दिल्ली की कड़कड़डूमा कोर्ट ने दिल्ली की जेएनयू यूनिवर्सिटी के पूर्व छात्र उमर ख़ालिद को ज़मानत देने से इनकार कर दिया है. कोर्ट ने कहा है कि इस स्तर पर याचिकाकर्ता के लिए ज़मानत की कोई योग्यता नहीं है.
3 मार्च को कड़कड़डूमा कोर्ट के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश (एएसजे) अमिताभ रावत ने अपना फ़ैसला सुरक्षित रख लिया था.
इसके बाद ये फ़ैसला 21 मार्च तक के लिए टाल दिया गया था. आख़िरकार अदालत ने 24 मार्च को अपना फ़ैसला सुनाया.
उमर ख़ालिद पर फ़रवरी, 2020 के दौरान हुए दिल्ली दंगों के मामले में आपराधिक साजिश रचने का आरोप है. इस मामले में उन पर यूएपीए की धाराएं लगाई गई हैं.
मेरे ख़िलाफ़ सबूत नहीं’
कड़कड़डूमा कोर्ट में बहस के दौरान उमर ख़ालिद की तरफ़ से कोर्ट में कहा गया था कि अभियोजन पक्ष के पास उनके ख़िलाफ़ अपना केस साबित करने के लिए सबूतों की कमी है.
खालिद के वकील, सीनियर एडवोकेट त्रिदीप पेस ने एएसजे रावत को बताया था, ” इस मामले (फ़रवरी 2020 दिल्ली दंगों का मामला) में अभियोजन के पास ख़ालिद के ख़िलाफ़ अपना मामला साबित करने के लिए सबूतों की कमी थी.”
2020 के दिल्ली दंगों के मामले में उमर ख़ालिद की बेगुनाही का दावा करते हुए त्रिदीप पेस ने आगे कहा था कि ज़्यादातर आरोपों का कोई कानूनी आधार ही नहीं था.
उन्होंने अभियोजन पक्ष से सवाल पूछा था कि उनके मुवक्किल के ख़िलाफ़ क्या-क्या सबूत हैं? उन्होंने ये भी कहा कि अभियोजन पक्ष ने जो आरोप उमर ख़ालिद पर लगाए हैं वो पूरी तरह से काल्पनिक हैं और आरोपों के लिए कोई सबूत नहीं है.
पेस ने एएसजे रावत से कहा, “ये अभियोजन पक्ष की कोरी कल्पना है. आप पहले एक कहानी बनाना चाहते हैं फिर उस कहानी को पूरा करने के लिए सबूत बनाना चाहते हैं.”
पेस का कहना है कि अभियोजन पक्ष ने 2020 दिल्ली दंगों के मामले में साजिश रचने को लेकर जो चार्जशीट दायर की है उसमें बिना किसी आधार के ख़ालिद के ख़िलाफ़ आरोप लगाए हैं.
सरकार को घुटने पर ला देने का इरादा था”
वहीं इन दलीलों का विरोध करते हुए विशेष लोक अभियोजक अमित प्रसाद ने एएसजे से मांग की कि उमर ख़ालिद की जमानत याचिका को कोर्ट ख़ारिज कर दिया.
जमानत याचिका पर बहस के दौरान प्रसाद ने कोर्ट में कहा था, “अंतिम उद्देश्य सरकार को उखाड़ फेंकने का था, संसद के अधिकार को कमज़ोर करने का था, जिसने नागरिकता संशोधन अधिनियम और एनआरसी को लागू किया है. साथ ही लोकतंत्र की नींव को अस्थिर करने का उद्देश्य था.”
“सरकार को घुटने पर ला देने का इरादा था ताकि सीएए को वापस लेना पड़े. ये उन चैट से साफ़ होता है जिसमें स्पष्ट तौर पर कहा गया है कि सरकार को घुटनों पर लाना होगा.”
दिल्ली दंगा और गिरफ़्तारी
दिल्ली दंगों के मामले में उमर ख़ालिद को कई दूसरे अभियुक्तों के साथ दिल्ली पुलिस ने यूएपीए यानी ग़ैर-क़ानूनी गतिविधियाँ रोकथाम अधिनियम के तहत गिरफ़्तार किया था.
