*अंधकार में रहने वाले को उजाला भी काटता है ऐसे ही बेईमानी और ईमानदारी भी है।कर्मयोगी प्रकृति पुत्र त्यागी जी* Katni .
देश की संस्कृति का उत्थान मानव की पहली आवश्यकता होनी चाहिए जहा हमारा जन्म हुआ वहा की जङ चेतन हर चीजों की सम्भाल करना हमारी प्राथमिकता हो तभी हमारा जीवन सार्थक है।
अपने लिये जीकर आप धन और दिखावटी सामान सम्मान तो एकत्र कर लेंगे लेकिन आपके प्रति समर्पण सद्भाव कहाँ से लायेगे चूंकि जिसके जीवन में सत्य प्रेम सद्भाव समर्पण नहीं अपने देश की संस्कृति के प्रति आस्था नहीं धर्म आचरण का कोई स्थान नहीं बस दिखाने के लिए ही सारा जीवन वह जीवन कैसे अच्छा होगा विचार करें।
जहा मानवता मर चुकी हो सुंदरता बाजार मे बिक रही हो अपनेपन की परिभाषा में धन से ही दिखाई देती हो अकारण ही प्रेम अचानक ही नफरत उमङती हो जहा विचारो से कोई लेना देना ही न हो जहा अच्छे विचारों और विचारको की हत्या सपने मे भी की जाती हो जहा पुस्तकीय ज्ञान को ही महत्व दिया जाने लगे जहा हृदय की आवाज सुनना कोई न चाहे जहा बस लोग दूसरो की परीक्षा लेना चाहें जहाँ सज्जन को ही दुर्जन की तरह शंका की दृष्टि से देखा जाये और डाकू लूट कर आनंदित हो क्या उसी समाज के कर्णधार आप भी है आप हम न माने तो भी समाज के विकारों मे हमारी भी भूमिका कम नहीं है चूंकि यदि हम समाज के लिए समर्पित नदी पहाङ जंगल जीव जंतु मानव दानव सबकी समझ के बगैर बस अपने लिये ही जियें जा रहे हैं इससे बङा दुर्भाग्य क्या होगा इस देश का।
संतों की इस धरा पर जहाँ त्याग तपस्या बलिदान ही पहचान थी *अब धन पद और सुन्दर चमङी ही आवश्यकता बन चुकी है*
दुनिया का सबसे पवित्र तीर्थ बनकर उभर रहा है एक ऐसा स्थान जहाँ की सकारात्मक ऊर्जा से समूचे विश्व कल्याण के लिए समर्पित कर्मयोगी प्रकृति पुत्र त्यागी जी जिनके हर कार्य की खुशबू जन जन तक फैल चुकी है।जहां सिर्फ पवित्र विचारकों की आवश्यकता है धनी और पद प्रतिष्ठा वालों की नहीं।
जहा देश की पवित्रता समाज की ऐकता अखंडता ही सब कुछ है जहा सबको मानवता का पुजारी बना रहे हैं त्यागी जी।
अपने सदकर्म से हर हृदय में प्रेम समर्पण जगाने मानव को देवता बनाने समर्पित भाव से निरंतर अकेले ही चल रहे आइये सच्चे और अच्छे विचारक हम आप मिलकर इस समाज की दिशा और दशा को सही मार्ग पर ले जाने का संकल्प ले ईश्वर हमारे साथ निरंतर है बस प्रार्थना की शक्ति को मजबूत करे अपने संकल्पो के प्रति वफादार रहे।
(सेवार्थ )
कर्मयोगी प्रकृति पुत्र त्यागी जी
ज्ञान तीर्थ विलायत कला कटनी मध्य प्रदेश भारत जहाँ होता संस्कृति का उत्थान