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जानवरों से निकले वायरस को मारने उन्हीं की मदद से बन रही दवा; ब्रिटेन में चिंपैजी से लिया वायरस, चीन में बंदरों पर ट्रायल सफल

  • अमेरिका और ब्रिटेन में सीधे इंसानों पर ट्रायल शुरू हुआ
  • चीनी वैज्ञानिक पहले जानवरों चूहों-बंदरों पर ट्रायल कर रहे, फिर इंसानों पर

दैनिक भास्कर

Apr 26, 2020, 03:35 PM IST

वुहान/लंदन. करीब पांच महीने पहले चीन के वुहान स्थित जानवरों के मार्केट से निकला कोरोना वायरस करीब दो लाख लोगों की जान ले चुका है और  30 लाख अन्य संक्रमित हैं। तमाम विवादों के बीच माना जा चुका है यह वायरस चमगादड़ के जरिये आया है। जहां अमेरिका और ब्रिटेन में सीधे इंसानों पर ट्रायल शुरू हो गए हैं, वहीं चीनी वैज्ञानिक पहले जानवरों चूहों और बंदरों पर ट्रायल कर रहे हैं और फिर इंसानों पर।

चीन से खबर है कि यहां की कम्पनी सिनोवैक बायोटेक ने रीसस बंदरों पर वैक्सीन का ट्रायल करके संक्रमण को रोकने में सफलता पाई है। वहीं, ब्रिटेन में दुनिया में सबसे तेज गति से वैक्सीन बनाने में जिस वायरस का इस्तेमाल हो रहा है वह भी इंसानों के पूर्वज कहे जाने वाले चिम्पैंजी से लिया गया है।

चीन में बंदरों पर वैक्सीन ट्रायल सफल

चीनी कंपनी ने कहा कि उसने अपने वैक्सीन की दो अलग-अलग खुराकों को आठ रीसस मकाऊ (लाल मुंह वाले भूरे बंदर) प्रजाति के बंदरों  में इंजेक्ट किया और तीन सप्ताह बाद उन्हें वायरस के संपर्क में लाने पर पता चला कि उनके अंदर किसी तरह का संक्रमण पैदा नहीं हुआ। सभी बंदर प्रभावी स्तर पर SARS-CoV-2 यानी Covid-19 वायरस के संक्रमण से सुरक्षित थे। वायरस से संक्रमित करने के बाद चार बंदरों को वैक्सीन की ज्यादा खुराक दी गई थी और 7 दिन के बाद के नतीजों में उनके फेफड़ों में वायरस का संक्रमण बहुत ही कम देखा गया। 

बिना वैक्सीन वाले बंदरों को निमोनिया हुआ

चार अन्य बंदरों को कम खुराक दी गई थी, लेकिन उन्होंने कम वैक्सीन होने के बावजूद अपनी खुद की इम्यूनिटी से वायरस पर काबू पा लिया। इसके उलट, चार अन्य बंदरों को कोई खुराक नहीं दी गई और वायरस के संक्रमित किए जाने पर उनमें  गंभीर निमोनिया हो गया। साइनोवैक ने मानव परीक्षण शुरू करने के तीन दिन बाद 19 अप्रैल को ऑनलाइन सर्वर बायोरेक्सिव पर इस ट्रायल के नतीजे प्रकाशित किए हैं। इसके निष्कर्षों को दुनियाभर के वैज्ञानिकों द्वारा मूल्यांकन किया जाना बाकी है। सिनोवैक के प्रवक्ता यांग गुआंग ने कहा है कि वैक्सीन बनाने में रासायनिक रूप से निष्क्रिय नोवल कोरोनावायरस पैथोजन्स का इस्तेमाल किया जा रहा है जो असली बीमारी के खिलाफ शरीर की इम्यूनिटी को बढ़ाएगा।

पिंजरे में बंद चिम्पैंजी के लक्षणों को जांचती एक वैज्ञानिक। ऊपर – कोरोना और एडिनो वायरस के सांकेतिक चित्र।

ऑक्सफोर्ड में चिम्पैंजी के वायरस से वैक्सीन ट्रायल

सिर्फ तीन महीने में सबसे तेज गति का दावा करके ब्रिटेन में कोरोनावायरस के वैक्सीन के लिए जिस वायरस का इस्तेमाल किया जा रहा है वह एक चिम्पैंज़ी के शरीर से लिया गया है। यह साधारण सर्दी-जुकाम करने वाला वायरस है। इसे ऐडिनोवायरस कहते हैं और कोरोन की वैक्सीन में इस वायरस का एक कमज़ोर पड़ चुका स्ट्रेन काम में लिया जा रहा है।

