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भारतीय मूल के अमेरिकी वैज्ञानिक रतन लाल को ‘वर्ल्ड फूड प्राइज’ मिला, फसलों के जरिए जलवायु परिवर्तन को कम करने की तरकीब निकाली

  • अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पोम्पियो ने कहा- डॉ. रतन लाल ने करीब 50 करोड़ किसानों की मदद की
  • डॉ. रतन लाल ने फसलों की ऐसी तकनीकों को बढ़ावा दिया, जिससे जलवायु परिवर्तन को कम किया जा सकता है

दैनिक भास्कर

Jun 12, 2020, 08:28 PM IST

डि मोइन. भारतीय मूल के अमेरिकी सॉइल साइंटिस्ट (मिट्‌टी के विशेषज्ञ) डॉ. रतन लाल को 2020 के वर्ल्ड फूड प्राइज से सम्मानित किया गया है। इस पुरस्कार को कृषि क्षेत्र का नोबेल पुरस्कार माना जाता है। डॉ. रतन लाल को प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा करने और जलवायु परिवर्तन को कम करने वाले खाद्य पदार्थों के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए इस पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। 

अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पियो ने डॉ. रतन लाल की तारीफ करते हुए कहा कि उन्होंने लगभग 50 करोड़ किसानों की मदद की है। उन्होंने किसानों को बेहतर मैनेजमेंट, मिट्टी के कम कटाव और प्राकृतिक तरीके से मिट्‌टी में पोषक तत्वों को बनाए रखना सिखाया।

पोम्पियो ने कहा कि दुनिया की आबादी लगातार बढ़ रही है। हमें उन संसाधनों की जरूरत है, जिससे उत्पादकता बढ़े और पर्यावरण और मिट्‌टी को नुकसान न हो। मिट्टी पर की गई डॉ. लाल की रिसर्च से पता चलता है कि इसका हल हमारे पास ही है। 

डॉ. लाल बोले- सभी को पौष्टिक भोजन के साथ स्वस्थ धरती भी मिले
डॉ. लाल ने वर्ल्ड फूड प्राइज जीतने के बाद खुशी जताई। उन्होंने कहा कि सबका पेट भरने का काम तब तक पूरा नहीं होता, जब तक सबको पर्याप्त मात्रा में पौष्टिक भोजन के साथ स्वस्थ धरती और स्वच्छ पर्यावरण न मिले। उन्होंने कहा कि यह पुरस्कार इसलिए और महत्त्वपूर्ण है क्योंकि 1987 में पहली बार यह पुरस्कार भारतीय कृषि वैज्ञानिक डॉ. एमएस स्वामीनाथन को मिला था। डॉ. स्वामीनाथ को हरित क्रांति का जनक माना जाता है।

कार्बन मैनेजमेंट एंड सेक्वेस्ट्रेसन सेंटर’ के संस्थापक हैं डॉ. रतन लाल
डॉ. रतन लाल ओहियो यूनिवर्सिटी में ‘कार्बन मैनेजमेंट एंड सेक्वेस्ट्रेसन सेंटर’ के संस्थापक हैं। वह इसके डायरेक्टर भी हैं। रतन लाल ने अपनी रिसर्च की शुरुआत नाइजीरिया के इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल एग्रीकल्चर से की थी। उन्होंने एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका में मिट्‌टी को स्वस्थ बनाने के लिए कई प्रोजेक्ट डेवलप किए।

उन्होंने बिना जुताई, कवर क्रॉपिंग (मिट्‌टी की उर्वरता बढ़ाने वाली फसलें), मल्चिंग (प्लास्टिक से ढककर होने वाली खेती) और एग्रोफोरस्ट्री जैसी तकनीकों की खोज की या उनमें बदलाव किया। इन तकनीकों से खेती करने में पानी कम लगता है और मिट्‌टी के पोषक तत्व बने रहते हैं।

इन तकनीकों के जरिए फसल पर बाढ़, सूखा और जलवायु परिवर्तन के दूसरे प्रभाव नहीं पड़ते हैं। 2007 में इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) को शांति का नोबेल पुरस्कार मिला था। डॉ. रतनलाल भी आईपीसीसी का हिस्सा थे।

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