- महाभारत युद्ध में पांडव यौद्ध के मरने पर कौरव मनाते थे उत्सव, लेकिन पांडव बड़े-बड़े यौद्धाओं को मारने के बाद भी शांत रहे
दैनिक भास्कर
May 14, 2020, 07:50 AM IST
बड़ा लक्ष्य उन्हीं लोगों का पूरा होता है जो छोटी-छोटी सफलता का उत्सव मनाने के चक्कर में रुकते नहीं हैं। हमें अपना लक्ष्य तय करते समय ही यह भी देख लेना चाहिए कि हमारा मूल उद्देश्य क्या है और इसमें कितने पड़ाव आएंगे। अगर हम किसी छोटी सी सफलता या असफलता में उलझकर रह गए तो फिर बड़े लक्ष्य तक जाना कठिन हो जाएगा।
महाभारत युद्ध में कौरव और पांडव दोनों सेनाओं के व्यवहार में अंतर देखिए। कौरवों के नायक यानी दुर्योधन, दुशासन, कर्ण जैसे योद्धा और पांडव सेना से डेढ़ गुनी सेना होने के बाद भी वे हार गए। धर्म-अधर्म तो एक बड़ा कारण दोनों सेनाओं के बीच था ही लेकिन उससे भी बड़ा कारण था दोनों के बीच लक्ष्य को लेकर अंतर। कौरव सिर्फ पांडवों को नुकसान पहुंचाने के उद्देश्य से लड़ रहे थे।
जब भी पांडव सेना से कोई योद्धा मारा जाता, कौरव उत्सव का माहौल बना देते, जिसमें कई गलतियां उनसे होती थीं। अभिमन्यु को मारकर तो कौरवों के सारे योद्धाओं ने वहीं उत्सव मनाना शुरू कर दिया। दूसरी ओर पांडवों ने कौरव सेना के बड़े योद्धाओं को मारकर कभी उत्सव नहीं मनाया। वे उसे युद्ध जीत का सिर्फ एक पड़ाव मानते रहे। भीष्म, द्रौण, कर्ण, शाल्व, दुशासन और शकुनी जैसे योद्धाओं को मारकर भी पांडवों ने कभी भी उत्सव नहीं मनाया। उनका लक्ष्य युद्ध जीतना था, उन्होंने उसी पर अपना ध्यान टिकाए रखा। कभी भी क्षणिक सफलता के बहाव में खुद को बहने नहीं दिया। अंत में पांडवों ने कौरवों को पराजित कर दिया।