तीन कृषि क़ानूनों को वापस लेने की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की घोषणा के बाद आगामी उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में क्या बीजेपी को वापस राजनीतिक बढ़त मिलती दिख रही है?
केंद्र सरकार इस फ़ैसले को काफ़ी समय से वापस लेने वाली थी लेकिन कई कारणों से इसमें देरी हो रही थी.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस फ़ैसले को वापस लेने की घोषणा के पीछे कई कारणों का अनुमान लगाया जा रहा है लेकिन विश्लेषक मानते हैं कि इस फ़ैसले की वजह बीजेपी की आंतरिक कलह, पंचायत चुनावों में ख़राब प्रदर्शन और हालिया उप-चुनावों के परिणाम हैं लेकिन इस फ़ैसले के प्रभाव मिले जुले होंगे.
अख़बार लिखता है कि बीजेपी के सदस्य जो कल तक कृषि क़ानूनों के फ़ायदे गिनाने में व्यस्त थे वो एकाएक बैकफुट पर आ गए हैं. एक बीजेपी विधायक नाम नहीं बताने की शर्त पर अख़बार से कहते हैं, “हम अब यह कह सकते हैं कि पीएम ने कहा कि क़ानून अच्छे हैं लेकिन हम इसे किसानों को समझा नहीं सके… आपको पता है न यह कैसा है.”अख़बार की रिपोर्ट के अनुसार, पार्टी सूत्रों का कहना है कि ऐसा हो सकता है कि वर्तमान जाट विधायकों को अगले चुनाव में टिकट न दिया जाए.
शामली की बत्तीसा खाप के सोकेंद्र चौधरी ने द हिन्दू से कहा, “एक साल लंबे आंदोलन में हम उनकी भूमिका और हमारे उद्देश्यों पर उनके सवालों को भूले नहीं हैं. हम बीजेपी के असली चरित्र को पहचान चुके हैं और अब पार्टी पर वोट की चोट पड़ेगी.”
वो कहते हैं, “हमने संजीव बालियान, सुरेश राणा और उमेश मलिक को अपने गाँवों में घुसने नहीं दिया और यह नहीं बदलेगा. पार्टी को इस क्षेत्र की समझ नहीं है जहाँ पर व्यक्तिगत गरिमा हर चीज़ से ऊपर होती है. मुझे उनके लिए (स्थानीय बीजेपी नेताओं) गहरा दुख है. वो कैसे अपने लोगों को चेहरा दिखाएंगे.”
योगी आदित्यनाथ के कारण लिया गया फ़ैसला?
अख़बार लिखता है कि यह भी माना जा रहा है कि योगी आदित्यनाथ के पार्टी में बढ़ते प्रभाव के कारण केंद्र को मजबूरन यह करना पड़ा है.
साथ ही विश्लेषक हवाला देते हैं कि राकेश टिकैत ने लखीमपुर हिंसा मामले को शांत किया और बीकेयू (भारतीय किसान यूनियन) लगातार लखनऊ में विरोध प्रदर्शन करने से बच रही थी.
बीकेयू के सूत्र बताते हैं कि केंद्र की ज़िद ने मुख्यमंत्री को सबसे अधिक प्रभावित किया है और वे अक्टूबर से ही इस फ़ैसले का इंतज़ार कर रहे थे.
एक सूत्र ने अख़बार से बताया, “आदित्यनाथ अगर कृषि क़ानूनों के बावजूद थोड़े अंतर से भी जीत जाते तो वो मोदी के उत्तराधिकारी के तौर पर उभर जाते और बीजेपी का एक तबका 2024 में यह नहीं चाहता है. लेकिन अब जो भी परिणाम आएगा उसे साझा किया जाएगा.”
पार्टी सूत्रों का यह भी कहना है कि महामारी के कारण पार्टी को बेरोज़गारी और महंगाई जैसे कई मुद्दों पर भी जनता के ग़ुस्से से निपटना पड़ा है.