी की कैबिनेट मीटिंग में प्रधानमंत्री से लेकर सभी मंत्री सोशल डिस्टेंसिंग का पालन किया और अपनी कुर्सियों के बीच अंतर रखा था। 

5. हालांकि अभी यह स्पष्ट नहीं है कि क्या ये अल्ट्राफाइन कण संक्रामक हैं क्योंकि कहा जा रहा है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अब तक इसके जोखिम को कम आंका है।
6.  टीम ने फर्श समेत विभिन्न सतहों पर पर भी इस महामारी के संक्रामक वायरस के जमाव का परीक्षण कर अपने निष्कर्षों में कहा है कि वायरस वार्डों के फर्श पर सबसे अधिक सांद्रता में जमा था, संभवत: इसलिए कि गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव और हवा के बहाव के कारण अधिकांश वायरस ड्रॉपलेट्स जमीन पर तैरने लगते हैं।
7. टीम ने लिखा कि हमें कंप्यूटर मॉउस, खाली बोतलों, पलंग की रैलिंग और दरवाजे के नॉब्स जैसे अक्सर छुई जाने वाली सतहों पर वायरस की उच्च मात्रा मिली और इसके अलावा  आईसीयू के मेडिकल स्टाफ के जूते के आधे सैंपल पॉजिटिव मिले हैं और इसलिए कहा जा सकता है कि स्टाफ के जूते के वायरस के कैरियर यानी वाहक हो सकते हैं।
8. वैज्ञानिकों ने यह भी कहा कि अच्छी बात रही कि इस अस्पताल के स्टाफ में कोई भी संक्रमित नहीं पाया गया, और इससे पता चलता है ठीक ढंग से सावधानी से संक्रमण को रोका जा सकता है।

9. चौंकाने वाली बात यह है कि इस टीम के वैज्ञानिकों की सलाह लॉकडाउन के दौरान क्वारैंटाइन के दिशा निर्देशों को भी खारिज करती है। टीम ने अपने निष्कर्षों से कहा है कि कोविड-19 के संदिग्ध को उसके घर में आइसोलेट करना पर्यावरण नियंत्रण के स्तर को देखते हुए एक अच्छी रणनीति नहीं हो सकती है।
10. अधिकांश लोगों के पास पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट (पीपीई) नहीं है और ऐसे में वैज्ञानिकों का मानना है कि वायरस से संक्रमितों को घरों में आइसोलेट करने से केवल क्लस्टर लेवल के मामले बढ़ सकते हैं।

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