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दो साल से ल्यूकेमिया से जूझ रहे थे ऋषि कपूर, यह एक तरह का ब्लड कैंसर जिसमें शरीर को बचाने वाली कोशिकाएं ही जानलेवा बन जाती हैं 

  • व्हाइट ब्लड सेल्स रोगों से लड़ने की क्षमता बढ़ाती हैं लेकिन ल्यूकेमिया में ये असामान्य रूप बढ़ने लगती हैं और इम्युनिटी घटती है
  • ल्यूकेमिया की सटीक वजह पता नहीं चल पाई है लेकिन इसके लक्षण दिखने पर अलर्ट होेने की जरूरत

दैनिक भास्कर

Apr 30, 2020, 10:11 PM IST

अभिनेता इरफान खान के बाद ऋषि कपूर भी नहीं रहे। वे 67 साल के थे। गुरुवार सुबह मुंबई के एचएन रिलायंस फाउंडेशन हॉस्पिटल में उनका निधन हो गया। ऋषि कपूर दो साल से ल्यूकेमिया से जूझ रहे थे जो एक तरह ब्लड कैंसर होता है। ब्लड कैंसर खून बनाने वाले ऊतकों का कैंसर होता है जिसमें बोन मैरो भी शामिल है। इलाज की बात स्वीकारते हुए ऋषि कपूर ने अपने अंतिम इंटरव्यू में कहा था जैसे लोग लिवर, किडनी और हार्ट की बीमारी से जूझते हैं वैसे मेरा मैरो ट्रीटमेंट चल रहा है। जानिए क्या है ल्यूकेमिया…,

Q&A : सवालों से समझिए कितना खतरनाक है ल्यूकेमिया

#1)  क्या होता है ल्यूकेमिया?
चिकित्सा जगत की जानीमानी वेबसाइट वेबएमडी के मुताबिक यह एक तरह का ब्लड कैंसर है जिसे क्रॉनिक लिम्फोसाइटिक ल्यूकेमिया (सीएलएल) भी कहते है। आमतौर पर शरीर में मौजूद व्हाइट ब्लड सेल्स शरीर की रोगों से लड़ने की क्षमता को बढ़ाती हैं लेकिन ल्यूकेमिया की स्थिति में असामान्य रूप से इन कोशिकाओं की संख्या बढ़ने लगती है। इनका आकार बदलने लगता है। धीरे-धीरे रोगों से लड़ने की क्षमता यानी इम्युनिटी घटने लगती है। इसके ज्यादातर मामले बढ़ती उम्र के लोगों में सामने आते हैं। 

#2) क्या बदलाव दिखने पर अलर्ट हो जाएं?
ल्यूकेमिया की सटीक वजह क्या है यह अब साफ नहीं हो पाया है लेकिन कुछ लक्षण ऐसे है जिसके दिखने पर अलर्ट हो जाना चाहिए, जैसे-

  • तेजी से वजन का घटना
  • हर समय थकान महसूस होना
  • बार-बार शरीर में संक्रमण का फैलना या बीमारी होना
  • सिरदर्द महसूस होना
  • त्वचा पर धब्बे
  • हड्‌डी में दर्द महसूस होना
  • अधिक पसीना निकलना (खासतौर पर रात में)

#3) कौन से फैक्टर इसका जोखिम बढ़ाते हैं?
ल्यूकेमिया होने की वजह अब तक पता नही लगाई जा सकी है लेकिन विशेषज्ञों के मुताबिक स्मोकिंग, ब्लड डिसऑर्डर, जेनेटिक डिसऑर्डर, परिवार में इस कैंसर की हिस्ट्री और हाई लेवल का रेडिएशन इसका खतरा बढ़ाते हैं।

#4) कौन सी जांच से इसका पता लगाते हैं?
ब्लड टेस्ट, बोन मैरो बायोप्सी, एमआरआई और पेट स्कैन इस कैंसर की पुष्टि होती है। ब्लड टेस्ट में अलग-अलग रक्त कोशिकाओं की स्थिति को समझा जाता है। बोन मैरो बायोप्सी के जरिये बताया जाता है कि मरीज ल्यूकीमिया के किस प्रकार से जूझ रहा है।

#5) कितना खतरनाक है यह कैंसर? 
ल्यूकेमिया शरीर के कई अंगों जैसे फेफड़े, हृदय, टेस्टिस और किडनी में फैल सकता है। इसका सही समय पर इलाज न मिले तो मौत हो सकती है। इसका इलाज ब्लड डिसऑर्डर और कैंसर विशेषज्ञ मिलकर करते हैं। ट्रीटमेंट के दौरान कीमोथैरेपी, रेडिएशन थैरेनी और स्टेम सेल ट्रांसप्लांटेशन किया जाता है। स्टेम सेल ट्रांसप्लांटेशन को बोन-मैरो ट्रांसप्लांट भी कहते हैं। 

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