सार
याचिकाकर्ता ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फरवरी 2008 के फैसले को चुनौती दी थी। इस आदेश में कहा गया था कि पद को निरस्त करने और उसकी सेवा समाप्त करने के विश्वविद्यालय के आदेश में न कोई अवैधता है न ही कोई कमी।
विस्तार
सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के एक मामले में सुनवाई करते हुए विश्वविद्यालय के सहायक प्राध्यापक को नौकरी में बहाल करने का निर्देश सुनाया है। कोर्ट ने अपने निर्णय में कहा है कि सहायक प्राध्यापक को अवैध तरीक से मार्च 2007 में बर्खास्त किया गया था। न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना की पीठ ने याचिकाकर्ता की अपील पर यह फैसला सुनाया है। याचिकाकर्ता ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फरवरी 2008 के फैसले को चुनौती दी थी। इस आदेश में कहा गया था कि पद को निरस्त करने और उसकी सेवा समाप्त करने के विश्वविद्यालय के आदेश में न कोई अवैधता है न ही कोई कमी।शीर्ष अदालत ने उच्च न्यायालय का आदेश निरस्त करते हुए विश्वविद्यालय को सहायक प्राध्यापक को बहाल करने का निर्देश दिया। पीठ ने उन्हें सिर्फ पेंशन और सेवानिवृत्ति लाभ, यदि कोई हों, के प्रयोजन के लिए सेवाओं की निरंतरता का लाभ भी प्रदान करने का निर्देश दिया।
शीर्ष अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता 31 मार्च, 2007 से बहाली की तारीख तक की अवधि के लिए वेतन के किसी भी बकाये का हकदार नहीं होगा क्योंकि उसने “काम नहीं, वेतन नहीं” के सिद्धांत पर उक्त अवधि में काम नहीं किया है