सुप्रीम कोर्ट ने यौन उत्पीड़न के एक मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट के एक फ़ैसले पर रोक लगा दी है जिसकी काफ़ी आलोचना हुई थी.
बॉम्बे हाईकोर्ट ने इस वर्ष जनवरी में एक फ़ैसले में कहा था कि वक्षस्थल को जबरन छू लेने मात्र को यौन उत्पीड़न की संज्ञा नहीं दी जा सकती.
इसी मामले पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने आज गुरुवार को पलटते हुए नाबालिग लड़की के साथ यौन उत्पीड़न करने वाले शख़्स को दोषी ठहराया.
अदालत ने साथ ही कहा कि पोक्सो एक्ट यौन उत्पीड़न के शिकार बच्चों के हित के लिए होना चाहिए.
हाई कोर्ट की नागपुर बेंच की न्यायमूर्ति पुष्पा गनेडीवाला ने जनवरी में अपने फ़ैसले में लिखा था, “सिर्फ वक्षस्थल को जबरन छूना मात्र यौन उत्पीड़न नहीं माना जाएगा, इसके लिए यौन मंशा के साथ स्किन टू स्किन कॉन्टेक्ट होना ज़रूरी है.”
दरअसल, दोषी पाए गए व्यक्ति ने लालच देकर 12 साल की एक लड़की को अपने घर बुलाया और जबरन उसके वक्षस्थल को छूने और उसके कपड़े उतारने की कोशिश की. जिस पर बॉम्बे हाईकोर्ट ने फ़ैसला सुनाते हुए दोषी की सज़ा में बदलाव किया था.
पहले नागपुर सत्र न्यायालय ने आईपीसी सेक्शन 354 के तहत इस व्यक्ति को एक साल की और पोक्सो के तहत तीन साल की सज़ा सुनाई थी.
ये दोनों सज़ाएं एक साथ दी जानी थीं. लेकिन बॉम्बे हाईकोर्ट के फ़ैसले के बाद तीन साल की सजा वाला फ़ैसला निष्क्रिय हो गया था.
लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद बॉम्बे हाईकोर्ट का आदेश रद्द हो गया है.