April 19, 2024 : 5:56 AM
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आनंद गिरि कौन हैं और महंत नरेंद्र गिरि के साथ उनके कैसे रिश्ते थे?

 एफआईआर में बाघंबरी मठ के व्यवस्थापक अमर गिरि ने आनंद गिरि पर आरोप लगाया गया है कि महंत नरेंद्र गिरि पिछले कुछ समय से आनंद गिरी की वजह से तनाव में चल रहे थे जिसके चलते उन्होंने अपनी जान दे दी.

पुलिस ने इस मामले में आनंद गिरी समेत कई अन्य लोगों को हिरासत में लेकर पूछताछ शुरू कर दी है. बता दें कि महंत नरेंद्र गिरि के पास से एक कथित सुसाइड नोट बरामद हुआ है जिसमें आनंद गिरी का ज़िक्र है.

निरंजन अखाड़े के संत एवं बाघंबरी मठ के महंत नरेंद्र गिरि और उनके शिष्य आनंद गिरि के बीच विवादों का सिलसिला एक लंबे समय से चलता आ रहा है.

बता दें कि हिंदू धर्म में इस समय कुल 13 अखाड़े हैं. इनमें से आवाहन अखाड़ा, अटल अखाड़ा, महानिर्वाणी अखाड़ा, आनंद अखाड़ा, निर्मोही अखाड़ा, दशनामी, निरंजनी और जूना अखाड़ा आदि प्रमुख अखाड़ों में गिने जाते हैं. अखाड़े अपनी-अपनी परंपराओं में शिष्यों को दीक्षित करते हैं और उन्हें उपाधि देते हैं. नरेंद्र गिरि और आनंद गिरि निरंजनी अखाड़े से जुड़े थे. और पिछले कई सालों से बाघंबरी मठ की ज़िम्मेदारियां संभाल रहे थे.

कौन हैं आनंद गिरि

लंबी कद काठी, लंबे बाल और फ्रेंच कट दाढ़ी रखने वाले योग गुरू आनंद गिरि का जन्म साल 21 अगस्त 1980 को राजस्थान में हुआ था.

इसके बाद वह लगभग दस वर्ष की आयु में नरेंद्र गिरि के संपर्क में आए जो कि उन्हें हरिद्वार लेकर आए.

आनंद गिरि अपने एक इंटरव्यू में बताते हैं कि उन्होंने मात्र दस साल की उम्र में घर छोड़ दिया था. और इसके बाद वह कई सालों तक उत्तराखंड में रहे और फिर प्रयागराज पहुंचे.अपने पासपोर्ट में माँ के नाम की जगह हिंदू देवी पार्वती और पिता के स्थान पर गुरु का नाम लिखवाने वाले आनंद गिरि दावा करते हैं कि वह ब्रिटेन और कनाडा समेत दुनिया की कई संसदों में भाषण दे चुके हैं.

प्रयागराज से आनंद गिरी का संबंध

आनंद गिरि को क़रीब से जानने वाले कहते हैं कि प्रयागराज क्षेत्र में उन्हें एक रॉकस्टार साधु का दर्जा हासिल है. लोग उन्हें छोटे महाराज कहकर भी बुलाते हैं.

हैंडल छोड़कर बुलेट चलाने जैसे स्टंट कर चुके आनंद गिरि युवाओं के बीच ख़ासे लोकप्रिय हैं.

इसके साथ ही उनकी पहचान एक यूथ आइकन, स्टाइल आइकन और डायनेमिक गुरू की रही है.

आनंद गिरी

प्रयागराज से आनंद गिरी का संबंध

आनंद गिरि को क़रीब से जानने वाले कहते हैं कि प्रयागराज क्षेत्र में उन्हें एक रॉकस्टार साधु का दर्जा हासिल है. लोग उन्हें छोटे महाराज कहकर भी बुलाते हैं.

हैंडल छोड़कर बुलेट चलाने जैसे स्टंट कर चुके आनंद गिरि युवाओं के बीच ख़ासे लोकप्रिय हैं.

इसके साथ ही उनकी पहचान एक यूथ आइकन, स्टाइल आइकन और डायनेमिक गुरू की रही है.

तस्वीरों में वरिष्ठ पुलिसकर्मियों से लेकर केंद्रीय मंत्री स्तर के नेता उनके सामने हाथ जोड़े दिखाई देते हैं.

और अपने इंटरव्यूज़ में वह प्रदेश के उप-मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्या को केशव कहकर बुलाते दिखते हैं.

रतिभान त्रिपाठी इस रसूख की वजह समझाते हुए कहते हैं, “आनंद गिरि जी प्रयाग राज में बड़े हनुमान जी के मंदिर में प्रमुख भूमिका में रहे हैं. बड़े हनुमान जी प्रयागराज में नगर देवता के रूप में प्रतिष्ठित हैं. और वहां देश विदेश और दुनिया की तमाम हस्तियां दर्शन करने पहुंचती हैं.

मंदिर में आने वाली बड़ी – बड़ी हस्तियों को दर्शन कराने से लेकर आरती कराने जैसे कामों में वह अपने गुरू नरेंद्र गिरि के साथ मौजूद रहते थे. इस तरह इनका बड़े-बड़े लोगों से सीधी बातचीत और तालमेल बना.”

गुरु नरेंद्र गिरि के साथ विवाद

आनंद गिरि को क़रीब से जानने वाले कहते हैं कि उनके और नरेंद्र गिरि के बीच काफ़ी आत्मीय संबंध रहे हैं.

लेकिन बाघंबरी मठ की ज़मीन को लेकर विवाद होने के बाद गुरू और शिष्य ने खुलकर एक दूसरे के ऊपर आरोप लगाए.

आनंद गिरि ने महंत नरेंद्र गिरि पर आरोप लगाया था कि वह मठ की ज़मीनों को निजी स्तर पर बेच रहे हैं. इस मामले में उन्होंने प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति एवं गृहमंत्री को पत्र लिखकर जांच करवाने की अपील भी की थी.

लेकिन इस मामले में निरंजन अखाड़ा समेत तमाम अन्य साधु संतों ने नरेंद्र गिरि का समर्थन किया. बताया जाता है कि इसके बाद उन्हें बाघंबरी मठ और निरंजन अखाड़े से निष्कासित कर दिया गया.

अखाड़ा परिषद को क़रीब से समझने वाले वरिष्ठ पत्रकार रवि उपाध्याय मानते हैं कि इसके लिए आनंद गिरि की महत्वाकांक्षा ज़िम्मेदार है.

वह कहते हैं, “इसमें दो राय नहीं है कि आनंद गिरि एक बहुत ही डायनेमिक और महत्वाकांक्षी व्यक्ति हैं. अंग्रेजी और हिंदी भाषा में निपुण आनंद गिरि अधिकारियों से लेकर नेताओं के सीधे संपर्क में थे. इसे ऐसे समझा जा सकता है कि अगर किसी को मंदिर में आरती से लेकर दर्शन आदि करने होते थे तो वह सीधे आनंद गिरि से संपर्क करता था. इससे उनके बड़े लोगों से राब्ता बन गया.

इसके साथ ही उन्होंने योग गुरू के रूप में खुद को स्थापित करने, गंगा सेना बनाने और माघ मेले के माध्यम से अपना प्रभाव क्षेत्र फैलाने की कोशिश की. समझा जाता है कि ये बात नरेंद्र गिरि के दूसरे शिष्यों को रास नहीं आई और उन्होंने नरेंद्र गिरि के कान भरना शुरू कर दिया. इससे शिष्य और गुरू में धीरे-धीरे दूरियां बढ़नी शुरू हो गयीं.”

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