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सुबह 4.30 बजे वैदिक मंत्रों के साथ खुले मंदिर के कपाट, पहली पूजा पीएम मोदी की ओर से

  • 10 क्विंटल फूलों से सजाया गया है बद्रीनाथ मंदिर, लगभग 28 लोगों की उपस्थिति में खुले कपाट
  • टिहरी राजघराने से आए तिल के तेल से हुआ भगवान बद्रीनाथ का अभिषेक
शशिकांत साल्वी

शशिकांत साल्वी

May 15, 2020, 01:44 PM IST

शुक्रवार तड़के 4.30 बजे बद्रीनाथ धाम के कपाट खोल दिए गए। कपाट खोलने की विधियां रात 3 बजे से ही शुरू हो गई थीं। रावल ईश्वर प्रसाद नंबूदरी द्वारा विशेष पूजा-अर्चना की गई। इस दौरान गुरु शंकराचार्यजी की गद्दी, उद्धवजी, कुबेरजी की पूजा की गई। कपाट खुलने के बाद लक्ष्मी माता को परिसर स्थित मंदिर में स्थापित किया। भगवान बद्रीनाथ का तिल के तेल अभिषेक किया गया।

पहली पूजा पीएम मोदी की ओर से

भगवान बद्रीविशाल की प्रथम पूजा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से हुई। पूजा में देश के कल्याण आरोग्यता के लिए प्रार्थना की गई। ऑन लाइन  बुक हो चुकी पूजाएं भक्तों के नाम से की जाएगी। प्रदेश के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत, पर्यटन धर्मस्व मंत्री सतपाल महाराज ने श्री बद्रीनाथ धाम के कपाट खुलने पर शुभकामनाएं दी हैं।

ये फोटो सुबह 4.30 बजे के बाद की है। ऋषिकेश की श्री बद्रीनाथ पुष्प सेवा समिति द्वारा सजाया गया है बद्रीनाथ धाम। 

धर्माधिकारी भुवनचंद्र उनियाल के मुताबिक श्री बद्रीनाथ धाम के कपाट मनुष्य पूजा के लिए प्रातः 4:30 बजे खोल दिए गए। उत्तराखंड चारधाम देवस्थानम बोर्ड के मीडिया प्रभारी डॉ. हरीश गौड़ ने बताया कि ऋषिकेश की श्री बद्रीनाथ पुष्प सेवा समिति द्वारा 10 क्विंटल से अधिक फूलों से मंदिर को सजाया गया है।

इस साल दुनियाभर में फैली महामारी से मुक्ति के लिए बद्रीनाथ में विशेष पूजा की गई।

लॉकडाउन के नियमों का पालन किया

हर साल हजारों भक्तों के सामने यहां कपाट खोले जाते हैं, लेकिन इस साल लॉकडाउन की वजह से कपाट खुलते समय लगभग 28 लोग ही उपस्थित थे। रावल नंबूदरी, धर्माधिकारी भुवनचंद्र उनियाल के अलावा यहां मंदिर समिति के सीमित लोग, शासन-प्रशासन के अधिकारी और कुछ क्षेत्रवासी यहां उपस्थित थे। सभी ने मास्क लगाया हुआ था और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन किया।

बद्रीनाथ धाम अलकनंदा नदी के किनारे स्थित है।

महामारी दूर करने के लिए की गई विशेष पूजा

कपाट खुलने के बाद बद्रीनाथ के साथ ही भगवान धनवंतरि की भी विशेष पूजा की गई। धनवंतरि आयुर्वेद के देवता हैं। दुनियाभर से इस महामारी को खत्म करने के ये पूजा रावल नंबूदरी द्वारा की गई। बद्रीनाथ का तिल के तेल से अभिषेक होता है और ये तेल यहां टिहरी राज परिवार से आता है। टिहरी राज परिवार के आराध्य बद्रीनाथ हैं। रावल राज परिवार के प्रतिनिधि के रूप में भगवान की पूजा करते हैं। यहां परशुराम की परंपरा के अनुसार पूजा की जाती है।

मंदिर की सुरक्षा व्यवस्था से जुड़े लोग।

शंकराचार्य के कुटुंब से होते हैं रावल

यहां बद्रीनाथ की पूजा करने वाले पुजारी को रावल कहा जाता है। आदि गुरु शंकराचार्य ने चारों धामों के पुजारियों के लिए विशेष व्यवस्था बनाई थी। इसी व्यवस्था के अनुसार बद्रीनाथ में केरल के रावल पूजा के लिए नियुक्त किए जाते हैं। सिर्फ रावल को ही बद्रीनाथ की प्रतिमा छूने का अधिकार होता है।

कपाट खुलने से पहले बद्रीनाथ धाम। बद्रीनाथ भगवान की मूर्ति को छूने का अधिकार सिर्फ रावल को होता है।

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