April 23, 2024 : 9:27 PM
Breaking News
लाइफस्टाइल

यह गारंटी नहीं कि ठीक होने के बाद फिर नहीं होगा कोरोना, डब्ल्यूएचओ को एंटीबॉडीज थैरेपी की कामयाबी पर संदेह

  • डब्ल्यूएचओ ने एंटीबॉडी टेस्ट की तैयारी कर रही कई देशों की सरकारों को चेतावनी दी है
  • भारत समेत कई देशों में कोरोना सर्वाइवर का प्लाज्मा-एंटीबॉडीज से इलाज किया जा रहा है

दैनिक भास्कर

Apr 19, 2020, 10:47 AM IST

जेनेवा. विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के आपातकाल अधिकारी माइक रायन का कहना है कि कोरोना सर्वाइवर के ब्लड में मौजूद एंटीबॉडीज नए कोरोनावायरस का संक्रमण दोबारा होने से रोक सकतीं हैं या नहीं, अब तक इसका कोई प्रमाण नहीं मिला। माइक के मुताबिक, अगर एंटीबॉडीज प्रभावी भी हैं तो भी ये ज्यादा लोगों में विकसित नहीं हुई हैं। 

सरकारों को डब्ल्यूएचओ की  चेतावनी

डब्ल्यूएचओ के महामारी विशेषज्ञों ने उन सरकारों को चेतावनी भी दी है जो एंटीबॉडी टेस्ट की तैयारी कर रहे थे। विशेषज्ञों का कहना है एक बार कोरोनावायरस से संक्रमित हुआ इंसान दोबारा इसकी जद में नहीं आएगा, इसकी कोई प्रमाण नहीं है। ब्रिटिश सरकार ने कोरोना से जूझ चुके लोगों के ब्लड में एंटीबॉडीज का स्तर पता लगाने के लिए करीब 35 लाख सीरोलॉजिकल टेस्ट कराए। 

एंटीबॉडीज दोबारा संक्रमण की गारंटी नहीं
अमेरिका की संक्रमण रोग विशेषज्ञ डॉ. मारिया वेन का कहना है कि कई ऐसे देश हैं जो सीरोलॉजिकल टेस्ट की सलाह दे रहे हैं लेकिन इससे इंसान में ऐसी इम्युनिटी नहीं है जो गांरटी दे सकते हैं कोरोना का संक्रमण दोबारा नहीं होगा। सीरोलॉजिकल टेस्ट सिर्फ शरीर में एंटीबॉडीज का स्तर बता सकता है। इसका मतलब ये नहीं है, वह वायरस के संक्रमण से सुरक्षित है। 

क्या होती हैं एंटीबॉडीज
ये प्रोटीन से बनीं खास तरह की इम्यून कोशिकाएं होती हैं, जिसे बी-लिम्फोसाइट कहते हैं। जब भी शरीर में कोई बाहरी चीज (फॉरेन बॉडीज) पहुंचती है तो ये अलर्ट हो जाती हैं। बैक्टीरिया या वायरस द्वारा रिलीज किए गए विषैले पदार्थों को निष्क्रिय करने का काम यही एंटीबॉडीज करती हैं। इस तरह ये रोगाणुओं के असर को बेअसर करती हैं। जैसे कोरोना से उबर चुके मरीजों में खास तरह की एंटीबॉडीज बन चुकी हैं। जब इसे ब्लड से निकालकर दूसरे संक्रमित मरीज में डाला जाएगा तो वह भी कोरोनावायरस को हरा सकेगा।

एंटीबॉडी के लिए इतना हल्ला क्यों
भारत समेत कई देशों में कोरोना सर्वाइवर की एंटीबॉडीज से दूसरे मरीज मरीजों को ठीक करने की तैयारी चल रही है। संक्रमण से मुक्त हो चुके मरीजों की एंटीबॉडीज का इस्तेमाल प्लाज्मा थैरेपी में किया जाना है। इस थैरेपी की मदद से नए मरीजों की इम्युनिटी बढ़ाकर इलाज हो सकता है लेकिन डब्ल्यूएचओ के इस बयान के बाद यह थैरेपी कितना काम करेगी, इस पर सवाल उठ गया है। 

एंटीबॉडी का इस्तेमाल होगा कैसे
ऐसे मरीज जो हाल ही में बीमारी से उबरे हैं। उनके शरीर में मौजूद इम्यून सिस्टम ऐसे एंटीबॉडीज बनाता है जो ताउम्र रहते हैं। ये एंटीबॉडीज ब्लड प्लाज्मा में मौजूद रहते हैं। इसे दवा में तब्दील करने के लिए ब्लड से प्लाज्मा को अलग किया जाता है और बाद में इनसे एंटीबॉडीज निकाली जाती हैं। ये एंटीबॉडीज नए मरीज के शरीर में इंजेक्ट की जाती हैं इसे प्लाज्मा डिराइव्ड थैरेपी कहते हैं। यह मरीज में तब तक रोगों से लड़ने की क्षमता बढ़ाती हैं जब तक उसका शरीर खुद ये तैयार करने के लायक न बन जाए।

Related posts

सूर्य के बाद 18 को मंगल बदलेगा राशि; इसी दिन बुध भी वक्री होगा, 29 जून तक बदलेगी 5 ग्रहों की चाल

News Blast

चीनी शोधकर्ताओं का दावा, फेफड़े में छिपा रह सकता है कोरोना; चीन में इलाज के 70 दिन बाद मरीजों में मिला वायरस

News Blast

भगवान ब्रह्मा, विष्णु और शिव का तत्व होने से त्रिमूर्ति के रूप में होती है श्रीराम की पूजा

News Blast

टिप्पणी दें