वैक्सीन  में इस वायरस में जेनेटिक इंजीनियरिंग से ऐसे बदलाव किए गए हैं जिससे कि ये इंसानों को नुकसान नहीं पहुंचाएगा और उनकी इम्यूनिटी को बढ़ाकर कोरोनो से लड़ने में सक्षम बनाएगा। ऑक्सफोर्ड की इस टीम ने इससे पहले कोरोना से मिलती-जुलती मर्स बीमारी के लिए टीका तैयार किया था। टीम को उसके क्लीनिकल ट्रायल में अच्छे नतीजे मिले थे इसलिए इस बार भी वही प्रक्रिया दोहराई जा रही है। 

इंसानों पर ट्रायल शुरू, सितंबर में वैक्सीन का दावा

ऑक्सफोर्ड के इस एडिनोवायरस वाले वैक्सीन का सीधे इंसानों पर परीक्षण शुक्रवार को शुरू हुआ और माइक्रोबॉयोलॉजिस्ट एलिसा ग्रैनेटो को पहला टीका लगाया गया। वैक्सीन के इंसानी ट्रायल के लिए एलिसा को आठ सौ लोगों में से चुना गया था।  इस वैक्सीन को बनाने में जुटीं रिसर्च टीम की लीडर और वैक्सीनोलॉजी की प्रो. सारा गिलबर्ट ने कहा, ‘‘मुझे व्यक्तिगत तौर पर इस टीके को लेकर पूरा भरोसा है। बेशक हमें इसका इंसानों पर परीक्षण करना है और डेटा जुटाना है। लेकिन, हमें यह दिखना है कि यह वैक्सीन लोगों को कोरोनावायरस से बचाती है, इसके बाद ही हम लोगों को ये टीका दे सकेंगे।’’ 

चीन, अमेरिका, फ्रांस और इजरायल में भी इंसानों पर ट्रायल जारी

चीन में कुल तीन वैक्सीन का इंसानों पर ट्रायल चल रहा है। पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के मेडिकल टीम, चीन सरकार के सेंटर फॉर डिसीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (सीडीसी) और सिनोवैक बायोटेक कम्पनी इंसानों पर लगातार ट्रायल कर रही हैं। अमेरिका में फार्मा कंपनी मॉडर्ना नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ के साथ मिलकर करीब 45 दिनों से वैक्सीन के लगातार ट्रायल करके डेटा जमा कर रही है। इजराइल में इंस्टीट्यूट ऑफ बॉयोलोजिकल रिसर्च के 50 से अधिक अनुभवी वैज्ञानिक वैक्सीन बनाने में जुटे हैं। फ्रांस की सेनोफी पाश्चर कंपनी कोरोना वैक्सीन तैयार करने में दुनिया सबसे बड़ी कंपनियों के साथ मिलकर काम कर रही है। इसमें अमेरिका की एलि लिली, जॉनसन एंड जॉनसन और जापान की टाकेडा भी शामिल है। 
भारत में भी एनिमल ट्रायल शुरू हुआ

भारत में भी कोरोनावायरस की वैक्सीन का जानवरों पर प्रयोग शुरू हो गया है। गुजरात की जायडस कैडिला कंपनी यह वैक्सीन बना रही है और नतीजे आने में 4 से 6 महीने का वक्त लगेगा।। इसी कंपनी ने 2010 में देश में स्वाइन फ्लू की सबसे पहली वैक्सीन तैयार की थी। कंपनी के मैनेजिंग डायरेक्टर शर्विल पटेल ने दैनिक भास्कर से बातचीत में पुष्टि की कि हम कोरोना की वैक्सीन पर काम कर रहे हैं। वैक्सीन का ट्रायल समय लेने वाली प्रक्रिया होती है। हमें इसमें कामयाबी मिलने की उम्मीद है। 

गारंटी नहीं कि वैक्सीन से सफलता मिल जाए

दुनिया के शीर्ष विशेषज्ञों में से एक और COVID-19 पर विश्व स्वास्थ्य संगठन के विशेष दूत डॉ डेविड नैबारो ने स्पष्ट कहा है कि- इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि इसका वैक्सीन सफलतापूर्वक बना ही लिया जाएगा, और इससे बहुत जल्दी सबकुछ ठीक हो जाएगा। उन्होंने कहा कि, आगामी भविष्य में इसका खतरा पूरी तरह से खत्म नहीं होने वाला है और हमें इस वायरस के साथ ही जिंदा रहने के तरीके खोजने होंगे।

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