क़रीब 15 से अधिक इस्लामिक देशों ने भारत पर सवाल उठाए और साथ में कई देशों ने भारत के राजदूतों को समन भी किया. भारत के भीतर भी लोग मोदी सरकार को घेर रहे हैं.
भारत ने अलग-अलग बयान जारी करते हुए इन आपत्तियों पर जवाब दिया है और ये स्पष्ट करने की कोशिश की है कि भारत सरकार सभी धर्मों को सम्मान करती है.
पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी और फ़िल्म अभिनेता नसीरुद्दीन शाह ने भी इस विवाद पर अब एक न्यूज़ चैनल के ज़रिए अपनी राय सामने रखी है.हामिद अंसारी ने कहा है कि जिस तरह से भारत ने केवल बयान जारी करके इस्लामिक देशों के विरोध का जवाब दिया वो काफ़ी नहीं है. वहीं, नसीरुद्दीन शाह ने भी कहा है कि अब ज़हर को फैलने से रोकने के लिए ख़ुद पीएम मोदी को मामले में दखल देना चाहिए.
भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रीय प्रवक्ता रहते हुए नूपुर शर्मा ने एक टेलीविज़न चैनल पर डिबेट के दौरान पैग़ंबर मोहम्मद पर विवादित टिप्पणी की थी. इसी डिबेट शो के वीडियो को शेयर करते हुए नवीन जिंदल ने भी आपत्तिजनक ट्वीट किया था.
भारत में दोनों के बयानों पर ख़ूब आरोप-प्रत्यारोप लगे और इसके बाद इस्लामिक देशों ने आपत्ति दर्ज कराना शुरू किया. क़तर ने सबसे पहले भारतीय राजदूत को तलब किया और भारत से माफ़ी की मांग की.
हामिद अंसारी पूर्व डिप्लोमैट भी रहे हैं. विरोध दर्ज करने वाले कुछ राष्ट्रों के साथ काम कर चुके हैं. कूटनीतिक संबंधों का अनुभव रखने वाले हामिद अंसारी ने कहा, “दूतावास का बयान जारी कर देना भर काफ़ी नहीं है. ये आधिकारिक प्रवक्ता के लिए भी काफ़ी नहीं कि वो केवल स्पष्टीकरण जारी कर दे. इसे उचित राजनीति स्तर पर संभालना चाहिए था.”
उन्होंने कहा, “प्रधानमंत्री ने इस मामले को संभाल लिया है लेकिन कोई भी ये नहीं मानेगा कि उन्होंने ऐसा समय रहते किया है.”
पीएम मोदी ने अभी तक इस मामले पर कुछ भी नहीं कहा है. हामिद अंसारी से ये पूछा गया कि वो प्रधानमंत्री को क्या संदेश देना चाहेंगे. इस पर उन्होंने कहा, “प्रधानमंत्री को सही बातें कहनी चाहिए थी…उन्हें पता है कि क्या बोलना है. मुझे उन्हें बताने की ज़रूरत नहीं कि वो क्या करें और न करें.”
खाड़ी देशों में भारत के लिए खोने को क्या है, इस सवाल पर उन्होंने कहा कि इस्लामिक सहयोग संगठन यानी ओआईसी में 52 सदस्य देश हैं, जो कि संयुक्त राष्ट्र में वोटिंग के समय एक अहम भूमिका में होते हैं.
हामिद अंसारी ने कहा, “ये किसी एक देश के विरोध की बात नहीं, जिससे हमें बुरा लगे. बल्कि ये संयुक्त राष्ट्र के 52 सदस्य देशों का हमारे ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने का सवाल है. इस तरह से विरोध के लिए देशों का एकजुट होना तब तक संभव नहीं जब तक उनके आपस में राजनीतिक स्तर पर ये सहमति न हो कि यही वो मसला है जिसको ज़ोर-शोर से उठाने की ज़रूरत है.”
“ये किसी एक व्यक्ति का मसला नहीं है. इससे एक धर्म विशेष पर आस्था रखने वाले समुदाय पर असर पड़ा है. अगर इससे दुनिया के हर मुसलमान पर असर पड़ता है तो इस तरह की प्रतिक्रिया मिलनी ही थी. ये विरोध निश्चित था.”