ख़ालिद के ख़िलाफ़ 124-ए (देशद्रोह), 120-बी (आपराधिक साजिश), 420 (धोखाधड़ी) और 465 (जालसाजी) सहित भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की कई धाराओं के तहत भी मामला दर्ज किया गया है. दिल्ली पुलिस ने कई ”अहम सबूत” पाए जाने का दावा भी किया है.
अभियोजन पक्ष के मुताबिक़, फ़रवरी 2020 में हुए इन दंगों को सामाजिक ताने-बाने को तोड़ने और भारत की छवि को धूमिल करने के लिए पूर्वनियोजित साज़िश के तहत अंजाम दिया गया था. सीएए और एनआरसी के विरोध में चल रहे प्रदर्शन के बीच दिल्ली में ये दंगे भड़के थे. अभियोजन पक्ष ने अदालत में कहा था कि दिल्ली में हुए दंगे ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया था.
दिल्ली पुलिस ने अपनी सप्लीमेंट्री चार्जशीट में ये दावा किया था कि जेएनयू के पूर्व छात्र उमर ख़ालिद ने महाराष्ट्र के अमरावती में आयोजित एक सीएए विरोधी रैली में भाषण दिया था, ऐसा करके ख़ालिद ने लोगों को उकसाया था.
खालिद को एक दूसरे मामले में अप्रैल में ज़मानत मिल गई थी लेकिन आपराधिक साजिश के आरोपों में ख़ालिद पर यूएपीए के तहत मामला दर्ज़ है, ऐसे में वो तिहाड़ जेल में ही बंद हैं.
ऐसे चर्चा में आए उमर ख़ालिद
उमर ख़ालिद का नाम पहली बार जेएनयू के छात्र नेता रहे कन्हैया कुमार के साथ फ़रवरी 2016 में सुर्ख़ियों में आया था. लेकिन तब से कई मामलों में और अपने कुछ बयानों की वजह से ख़ालिद लगातार सुर्खि़यों में रहे हैं.
ख़ासकर मोदी सरकार की मुखर आलोचना करने के कारण उमर ख़ालिद दक्षिणपंथी रुझान रखने वाले लोगों के निशाने पर रहे हैं.
इस ताज़ा मामले से पहले फ़रवरी 2016 में ‘संसद पर हमले के दोषी अफ़ज़ल गुरू की फाँसी की बरसी पर आयोजित हुआ कार्यक्रम’ उमर ख़ालिद को काफ़ी महंगा पड़ा था. आरोप लगे कि इस कार्यक्रम में कथित तौर पर भारत विरोधी नारे लगाए गए थे.
आरोप था कि कथित नारे लगानेवालों में जेएनयू छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार और छह अन्य छात्रों में उमर ख़ालिद भी शामिल थे. इसके बाद उमर ख़ालिद पर राजद्रोह का केस लगा. वे पुलिस रिमांड पर रहे और कुछ वक़्त बाद उन्हें कोर्ट से ज़मानत मिल गई.
लेकिन भारतीय मीडिया के एक गुट ने उन्हें ‘देशद्रोही’ कहा, यहाँ तक कि उनके साथियों को ‘टुकड़े-टुकड़े गैंग’ कहा गया. उमर ख़ालिद बार-बार कहते रहे हैं कि मीडिया ने उनकी इस तरह की छवि गढ़ी है, जिसके चलते वे कुछ लोगों की नफ़रत का शिकार बन रहे हैं.
जनवरी 2020 में उमर ख़ालिद ने गृह मंत्री अमित शाह को चुनौती दी थी कि “अगर वे ‘टुकड़े-टुकड़े’ गैंग को दंडित करवाना चाहते हैं और अगर वे अपनी बात के पक्के हैं, तो ‘टुकड़े-टुकड़े’ स्पीच के लिए मेरे ख़िलाफ़ कोर्ट में केस करें. उसके बाद साफ़ हो जाएगा कि किसने हेट स्पीच दी और कौन देशद्रोही है.”
जब गृह मंत्री की ज़ुबान पर आया ख़ालिद का भाषण
संसद में दिल्ली दंगों पर जवाब देते हुए भारत के गृह मंत्री अमित शाह ने भी उमर ख़ालिद का नाम लिए बिना 17 फ़रवरी 2020 के उनके एक भाषण का ज़िक्र किया था.
