- देश में हर साल थैलेसीमिया मेजर (थैलेसीमिया का जटिल प्रकार) से ग्रसित 10,000 बच्चे जन्म लेते हैं
- रक्त से जुड़ी यह एक आनुवंशिक बीमारी है, जिससे पीड़ित व्यक्ति के रक्त में हीमोग्लोबिन की मात्रा कम होती है
दैनिक भास्कर
May 04, 2020, 11:57 AM IST
रक्त से जुड़ी हुई बीमारी थैलेसीमिया असाध्य मानी जाती है। देश में हर साल थैलेसीमिया मेजर (थैलेसीमिया का जटिल प्रकार) से ग्रसित 10,000 बच्चे जन्म लेते हैं। पर क्या समय के साथ इसका इलाज आसान हुआ है? क्या थैलेसीमिया का टेस्ट हर माता-पिता को करवाना चाहिए? विश्व थैलेसीमिया दिवस (8 मई) के मौके पर सवाल-जवाब के रूप में समझें इस रोग की गंभीरता और इलाज के तरीकों के बारे में।
1. क्या है थैलेसीमिया?
यह रक्त से जुड़ी हुई आनुवंशिक बीमारी है। इससे पीड़ित व्यक्ति के रक्त में हीमोग्लोबिन की मात्रा कम होती है। रक्त में लाल रक्त कोशिकाएं (आरबीसी) भी बेहद कम बनती हैं। इससे मरीज़ को एनीमिया हो जाता है। थैलेसीमिया दो तरह का होता है- माइनर और मेजर। माइनर गंभीर नहीं होता। कभी-कभी माइनर के रोगियों को जिंदगीभर भी रोग के बारे में पता नहीं चल पाता। मेजर के भी दो प्रकार होते हैं- अल्फा और बीटा।
2. किन्हें हो सकती है बीमारी
थैलेसीमिया जेनेटिक बीमारी है, मतलब माता-पिता में से किसी को है, तो ही बच्चे को यह बीमारी हो सकती है। अगर माता-पिता में से किसी एक को थैलेसीमिया है, तो बच्चे को माइनर थैलेसीमिया हो सकता है। लेकिन अगर माता-पिता दोनों को थैलेसीमिया है तो 25 प्रतिशत बच्चों को मेजर थैलेसीमिया होने की आशंका होती है। इसमें 25 प्रतिशत बच्चे सामान्य हो सकते हैं। वहीं 50 प्रतिशत को माइनर थैलेसीमिया की आशंका होती है।
3. क्या इससे बच सकते हैं?
बच्चे में थैलेसीमिया का संक्रमण रोका जा सकता है, बशर्ते माता-पिता वक्त रहते अपनी जांच करवाएं। गर्भधारण से 12 हफ्ते तक अगर माता-पिता के थैलेसीमिया वाहक होने का पता चल जाए, तो डॉक्टरी सलाह से इसका इलाज किया जा सकता है। पति-पत्नी को थैलेसीमिया है तो फिर 10 से 12 हफ्ते के भ्रूण की क्रोनिक विलस सेंपलिंग (सीवीएस) टेस्ट किया जाता है। यह टेस्ट भ्रूण में किसी तरह के जेनेटिक डिसऑर्डर का पता लगाने के लिए किया जाता है। बच्चे के बारे में सोच रहे हर दंपती को, फिर चाहे वह थैलेसीमिया से ग्रसित हों या या ना हों, अपना यह टेस्ट जरूर करवाना चाहिए।
4. कौन से टेस्ट करवाएं?
हीमोग्लोबिन इलेक्ट्रोफोरेसिस टेस्ट या हाई परफॉरमेंस लिक्विड क्रोमोटोग्राफी से इसका टेस्ट होता है। हर माता-पिता को अपनी जेनेटिक टेस्टिंग जरूर करवानी चाहिए, ताकि थैलेसीमिया के बारे में पता चल सके।
5. इसके लक्षण क्या हैं?
थैलेसीमिया से ग्रसित बच्चों के शरीर में धीरे-धीरे पीलापन बढ़ता जाता है। बच्चे चिड़चिड़े होते जाते हैं, भूख बहुत कम हो जाती है। स्तनपान भी कम कर देते हैं, नतीजतन उनका वज़न बढ़ना भी कम हो जाता है। ऐसे बच्चों का पेट भी सामान्य बच्चों की तुलना में बढ़ा हुआ होता है।
6. क्या है इसका इलाज?
थैलेसीमिया से ग्रसित बच्चे भी अच्छा जीवन जी सकते हैं। बस उनकी उचित देखभाल की जरूरत होती है। बच्चे मेें जैसे ही बीमारी का पता चले, बिना देर किए लाल रक्त कोशिकाओं की जरूरत पूरी करनी चाहिए। रक्त में आरबीसी की सही मात्रा से हीमोग्लोबिन का स्तर 9 ग्राम/डीएल बना रहता है। इसका स्थायी इलाज बोनमैरो ट्रांसप्लांट से ही संभव है। इसके लिए हेल्दी बोन मैरो की जरूरत होती है। इसके लिए एचएलए यानी कि जीन का 100 फीसदी मिलना जरूरी है। भाई-बहन और माता-पिता इसके लिए आदर्श डोनर माने जाते हैं। हालांकि, जीन अगर 50 फीसदी भी मिल रहा है, तो अब बोनमैरो ट्रांसप्लांट किया जा सकता है।
थैलेसीमिया से जुड़ीं भ्रांतियां और सच
दो थैलेसीमिया पॉजिटिव लोगों को शादी नहीं करनी चाहिए?
ऐसा बिल्कुल नहीं है। दोनों शादी कर सकते हैं, बस गर्भधारण के बाद 10-12 हफ्ते के बीच सीवीएस टेस्ट करवा लेना चाहिए, ताकि समय रहते सही कदम उठाए जा सकें।
थैलेसीमिया मेजर के लिए खून मुश्किल से मिलता है?
यह कोरी भ्रांति है। खून आसानी से मिलता है, बस रक्त चढ़वाने वाले लोगों को किसी तरह के संक्रमण से बचने के लिए ब्लड चढ़वाते समय ल्यूकोसाइट फिल्टर्स का इस्तेमाल करना चाहिए।