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सांसों का संकट: जानिए, क्या हैं क्रायोजेनिक टैंक, जिनके बिना लिक्विड ऑक्सीजन का ट्रांसपोर्टेशन मुमकिन ही नहीं, क्यों हैं देश में इनकी कमी?

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Hindi NewsNationalKnow, What Are The Cryogenic Tanks, Due To Lack Of Which There Are Problems In Delivering Oxygen To The People Of The Country.

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अहमदाबादएक दिन पहलेलेखक: धैवत त्रिवेदी

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देश में ऑक्सीजन संकट गहराता जा रहा है। देश के कई राज्यों के हॉस्पिटल्स ऑक्सीजन की कमी से जूझ रहे हैं। ऐसे में क्रायोजेनिक टैंकर से ऑक्सीजन की चौबीसों घंटे सप्लाई की जा रही है। लेकिन, देश में क्रायोजेनिक टैंक की कमी के चलते समय रहते सभी जगह ऑक्सीजन की सप्लाई में काफी परेशानी आ रही है। क्योंकि, ऑक्सीजन की सप्लाई इन टैंक के बिनी मुमकिन ही नहीं। इसी सिलसिले में आज हम आपको बता रहे हैं कि आखिर क्रायोजेनिक टैंक की खासियत क्या है, जो आज कोरोना महामारी के वरदान बने हुए हैं।

क्या हैं क्रायोजेनिक टैंक ?- क्रायोजेनिक शब्द ग्रीक, लैटिन और अंग्रेजी भाषाओं के संयोजन से बना है।- ग्रीक शब्द क्रिए का लैटिन भाषा में अपभ्रंश क्रायो होता है, जिसका अर्थ है बहुत ज्यादा ठंडा और अंग्रेजी में क्रायोजेनिक का मतलब है बेहद ठंडा रखने वाला।- इस शब्द से अब यह आसानी से समझा जा सकता है कि क्रायोजेनिक टैंक का इस्तेमाल सिर्फ उन्हीं गैसों के लिए ही होता है, जिन्हें बेहद ठंडी परिस्थितियों में रखना पड़ता है।- आवागमन के लिए इन टैंकों को स्थायी या अस्थायी रूप से ट्रकों में फिट किया जाता है।- लिक्विड ऑक्सीजन, लिक्विड हाइड्रोजन के अलावा नाइट्रोजन और हीलियम के ट्रांसपोर्ट के लिए भी क्रायोजेनिक टैंक की ही जरूरत होती है।- ऑक्सीजन को टैंक के अंदर माइनस 185 से माइनस 93 के टेंपरेचर में रखा जाता है।- विशेष रूप से बनाई गई इस टैंक के अंदर की परत बाहरी हवा के दबाव को सहन कर लेती है।- इस टैंक के जरिए 20 टन ऑक्सीजन का ट्रांसपोर्टेशन हो सकता है।- एक क्रायोजेनिक टैंक तैयार होने में 25 लाख से 40 लाख रुपए तक का खर्च आता है।

क्रायोजेनिक टैंक की खासियत?- क्रायोजेनिक टैंक दो तरह की परत से बने होते हैं।- टैंक के अंदर की परत को इनर वेसल कहा जाता है, जो स्टेनलेस स्टील या इसी तरह की अन्य मटेरियल से बनाई जाती है।- इनर वेसल की इसी खासियत के चलते वह ऑक्सीजन को जरूरी ठंडक पहुंचाती रहती है।- इनर वेसल को सुरक्षित रखने का काम आउटर वेसल करती है, जो कार्बन स्टील की बनी होती है।- इनर और आउटर वेसल के बीच 3 से 4 इंच की गैप होता है, जिसे वैक्यूम लेयर कहा जाता है। इस लेयर का महत्वपूर्ण काम यही है कि यह बाहर की गर्मी या गैसों के दबाव को टैंक के अंदर पहुंचने से रोकती है।- इस तरह यही वैक्यूम लेयर इनर वेसल को टेंपरेचर मैनटेन करने में मदद करती है।

सड़क मार्ग का समय बचाने के लिए भारतीय एयरफोर्स द्वारा खाली टैंकर ऑक्सीजन प्लांट्स तक पहुंचाए जा रहे हैं।

