दैनिक भास्कर
Apr 03, 2020, 12:24 PM IST
एजुकेशन डेस्क. बिहार के नालंदा जिले के ब्रह्मस्थान गांव के प्रेमपाल की कहानी अन्य बच्चों से अलग है। आमतौर पर गरीब बच्चे अपने परिवार के सहयोग और प्रोत्साहन से ही आर्थिक दिक्कतों का मुकाबला कर शिक्षा हासिल कर पाते हैं, लेकिन प्रेमपाल का तो पूरा परिवार ही उसे पढ़ने नहीं देना चाहता था। सिवाय उसके माता-पिता को छोड़कर। दादा व चाचा चाहते थे कि वह खेतों में काम कर परिवार की आमदनी बढ़ाए। पिता योगेश्वर कुमार की आय इतनी नहीं थी कि बेटे को अच्छे स्कूल में भेज सकें। परिवार ने मदद करने से इनकार कर दिया।
पढ़ाई के लिए बदला धर्म
परिवार में बंटवारे के बाद उनके हिस्से बमुश्किल एक बीघा जमीन आई थी। दूसरों के खेतों में मजदूरी करना उनकी मजबूरी थी। कई बार उन्हें भूखे सोना पड़ता था। उन्होंने उधार लेकर एक भैंस खरीद ली ताकि दूध से कुछ आमदनी बढ़ सके। इतने मुश्किल हालात में भी योगेश्वर कुमार अपने बच्चों को पढ़ाना चाहते थे। प्रेमपाल उनका बड़ा बेटा था। उन्होंने उसे गांव के स्कूल में भेजना शुरू किया। प्रेमपाल की पढ़ाई में रुचि थी, लेकिन स्कूल की हालत ऐसी थी कि कई दिनों तक शिक्षक नहीं आते और वह निराश हो जाता। फिर मां संगीता उसे ढांढस बंधाती। प्रेमपाल ने छठी कक्षा पास कर ली और आगे की पढ़ाई के लिए उसे गांव से दूर स्थित स्कूल में जाना था। लेकिन पिता चाहकर भी पैसे की व्यवस्था नहीं कर पाए। इसी निराशा में उन्हें किसी ने सुझाव दिया कि ईसाई धर्म अपना लेने से प्रेमपाल का मिशनरी स्कूल में एडमिशन हो सकता है। उन्होंने परिवार सहित धर्म परिवर्तन कर लिया। प्रेमपाल को स्कूल में एडमिशन तो मिल गया, लेकिन पूरा गांव उनके खिलाफ हो गया।
खुले आसमान के नीचे काटी रातें
दादाजी ने योगेश्वर कुमार को बच्चों सहित घर से निकाल दिया। वे बच्चों के साथ खुले आसमान के नीचे रहने को मजबूर थे। मिशनरी स्कूल गांव से 20 किमी दूर था और वहां 80 रु. फीस लगती थी। योगेश्वर कुमार इसका इंतजाम भी बड़ी मुश्किल से कर पाते थे। मां को अपने बेटे की बड़ी याद आती तो वह महीने में एक बार उससे मिलने जातीं। इसी तरह 4 साल बीत गए और प्रेमपाल 10वीं की परीक्षा की तैयारी में लगा था। स्कूल में छुट्टी थी तो वह गांव चला आया था, लेकिन यहां पढ़ने के लिए कोई जगह नहीं थी। योगेश्वर कुमार ने अपने पिता से घर में रहने देने का आग्रह किया तो उन्होंने दालान में रहने की इजाजत दे दी, जहां गाय-भैंसों को बांधकर रखा जाता था। यह बात उनके भाइयों को पता चली तो उन्हें घर से बाहर कर दिया। इसी हालत में तैयारी कर प्रेमपाल ने बोर्ड की परीक्षा दी और अच्छे अंकों से पास हुआ। अब आगे की पढ़ाई के लिए पटना जाना ही एकमात्र विकल्प था। इसी दौरान पिता को किसी ने सुपर 30 के बारे में बताया और प्रेमपाल मुझसे मिलने आ गया। मैंने उसे संस्थान में शामिल कर लिया। शांत स्वभाव और कम बोलने वाले प्रेमपाल के पास प्रतिभा की कोई कमी नहीं थी। कड़ी मेहनत से परीक्षा देने के बाद सलेक्शन को लेकर भी आश्वस्त हो चुका था। रिजल्ट के दिन ऐसा ही हुआ। इस साल 18 जून को प्रेमपाल की तकदीर एक नए रास्ते पर चल पड़ी। वह अच्छी रैंक से पास हुआ था। प्रेम पाल अभी ‘इसरो’ में बतौर वैज्ञानिक काम कर रहा है।