गृह मंत्री ने कहा था, “17 फ़रवरी को ये भाषण दिया गया और कहा गया कि डोनाल्ड ट्रंप के भारत आने पर हम दुनिया को बताएँगे कि हिंदुस्तान की सरकार जनता के साथ क्या कर रही है. मैं आप सबसे अपील करता हूँ कि देश के हुक्मरानों के ख़िलाफ़ बाहर निकलिए. इसके बाद 23-24 फ़रवरी को दिल्ली में दंगा हो गया.”
उमर ख़ालिद के 17 फ़रवरी 2020 को महाराष्ट्र के अमरावती में दिए गए इस भाषण का ज़िक्र दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने भी सबूत के तौर पर किया है.
लेकिन फ़ैक्ट चेक करने वाली कुछ नामी वेबसाइट्स ने यह दावा किया है कि उमर ख़ालिद के भाषण का अधूरा वीडियो सोशल मीडिया पर फैलाकर उनके ख़िलाफ़ भ्रम फैलाने की कोशिश की गई, क्योंकि उनके भाषण के अधूरे वीडियो को सुनकर लगता है कि ‘वो लोगों को भड़का रहे हैं.’
जबकि उमर ख़ालिद ने अपने भाषण में कहा था कि “जब अमरीका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भारत में होंगे तो हमें सड़कों पर उतरना चाहिए. 24 तारीख़ को ट्रंप आएँगे तो हम बताएँगे कि हिंदुस्तान की सरकार देश को बाँटने की कोशिश कर रही है. महात्मा गांधी के उसूलों की धज्जियाँ उड़ा रही है. हम दुनिया को बताएँगे कि हिंदुस्तान की आवाम हिंदुस्तान के हुक्मरानों के ख़िलाफ़ लड़ रही है. उस दिन हम तमाम लोग सड़कों पर उतर कर आएँगे.”
क़ानून के जानकारों के अनुसार, लोगों से प्रदर्शन करने के लिए कहना संविधान के मुताबिक़ अपराध नहीं है, बल्कि लोकतांत्रिक अधिकार है. वहीं लोगों को हिंसा के लिए भड़काना अपराध की श्रेणी में आता है.
बुरहान वानी पर टिप्पणी
जुलाई 2016 में हिज़्बुल कमांडर बुरहान वानी की मौत के बाद कश्मीर घाटी में बड़े पैमाने पर हिंसा हुई थी और इस घटना ने विरोध प्रदर्शनों को जन्म दिया था, जिनमें कई लोग मारे गए थे.
बुरहान की अंतिम-यात्रा में भी भारी भीड़ देखने को मिली थी, जिसके बाद उमर ख़ालिद ने फ़ेसबुक पर बुरहान वानी की ‘तारीफ़’ में पोस्ट लिखी थी, जिसे काफ़ी आलोचना मिली.
आलोचना को देखते हुए उमर ख़ालिद ने यह पोस्ट कुछ वक़्त बाद हटा ली थी. लेकिन तब तक सोशल मीडिया पर उनका विरोध शुरू हो गया था. हालांकि, कई लोग उनके समर्थन में भी थे.
उमर ख़ालिद पर हमला
अगस्त 2018 में दिल्ली के कॉन्स्टीट्यूशन क्लब के बाहर कुछ अज्ञात हमलावरों ने उमर ख़ालिद पर कथित तौर पर गोली चलाई थी. ख़ालिद वहाँ ‘टूवर्ड्स ए फ़्रीडम विदाउट फ़ियर’ नामक कार्यक्रम में शामिल होने गए थे.
तब प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया था कि सफ़ेद कमीज़ पहने एक शख़्स ने आकर उमर ख़ालिद को धक्का दिया और गोली चलाई. लेकिन ख़ालिद के गिर जाने की वजह से गोली उन्हें नहीं लगी.
इस घटना के बाद उमर ख़ालिद ने कहा, “जब उसने मेरी तरफ़ पिस्टल तानी, तो मैं डर गया था, पर मुझे गौरी लंकेश के साथ जो हुआ था, उसकी याद आ गई.”