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मोबाइल फोन की स्क्रीन पर 28 दिन तक जिंदा रह सकता है कोरोना, घर में एंट्री करें तो इसे सैनेटाइज करना न भूलें; ऑस्ट्रेलिया के वैज्ञानिकों ने किया सावधान

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22 मिनट पहले

  • ऑस्ट्रेलिया की नेशनल साइंस एजेंसी के वैज्ञानिकों ने रिसर्च में किया दावा
  • कहा, फ्लू का वायरस सतह पर 17 दिन तक जिंदा रह सकता है

फोन का इस्तेमाल अधिक करते हैं तो अलर्ट हो जाएं और इसे सैनेटाइज करना न भूलें। फोन की स्क्रीन पर कोरोनावायरस 28 दिन तक जिंदा रह सकता है। यह दावा ऑस्ट्रेलिया के वैज्ञानिकों ने अपनी रिसर्च में किया है। वैज्ञानिकों ने अलर्ट करते हुए कहा, सिर्फ कोरोना ही नहीं फ्लू का वायरस मोबाइल स्क्रीन पर 17 दिन तक रह सकता है।

फोन को सैनेटाइज करना जरूरी
वैज्ञानिकों ने सलाह दी है कि फोन के अलावा किसी भी सतह को छूने से पहले उसे सैनेटाइज करना जरूरी है। फोन को सैनेटाइज जरूर करें क्योंकि बात करते समय यह मुंह के सबसे करीब रहता है। कई वैज्ञानिकों का कहना है, अब तक किसी सतह को छूने से फैलने वाले संक्रमण को नजरअंदाज किया गया है लेकिन यह वायरस का खतरा बढ़ाता है।

दूसरे वायरस के मुकाबले कोरोना ज्यादा स्ट्रॉन्ग
रिसर्च करने वाली ऑस्ट्रेलिया की नेशनल साइंस एजेंसी के वैज्ञानिकों का कहना है, कोरोना दूसरे वायरस की तुलना में काफी स्ट्रॉन्ग है। किसी भी सतह पर दूसरे वायरस के मुकाबले लम्बे समय तक जिंदा रहता है। यह बात साबित हो चुकी है। कोरोना अंधेरे में अधिक समय तक जिंदा रहता है, लेकिन तापमान बढ़ता है तो इसका जीवन घटता है।

इस प्रयोग से समझें कहां, कितने समय तक टिकेगा कोरोना
ऑस्ट्रेलियाई वैज्ञानिकों के मुताबिक, प्रयोग के दौरान एक अंधेरे कमरे में 20 डिग्री सेल्सियस तापमान वाले कमरे में कोरोना का असर देखा गया। इस दौरान पाया गया कि यह मोबाइल स्क्रीन और दूसरी सतह पर 28 दिन तक जिंदा रह सकता है।

दूसरे प्रयोग में तापमान को 30 डिग्री सेल्सियस रखा गया तो कोरोना का जिंदा रहने का समय 7 दिन तक घट गया। यह 21 दिन तक जिंदा रह पाया। वैज्ञानिकों का कहना है, कोरोना छिद्र वाली सतह (पोरस) जैसे कॉटन के कपड़े पर कम तापमान पर 14 दिन तक जिंदा सकता है।

जरा सी लापरवाही संक्रमित कर सकती है।
वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर मोबाइल फोन को इस्तेमाल करने वाला लापरवाही बरतता है और हाथों को होठ, आंख और नाक तक ले जाता है तो दो हफ्ते बाद संक्रमण का असर दिख सकता है। हालांकि सबसे ज्यादा खतरा अभी भी कोरोना के ड्रॉपलेट्स से ही है।

वैज्ञानिकों की सलाह है कि महामारी के इस दौर में भी हर तरह की सतह को सैनेटाइज करना बेहतर है क्योंकि जब तक वैक्सीन नहीं बचाव ही इलाज है।

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