- स्कंदपुराण के अनुसार पति की लंबी उम्र के लिए इस दिन की जाती है वट वृक्ष की पूजा
दैनिक भास्कर
Jun 05, 2020, 10:23 AM IST
5 जून यानी आज ज्येष्ठ महीने की पूर्णिमा है। सनातन धर्म को मानने वाले लोगों के लिए स्कंद और भविष्य पुराण के अनुसार ये बहुत ही महत्वपूर्ण पर्व है। इस पर्व पर तीर्थ स्नान, दान और व्रत करने का महत्व बताया गया है। इन सबके प्रभाव से मनोकामनाएं पूरी होती हैं। हर तरह के पाप और दोष दूर हो जाते हैं। साथ ही पुण्य फल मिलता है। इस पूर्णिमा पर भगवान शिव-पार्वती, विष्णुजी और वट वृक्ष की पूजा का विशेष महत्व है। इसलिए ज्येष्ठ महीने की पूर्णिमा को धर्मग्रंथों में बहुत ही महत्वपूर्ण माना गया है।
तृप्त होते है पितर
ज्येष्ठ महीने की पूर्णिमा तिथि को तीर्थ स्नान के साथ ही तर्पण और श्रद्धा अनुसार अन्न एवं जल दान किया जाता है। ऐसा करने से पितर तृप्त होते हैं। ज्येष्ठ की पूर्णिमा पर सुबह जल्दी उठकर तीर्थ स्नान करना चाहिए। इसके बाद सूर्य को अर्घ्य देकर पितरों की शांति के लिए तर्पण करना चाहिए। इसके बाद ब्राह्मण भोजन और जल दान का संकल्प लेना चाहिए। दिन में अन्न और जल दान करना चाहिए। ऐसा करने से पितृ संतुष्ट होते हैं और परिवार में समृद्धि आती है।
दांपत्य सुख के लिए शिवजी की पूजा
ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन स्नान, ध्यान और पुण्य कर्म करने का विशेष महत्व है। इसके साथ ही यह दिन उन लोगों के लिये भी बेहद महत्वपूर्ण है, जिनका विवाह होते होते रुक जाता है या फिर वैवाहिक जीवन में किसी प्रकार की कोई बाधा आ रही हो। तो ऐसे लोगों को इस दिन सफेद कपड़े पहनकर शिवजी का अभिषेक करना चाहिए। भगवान शिव की पूजा हर समस्या दूर हो जाती है।
सौभाग्य और पति की लंबी उम्र के लिए वट पूजा
स्कंद और भविष्य पुराण में इस दिन वट पूजा का विधान बताया गया है। इस दिन महिलाएं श्रृंगार करके पति की लंबी उम्र की कामना से वट वृक्ष यानी बरगद की पूजा की करती हैं। इस दिन बरगद की पूजा के साथ सत्यवान और सावित्री की कथा भी सुनती हैं। ग्रंथों के अनुसार सावित्री के पतिव्रता तप को देखते हुए इस दिन यमराज ने उसके पति सत्यवान के प्राण वापस करते हुए उसे जीवनदान दिया था।
ज्येष्ठ पूर्णिमा का महत्व
स्कंद और भविष्य पुराण के अलावा अन्य ग्रंथों में भी ज्येष्ठ पूर्णिमा का विशेष महत्व बताया गया है। आमतौर पर इस दिन से श्रद्धालु गंगा जल लेकर अमरनाथ यात्रा के लिए निकलते हैं। ज्येष्ठ महीने में गर्मी बहुत तेज होती है इसलिए ऋषियों ने पूर्णिमा तिथि पर अन्न और जल दान का विधान बताया है। पूर्णिमा पर तीर्थ स्नान और जल की पूजा की भी विशेष महत्व है। इसी के माध्यम से हमें ऋषि-मुनियों ने संदेश दिया है कि जल के महत्व को पहचानें और इसका सदुपयोग करें।