
- दूज के दिन सूर्यास्त के बाद थोड़ी सी देर के लिए दिखता है चंद्रमा, दूसरी कला में होने से बढ़ती है प्राणवायु
दैनिक भास्कर
May 23, 2020, 06:55 PM IST
हिंदू धर्म में भी चन्द्र दर्शन महत्व है। अमावस्या के दूसरे दिन यानी शुक्लपक्ष की द्वितिया तिथि पर उपवास रखा जाता है। इसके बाद शाम में चन्द्र दर्शन के बाद ही भोजन किया जाता है। काशी के ज्योतिषाचार्य पं. गणेश मिश्रा के अनुसार ब्रम्हांड पुराण में इस बारे में बताया गया है कि अमावस्या के दूसरे दिन आने वाली द्वितिया तिथि पर चंद्रमा की पूजा और व्रत करने से शारीरिक परेशानियां दूर हो जाती हैं। इस दिन चंद्रमा के दर्शन करने से सुख, समृद्धि और सौभाग्य भी मिलता है।
- ज्योतिषाचार्य पं. मिश्रा का कहना है कि ज्योतिष शास्त्र में चन्द्र दर्शन किस दिन होगा, कितनी बजे होगा उस सयम की गणना चुनौतीपूर्ण होती है। क्योंकि इस दिन सूर्यास्त के तुरंत बाद चन्द्रमा सिर्फ कुछ समय के लिए ही दिखाई देता है। चन्द्र दर्शन वाले दिन चन्द्रमा और सूर्य दोनों समान क्षितिज पर होते हैं। इस कारण सूर्यास्त के बाद कुछ समय के लिए ही चंद्र दर्शन हो पाता है। चंद्र दर्शन वाले दिन सूर्य और चंद्रमा के बीच का अंतर 13 से 24 डिग्री तक होता है।
- पं. मिश्रा के अनुसार दूज यानी द्वितिया तिथि को चंद्रमा अपनी दूसरी कला में होता है। जिसे अलग-अलग ग्रंथों में सुमति, मनदा,.प्राणमया, भू और श्रधा कहा गया है। अपने इन नामों के अनुसार इस दिन चंद्रमा देखने से मन में अच्छे विचार आते हैं। प्राणवायु बढ़ती है और नीरोगी रहते हुए लंबी उम्र मिलती है।
परंपरा: दिनभर व्रत और दान, शाम को चंद्र दर्शन और पूजा
दूज व्रत यानी शुक्लपक्ष की द्वितिया तिथि पर सुबह जल्दी उठकर अच्छी सेहत और घर में समृद्धि की कामना से व्रत का संकल्प लिया जाता है। फिर दिनभर बिना कुछ खाए ओर बिना पानी पिए दिनभर व्रत रखा जाता है। शाम को चंद्र दर्शन और पूजा के बाद पानी पीकर व्रत पूरा किया जाता है। इस व्रत में जल दान करने का बहुत महत्व है। इसके अलावा दूध, सफेद कपड़े, चावल और सफेद मिठाई का दान दिया जाता है। इनमें खीर, दूध और मावे से बनी मिठाई खासतौर से दान की जाती है। ग्रंथों के अनुसार इस तरह व्रत करने से मानसिक और शारीरिक परेशानियां दूर हो जाती है। घर में शांति, सुख और समृद्धि आती है।