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पंडित बिरजू महाराज ने कथक को एक नई पहचान दी थी

बिरजू महाराज

जाने-माने कथक नर्तक पंडित बिरजू महाराज का रविवार देर रात निधन हो गया. वो 83 वर्ष के थे.

समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार, उनकी मौत दिल का दौरा पड़ने से हुई. पंडित बिरजू महाराज को देश का दूसरा सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था. उनका जन्म चार फ़रवरी, 1937 में एक जाने-माने कथक डांसर परिवार में बृजमोहन मिश्रा के रूप में हुआ था.

बिरजू महाराज की मौत पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शोक व्यक्त करते हुए ट्वीट किया है, ”भारतीय नृत्य कला को विश्व भर में विशिष्ट पहचान दिलाने वाले पंडित बिरजू महाराज जी के निधन से अत्यंत दुख हुआ है. उनका जाना संपूर्ण कला जगत के लिए एक अपूरणीय क्षति है. शोक की इस घड़ी में मेरी संवेदनाएं उनके परिजनों और प्रशंसकों के साथ हैं. ओम शांति!”

उनके निधन की जानकारी उनके पोते स्वरांश मिश्रा ने फ़ेसबुक पोस्ट के ज़रिए भी दी. उन्होंने लिखा, ”बहुत ही गहरे दुख के साथ हमें बताना पड़ रहा है कि आज हमने अपने परिवार के सबसे प्रिय सदस्य पंडित बिरजू जी महाराज को खो दिया. 17 जनवरी को उन्होंने अंतिम सांस ली. मृत आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करें.”

हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत के अहम हस्ताक्षर पंडित छन्नूलाल मिश्रा ने बिरजू महाराज के निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया है. छन्नूलाल मिश्रा ने कहा, ”बिरजू महाराज हमारे रिश्तेदार थे. एक तो परिवार और दूसरे अच्छे कलाकार. उनके जाने से मैं बहुत दुखी हूँ. वे मुझे बहुत आदर देते थे. लेकिन जो इस दुनिया में आया है, उसे जाना भी है. मैं उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करता हूँ.”

पद्मश्री राजेश्वर आचार्य ने भी बिरजू महाराज के निधन पर शोक जताया है. उन्होंने कहा, ”दुखद समाचार है और इससे मैं मर्माहत हूँ. वह नृत्य के अवतार थे. उनके रोम-रोम में कला थी. उनके काम का दायरा बहुत ही विस्तृत था. नृत्य की मर्यादा के ख़िलाफ़ उन्होंने कभी काम नहीं किया. बिरजू महाराज नृत्य के आचार्य ही नहीं पर्याय माने जाने लगे थे.”

पंडित बिरजू महाराज की शिष्या और जानी-मानी कथक नृत्यांगना और गुरु भास्वती मिश्रा ने बताया कि बिरजू महाराज नृत्य में तो दक्ष थे ही, मगर इसके अलावा भी वो कला की अन्य विधाओं में भी पारंगत थे.

भास्वती मिश्रा ने बताया, “इन दिनों वो काफ़ी पेंटिंग करते थे, कविताएँ लिखते थे, आख़िरी समय में भी वो कविताएँ लिख रहे थे. मगर ताल वाद्यों (जैसे तबला, ढोलक, पखावज) पर उनकी अच्छी पकड़ थी. वैसे तो वो बजाते हर वाद्य थे, जैसे वायलिन, सरोद, बाँसुरी आदि, वो गाते भी बेहतरीन थे, मगर ताल वाद्यों में उनका रुझान भी था और उनपर उनकी बहुत मज़बूत पकड़ भी थी.”

उन्होंने साथ ही बताया कि पंडित जी चाट-गोलगप्पे चाव से खाते थे और सुपारी के भी बहुत शौकीन थे.

लखनऊ के कथक घराने में पैदा हुए बिरजू महाराज के पिता अच्छन महाराज और चाचा शम्भू महाराज का नाम देश के प्रसिद्ध कलाकारों में शुमार है.

