- ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की दशमी को धरती पर आई थी देवनदी गंगा, उद्गम स्थल गंगोत्री में इसे कहते हैं भागीरथी
- संभवतः ये पहला मौका, जब पूरे देश के गंगाघाटों पर सन्नाटा पसरा है, घाटों पर गिनती के लोग मौजूद
दैनिक भास्कर
Jun 01, 2020, 02:10 PM IST
आज गंगा दशहरा है। आज के दिन ही स्वर्ग से धरती पर गंगा का अवतरण हुआ था। संभवतः ये पहला मौका है जब गंगा दशहरे पर हरिद्वार, बनारस सहित पूरे देश में गंगा के घाटों से भीड़ नदारद है। गंगा के उद्गम स्थल गंगोत्री में भी महज 20 लोगों की मौजूदगी में उत्सव का आयोजन हो रहा है।
गंगा को भगीरथ धरती पर लाए थे, इसलिए गंगोत्री में भी ये कायदा है कि गंगा दशहरे पर गंगा से पहले भगीरथ की पूजा होती है। गंगा धरती पर लाने के लिए हर साल सबसे पहले उनका आभार जताया जाता है। इसके बाद ही गंगा की पूजा, अभिषेक और हवन आदि होते हैं।
गोमुख-गंगोत्री से निकली गंगा, कई राज्यों और शहरों से गुजरती हुई प. बंगाल में गंगासागर पर समुद्र में मिलती है। इस पूरे सफर में गंगा में गंडकी और अन्य कई नदियां मिल जाती हैं। गंगा एकमात्र नदी है, जिसका उद्गम से लेकर समुद्र में मिलने तक एक जैसा महत्व है। इसे देव नदी का दर्जा मिला हुआ है। गंगा दशहरे पर जहां-जहां से गंगा निकलती है, वहां-वहां उत्सव होता है।
संभवतः ये पहला मौका है जब पूरे देश के गंगाघाटों पर सन्नाटा पसरा हुआ है। गिनती के लोग घाटों पर मौजूद हैं। हरिद्वार, बनारस, इलाहबाद, पटना जैसे कई शहरों में इस बार गंगा में डुबकी लगाने वालों की संख्या ना के बराबर ही है।
मंदिर समिति गंगोत्री धाम के अध्यक्ष पं. सुरेश सेमवाल ने बताया कि मंदिर में शासन द्वारा तय किए गए नियमों का पालन करते हुए गंगा मैया की विशेष पूजा की जा रही है। इस दौरान पुजारी और मंदिर स्टॉफ के लोग ही मौजूद हैं। मुखबा गांव के सेमवाल ब्राह्मण ही गंगोत्री के पुजारी होते हैं। ये मंदिर समुद्र तल से करीब 3042 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यहां गंगा को भागीरथी कहा जाता है। आज गंगा सहस्रनामावली के पाठ की हवन किया गया। 11.48 बजे से गंगा की धारा पर डोली यात्रा निकली। इसके बाद गंगा धारा पर श्रीसूक्त पाठ और महाभिषेक हुआ।
मंदिर समिति के सचिव पं. दीपक सेमवाल के मुताबिक सुबह 9.05 बजे राजा भागीरथ की मूर्ति, छड़ी और डोली का श्रृंगार हुआ। इसके बाद 9.30 बजे से गंगा दशहरा पूजन, हवन हुआ। पूजा में गंगा सहस्रनाम पाठ, गंगा लहरी पाठ, गंगा स्त्रोत शांति पाठ हुआ।
15 नवंबर तक खुले रहेंगे कपाट
उत्तराखंड के चारों धाम गंगोत्री, यमनोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ के कपाट खुल चुके हैं। नेशनल लॉकडाउन की वजह से कपाट खुलने के समय में भी बदलाव हुआ। हर साल करीब 6-7 माह के लिए ये धाम दर्शन के लिए खोले जाते हैं। शेष समय में यहां वातावरण प्रतिकूल रहता है, इस वजह से मंदिर बंद रहते हैं। इस साल 15 नवंबर तक गंगोत्री, केदारनाथ, बद्रीनाथ मंदिर दर्शन के लिए खुले रहेंगे। 16 नवंबर तक यमनोत्री मंदिर खुला रहेगा। इन तारीखों में बदलाव भी संभव है।
गंगा का मुख्य उद्गम स्थल है गोमुख
गंगोत्री से करीब 19 किमी दूर गोमुख ग्लेशियर है। यही गंगा नदी का मुख्य उद्गम स्थल है। ये बहुत ही दुर्गम स्थल है, यहां तक आसानी नहीं पहुंचा जा सकता। गंगा नदी दुनिया की सबसे लंबी और सबसे पवित्र नदी है। यहां प्रचलित मान्यता के अनुसार राजा भगीरथ ने गंगोत्री पर्वत क्षेत्र में ही एक शिलाखंड पर बैठकर शिवजी को प्रसन्न करने के लिए तप किया था। गंगोत्री मंदिर सफेद ग्रेनाइट पत्थरों से बना हुआ है।
गंगोत्री तरह ही हरिद्वार और वाराणसी का गंगा घाट भी गंगा दशहरे पर सूना रहा। कोरोनावायरस की वजह से यहां श्रद्धालुओं का आना प्रतिबंधित है।
Ganga Ghats in Varanasi remain deserted on the occasion of Ganga Dussehra today, as gathering of devotees is restricted to prevent the spread of Coronavirus.
Government has allowed reopening of religious places from June 8. pic.twitter.com/KA7OORe7Ev
— ANI UP (@ANINewsUP) June 1, 2020
देवनदी है गंगा
गंगा को देवनदी माना गया है, क्योंकि ये स्वर्ग से धरती पर आई है। गंगा सभी पापों का नाश करने वाली नदी है। देवनदी गंगा को धरती पर क्यों आना पड़ा, इस संबंध में एक कथा प्रचलित है। कथा के अनुसार श्रीराम के पूर्वज राजा सगर के साठ हजार पुत्रों ने कपिल मुनि का अपमान किया था। इससे क्रोधित होकर मुनि ने सभी को भस्म कर दिया था। इसके बाद कपिल मुनि सगर के पौत्र अंशुमन को ये बताया कि सगर के सभी मृत पुत्रों का उद्धार गंगा नदी से ही हो सकता है।
अंशुमन के पुत्र दिलीप और दिलीप के पुत्र भगीरथ हुए। इन सभी ने अपने पितरों की शांति के लिए तपस्या की। तब भगीरथ की तपस्या से प्रसन्न होकर देवी गंगा धरती पर आने के लिए तैयार हुईं। गंगा का वेग बहुत तेज था, इसे धारण करने के लिए भगीरथ ने शिवजी को प्रसन्न किया। तब गंगा पृथ्वी पर आई और उसके जल के स्पर्श से सगर का सभी पुत्रों का उद्धार हुआ। इसीलिए गंगा को भागीरथी भी कहा जाता है।