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ब्रिटेन में डॉग्स की मदद से संक्रमित लोगों की पहचान होगी, ट्रायल में लेब्राडोर और कॉकर स्पेनियल की ट्रेनिंग शुरू

  • इस डॉग एक घंटे में 22 लोगों की स्क्रीन कर सकता है और मलेरिया की पहचान में इनकी क्षमता परखी जा चुकी है।
  • लंदन में पहले फेज के ट्रेनिंग सेंटर ट्रायल के नतीजों के आधार पर डॉग्स को ग्राउंड जीरो पर उतारा जाएगा

दैनिक भास्कर

May 16, 2020, 06:08 PM IST

लंदन. ब्रिटेन में इस संभावना को हकीकत बनाने के लिए ट्रायल शुरू हो गया है कि क्या स्निफर डॉग्स कोरोना वायरस से पीड़ित लोगों को पहचान सकते हैं? बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक ब्रिटेन के स्पेशलिस्ट मेडिकल स्निफर डॉग्स इस काम के लिए उपयुक्त बताए गए हैं। इस ट्रायल को सरकार की तरफ से करीब 5 करोड़ रुपए की फंडिंग मिली है।

यहां के विशेषज्ञों का मानना है कि कुत्तों के अंदर सूंघने की तीव्र और खास क्षमता होती है और वे सार्वजनिक स्थानों पर कोरोना से संक्रमित लोगों को पहचान सकते हैं। दुनिया के कई देशों में इस तरह के स्निफर डॉग्स को कैंसर, मलेरिया और पार्किंसन जैसी बीमारियों से पीड़ितों की पहचान करने और उनकी मदद करने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है।

लैब्राडोर और कॉकर स्पेनियल प्रजाति चुनी

इस ट्रायल में यह भी पता लगाया जाएगा कि क्या लेब्राडोर और कॉकर स्पेनियल प्रजाति के डॉग्स को कोविड-19 संक्रमितों की गंध सूंघने में सक्षम बनाया जा सकता है। साथ में, इस बात की भी खोज की जाएगी यह क्या यह डॉग्स लक्षण दिखने से पहले ही इंसान में वायरस का पता लगा सकते हैं। 

इस तरह का पहला ट्रायल लंदन स्कूल ऑफ हाइजीन एंड ट्रॉपिकल मेडिसिन में शुरू हुआ है और इसके लिए मेडिकल डिटेक्शन डॉग्स और डरहम यूनिवर्सिटी की मदद ली जा रही है।

मेडिकल डिक्टेशन डॉग को इस तरह से अलग-अलग गंध सुंघा कर प्रशिक्षण दिया जाता है। 

एक डॉग हर घंटे में 22 स्क्रीनिंग कर सकता है 

ब्रिटेन के मंत्री लॉर्ड बेथेल ने कहा कि यह ट्रायल सरकार की ओर से अपनी टेस्टिंग स्ट्रेटजी को तेज करने की कोशिश का एक हिस्सा है। उन्हें उम्मीद है है कि ये डॉग्स मशीन की तुलना में ज्यादा तेजी से नतीजे दे सकते हैं। एक बायो डिटेक्शन डॉग हर घंटे में करीब 22 लोगों को स्क्रीन कर सकते हैं और इसीलिए उन्हें भी भविष्य में कोविड-19 संक्रमितों की पहचान के काम में लगाया जाएगा।

पहले फेज में गंध के नमूने और डॉग ट्रेनिंग

पहले फेज के ट्रायल में एनएचएस स्टाफ लंदन के अस्पतालों में ऐसे लोगों की गंध के नमूने लेगा जो कोरोना वायरस से संक्रमित हैं और ऐसे लोगों की भी गंध के नमूने जमा किए जाएंगे जो अभी तक बचे हुए हैं। इसके बाद इन दो प्रजातियों के 6 डॉग्स को सैंपल से सूंघ कर वायरस की पहचान करने की ट्रेनिंग दी जाएगी 

10 साल की रिसर्च में डॉग की क्षमता पता चली

इस काम में सहयागी द मेडिकल डिटेक्शन डॉग्स की को फाउंडर और चीफ एग्जीक्यूटिव डॉक्टर क्लैरी गेस्ट का कहना है कि, हम इस बात को लेकर काफी उम्मीद से भरे हैं कि डॉग्स कोविड-19 संक्रमितों की पहचान सूंघ कर कर सकते हैं। बीते 10 साल की रिसर्च से सामने आया है प्रशिक्षित मेडिकल डिटेक्शन डॉग्स ठीक उसी तरह बीमारी की गंध सूंघ कर उसी तरह पहचान सकते हैं, जैसे कि दो ओलंपिक साइज के स्विमिंग पूल पानी से भरे हों और उसके अंदर किसी ने एक चम्मच चीनी घोल दी हो और उसका पता लगाना हो।

जर्मन शेफर्ड और लेब्राडोर प्रजाति के डॉग्स सूंघ कर बीमारी का पता लगाने के लिए बहुत उपयुक्त माने जाते हैं।

दूसरे फेज में ग्राउंड जीरो पर उतारेंगे

लंदन स्कूल ऑफ़ हाइजीन एंड ट्रॉपिकल मेडिसिन के प्रोफेसर जैम्स लोगन ने बताया कि, हमारे अनुभव से यह पता चला है कि मलेरिया से पीड़ित लोगों में एक विशेष प्रकार की गंध आती है और मेडिकल डिटेक्शन डॉग्स उसे सूंघ सकते हैं। हमने इसी के आधार पर डॉग्स को मलेरिया रोगियों का पता लगाने के लिए सफलतापूर्वक प्रशिक्षित किया था।
इस अनुभव और इस नई जानकारियों के आधार पर कहा जा सकता है कि फेफड़ों से संबंधित बीमारियों में भी शरीर से एक खास किस्म की गंध आती है। हमें उम्मीद है की मेडिकल डॉग्स कोविड-19 संक्रमित की पहचान कर सकते हैं।

अगर पहले ट्रायल में डॉग्स अच्छे नतीजे देते हैं तो फिर उन्हें दूसरी फेस में ले जाया जाएगा जहां उन्हें सचमुच ग्राउंड जीरो पर उतारा जाएगा और वे लोगों की पहचान करेंगे। इसके बाद हमारी योजना है कि हम अन्य एजेंसियों के साथ मिलकर इन डॉग्स को सचमुच मोर्चे पर उतार सकें। 

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