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एक महीने पहले
- एम्स के डायरेक्टर रणदीप गुलेरिया ने कहा कि देश में कुछ जगहों पर कम्युनिटी लेवल पर संक्रमण फैलने की आशंका है
- ट्रायल के फेज 1 में कोवैक्सिन 18 से 55 वर्ष की उम्र के ऐसे लोगों को दी जा रही है जिन्हें पहले से कोई गंभीर बीमारी नहीं है
एम्स दिल्ली में सोमवार को देश की पहली स्वदेशी वैक्सीन का ह्यूमन ट्रायल शुरू हो गया। एम्स दिल्ली देश के उन 14 इंस्टीट्यूट में से एक है, जिसे आईसीएमआर ने पहले और दूसरे चरण के ट्रायल की अनुमति दी है। पहले चरण में वैक्सीन का ट्रायल 375 वॉलंटियर्स पर होगा। इनमें से 100 एम्स से शामिल होंगे।
एम्स के डायरेक्टर रणदीप गुलेरिया ने बताया कि फेज 1 में कोवैक्सिन 18 से 55 वर्ष की उम्र के ऐसे लोगों को दी जा रही है जिन्हें पहले से कोई गंभीर बीमारी नहीं है। अभी कुल 1125 सैम्पल लिए जा रहे हैं। इनमें से 375 की स्टडी फेज 1 में की जाएगी और फेज 2 के लिए 12 से 65 वर्ष के 750 लोगों को शामिल किया जाएगा।
एम्स की एथिक्स कमेटी ने कोवैक्सिन के पहले ह्यूमन ट्रायल को मंजूरी दे दी है। ट्रायल में शामिल होने के लिए 10 घंटे में 10 हजार से अधिक लोगों ने रजिस्ट्रेशन कराया है। अभी केवल दिल्ली-एनसीआर के लोगों के रजिस्ट्रेशन को मंजूरी दी जाएगी।
कुछ जगहों पर कम्युनिटी लेवल पर संक्रमण
डॉ गुलेरिया ने कहा कि कोरोना वायरस के देशभर में कम्युनिटी लेवल पर संक्रमण फैलने के सबूत नहीं हैं। लेकिन, जहां हॉटस्पॉट हैं और जिन शहरों में मामलों में तेजी से बढ़ोतरी हुई है, वहां कम्युनिटी लेवल पर इसके संक्रमण से इनकार नहीं किया जा सकता। कुछ जगहों पर ये पीक पर पहुंच गया है। दिल्ली में भी ऐसा हुआ है और बाद में यहां मामलों में गिरावट आई है।
कुछ राज्यों में मामले तेजी से बढ़ रहे हैं और कुछ समय बाद ये राज्य पीक पर होंगे। अगर केवल भारत ही नहीं, बल्कि दक्षिण-पूर्व एशिया के आंकड़ों की तुलना इटली और स्पेन या अमेरिका से करें तो हमारे यहां मृत्यु दर वहां की तुलना में बहुत कम है
There is not much evidence that there is community transmission happening at national level. But there are hotspots, even in cities where there is spike of cases & it very likely that local community transmission in those areas is happening: AIIMS Director Randeep Guleria pic.twitter.com/nC5QH3W6P7
— ANI (@ANI) July 20, 2020
ट्रायल में शामिल होने के लिए ऐसे कराएं रजिस्ट्रेशन
एम्स दिल्ली के प्रोफेसर डॉ. संजय राय के मुताबिक, जो लोग वैक्सीन के ह्यूमन ट्रायल में शामिल होना चाहते हैं, वे मोबाइल नम्बर 07428847499 पर अपना नाम रजिस्टर्ड करा सकते हैं। ऐसे लोग चाहें तो रजिस्ट्रेशन के लिए ctaiims.covid19@gmail.com पर मेल भी कर सकते हैं। जिस स्वस्थ व्यक्ति पर कोरोना वैक्सीन का ट्रायल होगा उसका पहले कोविड टेस्ट होगा। मेडिकल चेकअप में ब्लड शुगर, बीपी, किडनी और लिवर से जुड़ी बीमारियां न पाए जाने के बाद ही वैक्सीन की डोज दी जाएगी।
वैक्सिन के ट्रायल से जुड़ी 5 बातें
1. जानवरों पर वैक्सीन का ट्रायल पूरा जब से भारत बायोटेक कंपनी ने कोवैक्सिन के नाम की घोषणा की है, हर तरफ एक ही सवाल है- कोरोना वायरस की यह वैक्सीन कब आएगी? इस वैक्सीन के निर्माण में इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) और नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ वायरोलॉजी, पुणे के वैज्ञानिक भी भारत बायोटेक के साथ मिलकर काम कर रहे हैं। वैक्सीन के ट्रायल को लेकर आईसीएमआर के पूर्व वैज्ञानिक डॉ. रमन आर गंगाखेडकर का कहना है कि कोवैक्सिन का जानवरों पर ट्रायल हो चुका है और अब ह्यूमन ट्रायल होगा।
