
- तीर्थ स्नान से शुरू होता है वट सावित्री व्रत लेकिन घर पर ही पानी में गंगाजल डालकर नहाएं
दैनिक भास्कर
May 21, 2020, 01:47 AM IST
हिंदू धर्म में पति की लंबी उम्र के लिए वट सावित्री व्रत किया जाता है। हर साल यह व्रत ज्येष्ठ महीने की अमावस्या को मनाया जाता है। इस बार वट सावित्री व्रत के लिए बहुत ही अच्छा संयोग बन रहा है। इस बार 22 मई को वट सावित्री व्रत मनाया जाएगा। इस दिन कृत्तिका नक्षत्र होने से छत्र और शोभन नाम के शुभ योग बन रहे हैं। वहीं सत्कीर्ति नाम का राजयोग भी रहेगा। इनके साथ ही वृष राशि में चतुर्ग्रही योग भी बन रहा है। ग्रह-नक्षत्रों की ये स्थिति शुभ रहेगी। इस अमावस्या पर शनिदेव का जन्म हुआ था। इसलिए इस दिन वट और पीपल की पूजा कर शनिदेव को प्रसन्न किया जाता है।
वट सावित्री व्रत की पूजन विधि
- इस दिन सूर्योदय से पहले उठकर तीर्थ के जल से स्नान करना चाहिए।
- भगवान शिव-पार्वती की पूजा कर के उनके सामने सावित्री और वट वृक्ष की पूजा का संकल्प लेना चाहिए।
- पूजा और संकल्प के बाद नैवेद्य बनाएं और मौसमी फल जुटाएं।
- पूजा सामग्री के साथ बरगद के पेड़ के नीचे पूजा शुरू करें।
- पूजा में मिट्टी का शिवलिंग बनाएं। पूजा की सुपारी को गौरी और गणेश मानकर पूजा करनी चाहिए।
- इनके साथ ही सावित्री की पूजा भी करें।
- पूजा होने के बाद बरगद में 1 लोटा जल सींचे।
- पूजा के बाद अपनी मनोकामना ध्यान में रखते हुए श्रद्धा अनुसार पेड़ की 11, 21 या 108 परिक्रमा करें।
- परिक्रमा करते हुए कच्चा सूत भी बरगद पर लपेटना चाहिए।
यमराज ने वापस किए थे सत्यवान के प्राण
इस व्रत को रखने से पति पर आए संकट चले जाते हैं और आयु लंबी हो जाती है। यही नहीं अगर दांपत्य जीवन में कोई परेशानी चल रही हो तो वह भी इस व्रत के प्रताप से दूर हो जाते हैं। सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और सुखद वैवाहिक जीवन की कामना करते हुए इस दिन वट यानी कि बरगद के पेड़ के नीचे पूजा-अर्चना करती हैं। इस दिन सावित्री और सत्यवान की कथा सुनने का विधान है। मान्यता है कि इस कथा को सुनने से मनवांछित फल की प्राप्ति होती है। पौराणिक कथा के अनुसार सावित्री मृत्यु के देवता यमराज से अपने पति सत्यवान के प्राण वापस ले आई थी।