सड़क मार्ग का समय बचाने के लिए भारतीय एयरफोर्स द्वारा खाली टैंकर ऑक्सीजन प्लांट्स तक पहुंचाए जा रहे हैं।

हमारे देश में ऐसे कितने टैंक हैं?- दरअसल, क्रायोजेनिक टैंक दो प्रकार के बनाए जाते हैं: स्थिर (स्टेशनरी) और अस्थायी (मोबाइल)।- यानी की हॉस्पिटल में ऑक्सीजन स्टोरेज के लिए जो टैंक बनाए जाते हैं, वे स्थायी टैंक कहलाते हैं।- अस्पताल के इन्हीं स्टेशनरी टैंक तक ऑक्सीजन पहुंचाने के लिए मोबाइल टैंक की जरूरत होती है।- मोबाइल टैंकर खतरनाक होते हैं। इसी के चलते इनके निर्माण के लिए हर साल रजिस्ट्रेशन के अलावा केंद्र और राज्य सरकारों के कई मंत्रालयों से सेफ्टी सर्टिफिकेट लेना अनिवार्य होता है।- भारत में विविध कंपनियों के पास ऐसे ट्रांसपोर्ट कैरियर की संख्या 1500 के ही करीब है, लेकिन इनमें से करीब 220 टैंक सेफ्टी सर्टिफिकेट रिन्यूअल न मिलने के चलते वर्तमान में निष्क्रिय हैं। इस तरह देश मेंइन टैंक की संख्या 1250-1300 के बीच ही है।

तत्काल प्रयासों के चलते पिछले शनिवार को सिंगापुर से चार टैंक भारत आ गए हैं।

तत्काल प्रयासों के चलते पिछले शनिवार को सिंगापुर से चार टैंक भारत आ गए हैं।

भारत में इनकी कम संख्या क्यों?- आमतौर पर देश में ऑक्सीजन की रोजाना खपत 700 मीट्रिक टन के आसपास है।- इस तरह ऑक्सीजन सप्लाई के लिए टैंक की संख्या पर्याप्त है।- कोरोना की पहली लहर के दौरान, ऑक्सीजन की खपत पिछले साल चौगुनी होकर 2,800 मीट्रिक टन प्रतिदिन हो गई थी। उस दौरान क्रायोजेनिक टैंकर की जरूरत महसूस की गई थी। हालांकि, हालात संभाल लिए गए थे।- दूसरी लहर के दौरान ऑक्सीजन की खपत सामान्य से 8-9 गुना बढ़कर 6000 मीट्रिक टन प्रतिदिन हो गई है और लगातार बढ़ती ही जा रही है। इसके चलते देश में क्रायोजेनिक टैंक की कमी हो गई।- यहां सरकार से गलती यही हुई कि पहली लहर के दौरान ही क्रायोजेनिक टैंक की संख्या बढ़ाने पर ध्यान ही नहीं दिया गया। यहां यह बात भी जोड़ सकते हैं कि कई राज्यों ने पहले से ऑक्सीजन प्लांट्स की भीव्यवस्था नहीं की।

हालात बिगड़ने पर 24 टैंकर आयात किए गए- जर्मन कंपनी लिंडे क्रायोजेनिक टैंकों की एक अग्रणी निर्माता कंपनी है। टाटा ग्रुप ने इस कंपनी से 24 टैंक के आयात के लिए एग्रीमेंट किया है।- तत्काल प्रयासों के चलते पिछले शनिवार को भारत में चार टैंकर पहुंचे। शेष 20 टैंक के इसी और अगले सप्ताह तक आने की उम्मीद है।- बता दें, क्रायोजेनिक टैंकरों की कमी को पूरा करने के लिए टाटा के अलावा अन्य औद्योगिक घराने भी काम कर रहे हैं।- क्रायोजेनिक टैंक बनाने की प्रक्रिया में लंबा समय लगता है। वहीं, देश में जिस रफ्तार से संक्रमण फैल रहा है, उसे देखते हुए वर्तमान समय में अन्य देशों से इनका आयात ही आखिरी विकल्प है।

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