2. तीन स्तर के ट्रायल को ऐसे समझें
प्रसार भारती से बातचीत में डॉ. गंगाखेडकर ने बताया कि इंसानों पर पर किसी भी वैक्सीन के तीन स्तर के ट्रायल होते हैं।
- पहली स्टेज : इसमें यह देखा जाता है कि वैक्सीन सुरक्षित है या नहीं। इसी दौरान ये भी देखा जाता है कि वैक्सीन लेने वाले में एंटीबॉडी बन रहे हैं या नहीं।
- दूसरी स्टेज: इसमें देखा जाता है कि वैक्सीन का कोई साइड इफेक्ट तो नहीं है। एक साल या 6 महीने के अंदर कोई दुष्परिणाम होते हैं या नहीं।
- तीसरी स्टेज : इस दौरान ये देखा जाता है कि वैक्सीन देने के बाद कितने लोगों को नए सिरे से बीमारी होती है या नहीं।
चौथी स्टेज की प्रक्रिया ट्रायल मोड में नहीं होती। उसमें आम लोगों को जब वैक्सीन देना शुरू करते हैं, तो देखा जाता है कि अगले दो साल तक कोई साइड इफेक्ट तो नहीं आए हैं। इसे पोस्ट मार्केटिंग सर्विलांस कहते हैं। उसके बाद वैक्सीन पर अंतिम निर्णय लिया जाता है।
3. आम लोगों तक वैक्सीन आने में कितना वक्त लग सकता है?
इस सवाल पर डॉ. गंगाखेडकर ने कहा कि कोविड के पहले तक वैक्सीन के ट्रायल में 7-10 साल तक लगते थे। चूंकि कोरोना महामारी बहुत तेजी से फैल रही है इसलिए इस संक्रमण को कम करने के लिए अलग-अलग तरह से वैक्सीन के ट्रायल हो रहे हैं। भारत में भी बनने में करीब डेढ़ से दो साल का समय लगेगा। अभी जो भारत की वैक्सीन है, उसका पहले चरण का ट्रायल 15 अगस्त तक पूरा हो जाएगा।
इस प्रक्रिया में पता चल जाएगा कि इस वैक्सीन से एंटीबॉडी बन रहे हैं या नहीं और यह सेफ है या नहीं। उसके बाद दूसरे स्टेज का ट्रायल होगा। संभवत: कंपनी ने सोचा है कि अगर ये वैक्सीन काम करेगी तो इसका प्रोडक्शन शुरू कर देंगे, ताकि पूरे ट्रायल के बाद यह अगर सफल हुई, तो भारत में बड़ी आबादी तक जल्द पहुंच जाए।
4. चीन और अमेरिकी वैक्सीन भी भारत के स्तर की हैं
डॉ. गंगाखेडकर ने बताया कि वैक्सीन का ट्रायल अलग-अलग फेज में होता है। फेज वन में करीब 40 से 50 लोगों पर ट्रायल किया जाता है। फेज 2 में 200-250 लोगों पर ट्रायल होता है। फेज 3 में बड़ी संख्या में लोग पार्टिसिपेट करते हैं। लेकिन जो भी परिणाम आते हैं, उसके आधार पर ही कैल्कुलेशन करके सैंपल लिया जाता है।
अभी दो ही वैक्सीन हैं जो फेज 2 ट्रायल में हैं। एक ऑक्सफोर्ड में बनी वैक्सीन का नाम केडॉक्स है। दूसरी चीन की वैक्सीन है, जो सिनोवैक कंपनी ने बनाई है। ये दोनों ही भारत बायोटेक के कोवैक्सिन के स्तर की वैक्सीन हैं।
5. इन हॉस्पिटल में शुरू हुआ पहले चरण का ट्रायल
वैक्सीन के ट्रायल के लिए आईसीएमआर ने देश में 12 हॉस्पिटल्स का चयन किया है। इनमें एम्स-दिल्ली, एम्स पटना, किंग जॉर्ज हॉस्पिटल-विशाखापटनम, पीजीआई-रोहतक, जीवन रेखा हॉस्पिटल-बेलगम, गिलुरकर मल्टी स्पेशिएलिटी हॉस्पिटल-नागपुर, राना हॉस्पिटल-गोरखपुर, एसआरएम हॉस्पिटल-चेन्नई, निजाम इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज-हैदराबाद, कलिंगा हॉस्पिटल-भुवनेश्वर, प्रखर हॉस्पिटल-कानपुर और गोवा का एक हॉस्पिटल भी शामिल है।
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