उनका शुरुआती नाम बृजमोहन मिश्रा था. नौ वर्ष की आयु में पिता के गुज़र जाने के बाद परिवार की ज़िम्मेदारी उनके कंधों पर आ गई. फिर उन्होंने अपने चाचा से कथक नृत्य का प्रशिक्षण लेना शुरू किया.

कुछ अरसे बाद कपिला वात्स्यायन उन्हें दिल्ली ले आईं. उन्होंने संगीत भारती (दिल्ली) में छोटे बच्चों को कथक सिखाना शुरू किया और फिर कथक केंद्र (दिल्ली) का कार्यभार भी संभाला.

उन्होंने कथक के साथ कई प्रयोग किए और फ़िल्मों के लिए कोरिओग्राफ़ भी किया. उनकी तीन बेटियाँ और दो बेटे हैं.

कई पुरस्कारों के अलावा उन्हें पद्मविभूषण, संगीत नाटक अकादमी अवॉर्ड, कालिदास सम्मान व फ़िल्म ‘विश्वरूपम्’ में बेस्ट कोरिओग्राफ़ी के लिए नेशनल अवॉर्ड दिया गया. उन्होंने दिल्ली में ‘कलाश्रम’ नाम से कथक संस्थान की स्थापना की.

शुरुआत

बिरजू महाराज का नाम पहले दुखहरण रखा गया था. जिस अस्पताल में वो पैदा हुए, उस दिन वहाँ उनके अलावा बाकी सब लड़कियों का जन्म हुआ था, इसी वजह से उनका नाम बृजमोहन रख दिया गया. जो आगे चलकर ‘बिरजू’ और फिर ‘बिरजू महाराज’ के रूप में प्रसिद्ध हुए.

कथक नृत्य बिरजू महाराज को विरासत में मिला. उनके पूर्वज इलाहाबाद की हंडिया तहसील के रहने वाले थे. यहां सन् 1800 में कथक कलाकारों के 989 परिवार रहते थे. आज भी वहां कथकों का तालाब और सती चौरा है.

बिरजू महाराज
इमेज कैप्शन,बिरजू महाराज की मां

महाराज की अम्मा को उनका पतंग उड़ाना और गिल्ली-डंडा खेलना बिल्कुल पसंद नहीं था. जब अम्मा पतंग के लिए पैसे नहीं देतीं तो नन्हे बिरजू दुकानदार बब्बन मियां को नाच दिखा कर पतंग ले लिया करते.

मध्य काल में कथक का संबंध कृष्ण कथा और नृत्य से था. आगे चलकर मुग़ल प्रभाव आने से यह नृत्य दरबारों में बादशाहों के मनोरंजन के लिए किया जाने लगा.

गाँव में सूखा पढ़ने पर लखनऊ के नवाब ने उनके पूर्वजों को राजकीय संरक्षण दिया और इस तरह बिरजू महाराज के पूर्वज नवाब वाजिद अली शाह को कथक का प्रशिक्षण देने लगे.

भारत के आठ शास्त्रीय नृत्यों में सबसे पुराना कथक है. इस संस्कृत शब्द का अर्थ होता है कहानी सुनाने वाला. बिरजू महाराज को तबला, पखावज, नाल, सितार आदि कई वाद्य यंत्रों पर भी महारत हासिल थी, वो बहुत अच्छे गायक, कवि व चित्रकार भी थे.बिरजू महाराज का ठुमरी, दादरा, भजन व ग़ज़ल गायकी में भी कोई जवाब नहीं था. कथक को अधिक लोग सीख पाएं इस उद्देश्य से पंडित बिरजू महाराज ने 1998 में कलाश्रम नाम से कथक केंद्र की स्थापना की.बिरजू महाराज ने सत्यजीत राय की ‘शतरंज के खिलाड़ी’ से लेकर ‘दिल तो पागल है’, ‘ग़दर’, ‘देवदास’, ‘डेढ़ इश्क़िया’, ‘बाजीराव मस्तानी’ जैसी कई फिल्मों में नृत्य निर्देशन किया था.

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