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हजारों साल पुरानी बीमारी के लिए वैक्सीन बनी:कोरोना वैक्सीन के मॉडल पर तैयार हुआ प्लेग का टीका, एशिया, अफ्रीका और अमेरिका के गांवों में इसके मामले सबसे ज्यादा

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  • Scientists Are Testing A Vaccine Against The PLAGUE Based On The AstraZeneca Coronavirus Vaccine

29 मिनट पहले

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हजारों साल पुरानी बीमारी प्लेग के लिए ऑक्सफोर्ड वैक्सीन ग्रुप के वैज्ञानिकों ने वैक्सीन बनाई है। कोरोना वैक्सीन के मॉडल पर तैयार हुई इस वैक्सीन के पहले फेज का ट्रायल जल्द शुरू होगा। इसमें 18 से 55 साल की उम्र के 40 लोगों को शामिल किया जाएगा। ट्रायल के दौरान वैक्सीन के साइड इफेक्ट और बीमारी से लड़ने के लिए बनने वाली एंटीबॉडी कितनी असरदार है, इसे समझा जाएगा।

प्लेग की वैक्सीन इसलिए जरूरी है क्योंकि आज भी इसके मामले सामने आ रहे हैं। प्लेग के सबसे ज्यादा मामले अफ्रीका, एशिया और अमेरिका के ग्रामीण इलाकों में देखे जाते हैं।

ऑक्सफोर्ड वैक्सीन ग्रुप के डायरेक्टर, सर एंड्रयू पोलार्ड का कहना है, महामारी ने लोगों को वैक्सीन का महत्व समझाया है और बताया है कि बैक्टीरिया-वायरस के खतरों से बचना कितना जरूरी है। हजारों सालों से इंसान प्लेग से जूझते आए हैं और आज भी इसका खौफ जारी है। इसलिए इससे बचाने के लिए वैक्सीन बेहद जरूरी है।

5 पॉइंट्स: प्लेग की वजह क्या है और कैसे फैलता है

  • ऑक्सफोर्ड वैक्सीन ग्रुप का कहना है, प्लेग होने की वजह है, येर्सिनिया पेस्टिस बैक्टीरिया का संक्रमण। इस बीमारी का वाहक है चूहा। बैक्टीरिया से संक्रमित चूहे के काटने पर संक्रमण फैलता है।
  • प्लेग का संक्रमण होने पर तेज बुखार, लिम्फ नोड में सूजन, सांस लेने में तकलीफ होती है। कुछ मामलों में खांसी के दौरान मुंह से खून आने के शिकायत भी होती है। इलाज न होने पर मौत हो जाती है।
  • संक्रमित चूहे के काटने के अलावा, संक्रमित जानवर के आसपास रहना या फिर इन्हें उठाने पर संक्रमण फैल सकता है। संक्रमित इंसान के लार के सम्पर्क में आने पर दूसरे स्वस्थ इंसान में भी इसका संक्रमण फैल सकता है।
  • एंटीबायोटिक्स की मदद से इसका इलाज किया जा सकता है, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में इलाज की पर्याप्त सुविधाएं आसानी से उपलबध न होने के कारण मामले बढ़ते हैं।
  • अफ्रीका, एशिया और अमेरिका के गांव समेत दुनियाभर में 2010 से 2015 के बीच प्लेग के 3,248 मामले सामने आए। वहीं, प्लेग से 548 मौतें हुईं।

तीन तरह का होता है प्लेग

  • ब्यूबॉनिक प्लेग: यह बीमारी की शुरुआती स्टेज है। संक्रमण के बाद बुखार, सिरदर्द, कंपकंपी, थकान और लिम्फ नोड में सूजन जैसे लक्षण दिखते हैं। इलाज न होने पर बैक्टीरिया धीरे-धीरे अपनी संख्या बढ़ाकर शरीर के अलग-अलग हिस्सों में फैलना शुरू कर देता है।
  • सेप्टीसीमिक प्लेग: इसमें संक्रमण का असर स्किन पर भी दिखता है। प्लेग के आम लक्षणों के अलावा मरीज की स्किन काली पड़ जाती है। खासतौर पर हाथ-पैर उंगलियों और नाक पर कालापन दिखता है। ब्यूबॉनिक प्लेग का इलाज न होने पर ये सेप्टीसीमिक प्लेग में तब्दील हो जाता है।
  • न्यूमोनिक प्लेग: यह सबसे गंभीर प्लेग है। ब्यूबॉनिक और सेप्टीसीमिक प्लेग का इलाज न होने पर जब बैक्टीरिया फेफड़ों तक पहुंचा जाता है तो न्यूमोनिक प्लेग की स्थिति बनती है। प्लेग का यह रूप एक से दूसरे इंसान में जल्दी फैलता है।

ग्रामीण क्षेत्रों में वैक्सीन से बीमारी को रोक सकते हैं
वैक्सीन एक्सपर्ट क्रिस्टीन रोलियर कहती हैं, ग्रमीण क्षेत्रों में एंटीबायोटिक्स की मदद से प्लेग का इलाज किया जा सकता है। ऐसे क्षेत्रों में बीमारी को रोकने के लिए वैक्सीन बड़ा हथियार साबित हो सकती है। प्लेग की वैक्सीन को सुई की मदद से लगाया जा सकता है।

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